कर्पूरी ठाकुर की जीवन शैली हमेशा से ही सरल और सादगी से भरी रही है साथ ही उन्होंने कभी सरकार का पैसा नहीं लिया। एक समय जब बिहार में सभी नेताओं की कॉलोनी बनाने की प्रतिक्रिया शुरू हुई तो भी ठाकुर ने ज़मीन नहीं ली और इसपर जब भी कोई उनसे प्रश्न करता तो वह बस हाथ जोड़ लोते थे।
कर्पूरी ठाकुर ने तोड़ी परिवारवाद की कढ़ी
एक बार जब बिहार के सीएम की पदवी पर रहते हुए उनका बहनोई नौकरी की आस में आया तो उन्होंने 50 रूपए देकर कहा कि उस्तरा खरीदकर अपना पुश्तैनी कार्य करें। दरअसल ठाकुर नाई समाज से संबंध रखते हैं जिस कारण उन्होंने ऐसा कहा। जब बिहार पिछड़ा वर्ग के लिए आरक्षण देने वाला पहला राज्य बना तो कुछ लोग उनसे नाराज़ थे । जिसके बाद वह एक बार गांव के दौरे पर गए जहाँ एक महिला उनके पास दौड़ती हुई आई और बताया कि आगे मत जाईए आपकी जान को खतरा है जिसके बाद कलेक्टर खाली गाड़िया आगे भेजी जिनपर काफी ज्यादा पथ्थर बाजी की गई थी। जिसे बाद कर्पूरी जी कहते हैं कि मैने गरीबों के लिए काम किया तो आज गरीबों ने मेरी जान बचाई।
संदिग्ध हालातों में हुई मौत
आपको जानकर हैरानी होगी कि करपूरी ठाकुर दो बार मुख्य मंत्री बने पर उनकी मृत्यु हुई तो वह अपने पूंजी के रूप में एक घर भी नहीं बना कर गए। जननायक की मौत भी संदिग्ध हालात में हुई दरअसल कर्पूरी जी हाई ब्लडप्रेशर के मरीज थे ऐसे में उनके लिए नमक ज़हर का काम करता था पर 16 फरवरी 1988 को अतुलानंद नामक व्यक्ति ने उन्हें 13 लीटर नमक का पानी पिलाया और उनकी मौत हो गई। लेकिन आज तक पता नहीं चला कि कौन है अतुलानंद।
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