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पाकिस्तानी सेना को अपने ही देश में क्यों मारा जा रहा है?

Martyred Pakistan policemen

फरवरी 2022 के केच में पाकिस्तानी सैन्य शिविरों पर बलूच लड़ाकों द्वारा यह पाकिस्तानी सेना पर सबसे घातक हमलों में से एक था। पाकिस्तान: 12 जुलाई को हुए हमले में कम से कम 12 पाकिस्तानी सेना के जवान मारे गए। हमला बलुचिस्तान और सिंध के इलाके मे हुआ था। पाकिस्तानी सेना पर कहा हमले हुए है? रिपोर्ट के मुताबिक इन हमलों के पीछे कई अलग आतंकवादि संगांठनो के नाम सामने आये है जैसे तेहरिक-ए-जिहाद पाकिस्तान(TJP), वह संगठन जो तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान(TTP) से संबद्धता का दावा करता है और बलूचिस्तान लिबरेशन टाईगर(BLT)। दरअसल अलग अलग नाम खुफिया एजेंसी को गुमराह करने के लिए दिए जाते है। इन हमलावरों का कहना है की पाकिस्तानी सेना बलूचिस्तान के बेकसूर आम जनता को प्रताड़ित करती है। बीएलटी प्रवक्ता मीरान बलूच का कहना है की पाकिस्तानी सेना ने बलूचिस्तान के डेरा बुगती के राइस तोख  और गुर्दों नवाह के इलाकों मे सैन्य अभियान शुरू किया था। इसलिए इन इलाकों मे वो आम जनता को हो रही हिंसा से बचाने के लिए जाते है। आजाद सिंध की मांग और कराची मे एक हमले का जिम्मा सिंधुदेश रेवलूशनेरी आर्मी(SRA) ने लेते हुए कहा है की वो सिंध के लिए आजादी चाहते है। इसने सिंध में अफगान और पश्तून समुदायों के पुनर्वास के साथ लगाए जा रहे जनसांख्यिकीय परिवर्तन के खिलाफ भी अपना विरोध जताया है। SRA ने चीनी नागरिकों के साथ-साथ पाकिस्तानी कोस्ट गार्ड कर्मियों को भी निशाना बनाया है। इंटर-सर्विसेज पब्लिक रिलेशंस(ISPR)- पाकिस्तानी सेना की जनसंपर्क एजेंसी ने हमलों के बाद कई बयान जारी किए। इसमें कहा गया है कि ज़ोब कैंट में सुरक्षा अभियान पूरा हो गया है और कुल मिलाकर पांच आतंकवादी मारे गए हैं। वो कहते है ना की जैसा बो-ओगे वैसा पाओगे। पाकिस्तान में पल रहे आतंकवादि अब उनको ही अपना निशाना बना रहे है। 2021 मे अफ़्ग़ानिस्तान में जब से तालिबानी हुकूमत आई है तब से ये हमले शुरू हुए है जिसमें 100 से भी ज्यादा सैनिकों ने अपनी जान गवाई है।और अफगानिस्तान जैसी ही इस्लामी इकाई स्थापित करने के लिए बड़ी संख्या में तालिबान लड़ाके पाकिस्तान पहुंचे रहे है। पाकिस्तान पूरे देश में गंभीर संघर्षों का खामियाजा भुगत रहा है क्योंकि यह क्षेत्र हथियारों और भारी प्रशिक्षित आतंकवादी समूहों और युद्ध-कठोर लड़ाकों से भरा हुआ है। पाकिस्तानी सरकार द्वारा पश्तूनों, बलूचों और सिंधियों जैसे कई जातीय समुदायों को अलग-थलग करने से भी लोगों में नाराजगी पैदा हो गई है। इनमें से कई लोगों ने पाकिस्तानी सेनाओं – सेना, अर्धसैनिक बल और खुफिया एजेंसियों के खिलाफ हथियार उठा लिए हैं। ये भी पढ़ें: Radioactive waste water जापान समुद्र मे क्यों गिराना चाहता है? https://aayudh.org/japan-to-release-radioactive-waste-water/

Radioactive waste water जापान समुद्र मे क्यों गिराना चाहता है?

fukushima nuclear plant

जापान: 2011 में जापान मे सुनामी आई थी जिससे फुकुशीमा स्थित न्यूक्लियर प्लांट मे भारी तबाही मच गई थी। इससे रिएक्टर कोर अत्यधिक गर्म होने की वजह से इसके अंदर का पानी दूषित हो गया था। तब से, रिएक्टरों में ईंधन के मलबे को ठंडा करने के लिए नया पानी डाला गया। साथ ही, ज़मीन और बारिश का पानी लीक होते गया, जिससे अधिक रेडियोधर्मी अपशिष्ट जल बन गया। इसी पानी को स्टोर और साफ करने के लिए जापानी कंपनी, टोक्यो इलेक्ट्रिक पावर कंपनी (TEPCO) ने 1000 से अधिक विशाल टैंक बनाए थे जो 500 से ज्यादा ओलंपिक पूल भरने के लिए पर्याप्त है। लेकिन जगह तेज़ी से कम होती जा रही है। कंपनी का कहना है कि अधिक टैंक बनाना कोई विकल्प नहीं है, और उसे संयंत्र को सुरक्षित रूप से बंद करने के लिए जगह खाली करने की आवश्यकता है – एक प्रक्रिया जिसमें कीटाणुशोधन सुविधाएं, संरचनाओं को नष्ट करना और चीजों को पूरी तरह से बंद करना शामिल है। Radioactive waste water को IAEA की मिली हरी झंडी इसी वजह से इसे 2019 से ही समुद्र मे डालने की बात यू. एन. का परमाणु निगरानीकर्ता International Atomic Energy Agency(IAEA) के साथ चल रही है। ये Radioactive waste water को साफ करके ही समुद्र मे डाला जाएगा पर इसमे ट्रीटीअम को नहीं निकाला जा सकता है जिससे इंसानों और पर्यावरण दोनों को हानी हो सकती है। लेकिन जापान की सरकार और IAEA का कहना है कि दूषित पानी अत्यधिक पतला हो जाएगा और दशकों में धीरे-धीरे छोड़ा जाएगा। इसका मतलब है कि जारी किए जाने वाले ट्रिटियम की सांद्रता अन्य देशों की अनुमति के बराबर या उससे कम होगी, और अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा और पर्यावरण नियमों को पूरा करेगी। इसलिए IAEA की टीम ने जायजा लेने के बाद इसे सुरक्षित घोषित कर दिया है। क्या है अन्य देशों की प्रतिक्रिया? इस योजना को मिश्रित प्रतिक्रिया मिली है, कुछ कोनों से समर्थन और दूसरों से संदेह। अमेरिका ने जापान का समर्थन किया है, विदेश विभाग ने 2021 के एक बयान में कहा कि जापान “अपने निर्णय के बारे में पारदर्शी” रहा है और ऐसा लगता है कि वह “विश्व स्तर पर स्वीकृत परमाणु सुरक्षा मानकों” का पालन कर रहा है। कुछ लोगों ने IAEA के निष्कर्षों पर संदेह जताया है।  चीन ने हाल ही में तर्क दिया है कि समूह का आकलन फुकुशिमा के अपशिष्ट जल छोड़ने की “वैधता का प्रमाण नहीं है”। वहाँ के रहने वाले लोगों का कहना है की इससे मत्स्यपालन उददयोगिकों को बहुत नुकसान होगा जो की 2011 के बाद इसका असर पहले से झेल रहे है। और समुद्री पर्यावरण और मानव स्वास्थ्य को अप्रत्याशित नुकसान का भी सामना करना पड़ सकता है। ये भी पढ़ें: https://aayudh.org/why-are-africans-cheetah-dying-in-kuno/

अफ्रीकी चीते कुनो में क्यों मरते जा रहे है?

Cheetahs at KNP

अफ्रीकी चीते मरते जा रहे है, जिनमे से 4 साल का चीता तेजस अभी तक का आखिरी मरने वाला था। भारत: शुरुआती जांच के अनुसार आपसी झगड़े मे तेजस के गर्दन पर चोट आई थी जिससे उसकी मौत हो गई। भारत के चीता पुनर्वास कार्यक्रम के तहत लाये गए 7 अफ्रीकी चीते अभी तक मर चुके है। साउथ अफ्रीका और नामीबिया से 20 चीते लाए गए थे जिनमें से अब जाकर बस 16 बच गए है। उनमें से एक के 4 मे से 3 बच्चों ने भी कुपोषण और कमजोरी से अपनी जान गवा दी। और रिपोर्ट्स के अनुसार बाकियों की मौत किसी चोट या इंफेक्शन से हुई है। क्यों लाए गए थे अफ्रीकी चीते? ₹500 मिलियन का ट्रांस कॉन्टिनेंटल चीता पुनरुत्पादन का यह कार्यक्रम शायद दुनिया में अपनी तरह का सबसे महत्वाकांक्षी कार्यक्रम है। प्रयास यह है कि, अगले दशक में, लगभग 35 की आत्मनिर्भर आबादी स्थापित होने तक, हर साल पांच से 10 जानवरों को लाया जाए। दक्षिण अफ्रीका और नामीबिया में चीतों के विपरीत, जो बाड़ वाले अभयारण्यों में रहते हैं, भारत की योजना उन्हें प्राकृतिक, बिना बाड़ वाले, जंगली परिस्थितियों में विकसित करने की है। कूनो में, 17 वयस्कों में से केवल छह ही जंगल में हैं और बाकी जानवरों को भारतीय परिस्थितियों के अनुकूल बनाने में मदद करने के लिए बड़े, विशेष रूप से डिजाइन किए गए बाड़ों में रखे गए हैं। साल के अंत तक सभी जानवरों को खुले में छोड़ने की योजना है। जानवरों को रेडियो कॉलर लगाया जाता है और 24/7 ट्रैक किया जाता है। क्या है जगल अधिकारियों का कहना? भारत के अधिकारियों की माने तो उनकी उम्मीद भी यही थी क्योंकि जब किसी जानवर को विदेश से लाया जाता है तो जीवित शेष-दर बस 50% होती है। जिसकी वजह मुख्यत: नए देश के वातावरण मे ठीक से अभ्यस्त नहीं हो पाना है।   पर विशेषज्ञों का ये मानना है की ये सही तरीके से ध्यान नहीं रखने की वजह से हुआ है। चीतों को रहने के लिए बड़ी जगह चाहिए होती है। यह चीतों के बीच क्षेत्रीय संघर्ष को रोकता है। और कुनो नेशनल पार्क में उन्हे जगह कम मिल रही है। इसी वजह से चीते नियंत्रित वातावरण में थे। कुछ का मानना है की राजस्थान के मुकुंद्रा बाघ अभयारण्य इन चीतों के लिए कुनो से ज्यादा अच्छी जगह हो सकती है। ये भी पढ़ें: https://aayudh.org/deep-sea-mining-in-talks/

क्या अब पैसों के लिए Deep Sea को भी नहीं छोड़ रही ये दुनिया?

Revolt against Deep Sea Mining

कैरीबीयन द्वीप के जमैका में मीटिंग हुई जिसमे कई देश और कम्पनी ये चर्चा कर रहे है की Deep Sea में खनन करना सही होगा या नहीं। Deep sea समुद्र के उस क्षेत्र को कहते है जहां से रौशनी दिखनी बंद हो जाती है। और अब लोग उसका खनन करना चाहते है। वैज्ञानिकों की माने तो डीप सीबेड मे निकल, मैंगेनिस  और कोबाल्ट जैसे धातु पाए जाते है जिनका इस्तेमाल कई विद्युत वाहनों के बैटरी और कई ग्रीन टेक्नॉलजी के लिए किया जाता है। क्या है ISA? क्योंकि समुद्र किसी देश का हिस्सा नहीं है, इसलिए ये यूनाइटेड नेशन्स के अंतर्गत आता है। तो यहाँ कुछ भी करने के लिए पहले यू. एन. से पहले अनुमति लेनी होती है और उसी के लिए है इंटरनेशनल सिबेड अथॉरिटी (ISA)। इंटरनेशनल सीबेड अथॉरिटी (ISA) का गठन 16 नवंबर 1994 को समुद्र के कानून पर संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन (यूएनसीएलओएस) के तहत एक अंतर सरकारी निकाय के रूप में किया गया था। Deep Sea माइनिंग की बात शुरू हुई थी 2021 मे जब कनाडा की एक कंपनी The Metals Company ने Nuoro नामक एक बहुत छोटी आइलैंड के साथ ये करने के लिए ISA मे अर्जी दाखिल कर दी थी। पर ISA ने इसपर 2 सालों के लिए रोक लगा दिया था जो की अब खत्म हो गया। तब ही से वापस इसे शुरू करने के लिए काफी देश और कम्पनियाँ इस मीटिंग का हिस्सा बने थे। Deep Sea माइनिंग पर क्या है और देशों के राय? इसी बीच फ्रांस,जर्मनी जैसे देशों ने Deep Sea माइनिंग के खिलाफ ISA से अनुरोध किया है की इसपर बैन लगना चाहिए और तब तक रोके जाना चाहिए जब तक इस पर और पुख्ते वैज्ञानिक तथ्य ना सामने आ जाए। और बड़े देश जैसे भारत, अमेरिका, ब्रिटेन और चीन अभी तक अपना पक्ष नहीं रखा है। वो अभी भी इसके ऊपर जानकारी ले रहे है की इसके क्या फायदे-नुकसान हो सकते है। जो ये खनन करना चाहते है उनका कहना है की ये जमीनी खनन से कम हानिकारक है। हालांकि इसपर अभी तक कोई और सबूत सामने नहीं आए है। ऐसा प्रतीत होता है की लोग अपने फायदे के लिए इतनी त्रासदी के बावजूद प्रकृति के किसी भी हिस्से को नहीं छोड़ना चाहते। ये भी पढ़ें: https://aayudh.org/schengen-visa-denied-to-indians/

कहाँ की है शेंगेन वीज़ा जिस पर भारतियों ने गवाए ₹90 करोड़?

Picture of Schengen Area

शेंगेन एरिया मे यूरोप के 27 देश आते है जिनमे जर्मनी, फ्रांस, स्विट्ज़रलैंड और स्पेन जैसे देश है। इनमे से किसी भी देश जाने के लिए गैर यूरोपीय लोगों को शेंगेन वीज़ा लगती है। यूरोप: शेंगेन वीज़ा इन 27 मे से किसी एक देश द्वारा दी जाती है और बाकी 26 देशों मे भी लागू होती है। शेंगेन वीज़ा मे कैसे डूबे पैसे? किसी 12 साल से अधिक उम्र वाले भारतीय को एक विज़ा के लिए Rs.8000 के करीब लगते है। पिछले साल 6.5 लाख से भी ज्यादा भारतियों ने आवेदन दिया था। ये आँकड़े कोरोना महामारी के बाद 415% बढ़ गए है। इस साल इन वीज़ा की अस्वीकृति की दर 18% थी। मतलब 1 लाख से भी ज्यादा आवेदनों को रद्द कर दिया गया था। और इसी में बिना वीज़ा के ही लोगों के ₹480 करोड़ मे से लगभग ₹90 करोड़ चले गए। हालांकि ये अस्वीकृति दर पिछले सालों से कम है। 2021 मे यही 23% से भी ज्यादा थी। पर फिर भी ये विश्व के औसतन दर 17.9% से ज्यादा है। और भारत शेंगेन वीज़ा रद्द होने मे पूरे विश्व मे अल्जेरिया के बाद दूसरे स्थान पर है।   शेंगेन वीज़ा आवेदन के लिए व्यापक दस्तावेज़ीकरण की मांग करता है। इसमें यात्रा बीमा, उड़ान आरक्षण, आवास बुकिंग, विस्तृत यात्रा कार्यक्रम, वित्तीय विवरण, रोजगार पत्र और बहुत कुछ का प्रमाण शामिल है। क्या है वीज़ा रद्द होने की वजह? विज़ा कैंसल करने के पीछे कई कारण है जैसे आपराधिक पृष्ठभूमि छुपाना, गलत जानकारी भरना पर उनमें से एक बड़ी वजह मानी जाती है की आवेदन कर्ताओं के देश का पासपोर्ट कितना मजबूत है मतलब उस पासपोर्ट से कितने देश जा सकते है। भारत इस लिस्ट मे 85वें स्थान पर आता है मतलब वीज़ा फ्री या वीज़ा ऑन अराइवल के साथ भारतीय बस 59 देश ही घूम सकते है। सबसे पहले आता है जापान जहा के लोग बिना वीज़ा के 193 देश जा सकते है। भारत का स्थान पिछले सालों से काफी आगे बढ़ा है। 2021 मे ये 90वें स्थान पर था और 2022 मे 87वें पर। अस्वीकृति का मतलब न केवल समय और प्रयास की हानि है बल्कि भविष्य के वीज़ा आवेदनों पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है। ये भी पढ़ें: https://aayudh.org/shah-told-the-election-roadmap-to-bjp/

PayTM के फाउन्डर विजय शेखर OpenAI से क्यों चिंतित है?

Vijay Shekhar upset on increasing AI power

ChatGPT निर्माता, OpenAI ने अपने नए ब्लॉग पोस्ट मे बताया है की “Superintelligence” इसी दसक में आ सकती है। भारत: PayTM के फाउन्डर विजय शेखर शर्मा ने अत्यधिक एडवांस्ड AI सिस्टम के विकास के कारण संभावित अशक्तिकरण और यहां तक ​​कि मानवता के विलुप्त होने के बारे में अपनी चिंता व्यक्त की। उन्होंने ओपनएआई के हालिया ब्लॉग पोस्ट का हवाला देते हुए एक ट्वीट में अपनी चिंताएं साझा कीं। क्या था OpenAI के ब्लॉग पोस्ट में? दरअसल OpenAI की एक नई ब्लॉग पोस्ट आई है जिसका शीर्षक है “Introducing Superalignment”। इसमे उन्होंने ये बताया है की सुपरिन्टेलिजेंस जिसका मतलब है एक काल्पनिक एजेंट जिसके पास सबसे प्रतिभाशाली मानव दिमागों से कहीं अधिक बुद्धि होती है। पहले ये काल्पनिक लगता था पर इस पोस्ट के अनुसार कुछ 7 सालों मे ऐसा मुमकिन हो सकता है। अभी AI को और भी वैज्ञानिक और तकनीकी आविष्कारों की जरूरत है जिससे वो इंसानी दिमाग से भी आगे बढ़ जाए। OpenAI इसमे महत्वपूर्ण कंप्यूटिंग शक्ति समर्पित कर रहा है और इस मुद्दे को संबोधित करने के लिए इल्या सुतस्केवर और जान लेइक के नेतृत्व में एक टीम का गठन कर रहा है। पोस्ट मे भी डाला गया है की सुपरइंटेलिजेंस से जुड़े जोखिमों के प्रबंधन के लिए नए शासन संस्थानों और एआई सिस्टम को मानवीय इरादे से संरेखित करने की चुनौती को हल करने की आवश्यकता है। इसी पर विजय शेखर ने चिंता जताते हुए कहा की वो सच मे भयभीत है ये देखकर की कुछ लोगों और देशों के पास इस क्षेत्र मे पहले से ही कितनी ज्यादा शक्तियां आ गई है। OpenAI आगे क्या करने वाला है? ओपनएआई के दृष्टिकोण में एक स्वचालित संरेखण शोधकर्ता का निर्माण शामिल है जो मोटे तौर पर मानव-स्तर की बुद्धिमत्ता पर काम करता है। OpenAI स्वीकार करता है कि उनकी अनुसंधान प्राथमिकताएँ विकसित होंगी, और वे भविष्य में अपने रोडमैप के बारे में अधिक विवरण साझा करने की योजना बना रहे हैं। वे अधीक्षण संरेखण की समस्या पर काम करने के लिए शीर्ष मशीन लर्निंग शोधकर्ताओं और इंजीनियरों की एक टीम को इकट्ठा कर रहे हैं। Read about: डागु ग्लेशियर को सूर्य किरण से बचाने के लिए क्या कर रहे है चीनी? https://aayudh.org/chinese-saving-melting-dagu-glacier/

डागु ग्लेशियर को पिघलने से बचाने के लिए चीनी ऐसा क्या कर रहे है?

चादर डालते हुए वैज्ञानिक

चीन मे स्थित डागु ग्लेशियर को पिघलने से बचाने के लिए चीन के कुछ शोधकर्ता उसपर एक ऐसी डिजाइन की हुई चादर डाल रहे है जिस से सूर्य की 50 से 70 प्रतिशत किरणें वापस आसमान मे रिफ्लेक्ट हो जाएंगी। Read in depth: https://www.scmp.com/business/article/3226846/climate-scientists-cover-sichuans-dagu-glaciers-tencent-sponsored-hi-tech-blanket-impede-their-melt कई सालों से डागु के आस पास हज़ारों लोग रह रहे है जिनको इस से पानी और हाइड्रो पावर के रूप मे बिजली मिलती है। इसकी खूबसूरती देखने के लिए सालाना 2 लाख के करीब पर्यटक आते है और इस से करीबन 2000 लोगों की नौकरियां जुड़ी है। अब पृथ्वी के गर्म होने से यह सब ख़तरे में है। तिब्बती पठार में ऐसे प्रयोग हजारों नौकरियों को संरक्षित करने में मदद कर सकता है। इसलिए ये कदम उठाए जा रहे है। इन चीनी शोधकर्ताओं का कहना है की इसे बस छोटे जगहों पर ही इस्तेमाल किया जा सकता है। इसलिए जून मे डागु के 400sq मीटर पर ये परीक्षण के तौर पर किया गया था। डागु ग्लेशियर से पहले कहाँ किया जा चूका है ऐसा? ग्लेशियरों को परावर्तक सामग्री की चादरों से ढंकना कोई नया विचार नहीं है। यूरोपीय स्की रिसॉर्ट लगभग दो दशकों से अपनी बर्फ की सुरक्षा के लिए सफेद कंबल का उपयोग कर रहे हैं। लेकिन चीन ने अभी इस दृष्टिकोण का प्रयोग शुरू ही किया है। अब आगे क्या हो सकता है? ये वैज्ञानिकों की टीम अब एक नई सामग्री का परीक्षण कर रही है जो उनके शोध से पता चलता है कि इसमें 93% से अधिक सूरज की रोशनी को रिफ्लेक्ट करने की क्षमता है और डागु को सक्रिय रूप से गर्मी खोने में मदद मिलेगी। पर्यावरणीय प्रभाव को कम करने के लिए, फिल्म सेलूलोज़ एसीटेट और पौधों से बने प्राकृतिक फाइबर से बनाई गई है। इस पदार्थ का उपयोग कम पहुंच वाले ग्लेशियरों पर ड्रोन द्वारा जमा किए गए छोटे कणों के रूप में भी किया जा सकता है। जानकारों का कहना है की ऐसा करना ठीक वैसा ही है जैसे बेहद बुरे बीमारी से जूझ रहे मरीज़ को कुछ और वर्ष देना। एकमात्र वास्तविक इलाज है ग्रह-वार्मिंग कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) के उत्सर्जन में भारी कटौती करना, जिसका चीन दुनिया का सबसे बड़ा स्रोत है। Read about: कनाडा मे खालिस्तानी पर Trudeau https://aayudh.org/trudeau-on-khalistani/

कनाडा सरकार मे खालिस्तानी समर्थक है इसलिए चुप है Trudeau?

अधिकतर खालिस्तानी कनाडा में है और आए दिन कोई ना कोई खालिस्तानी गतिविधि होते रहती है। मार्च मे वहाँ के एक शहर सर्रे मे वहाँ के भारतीयों पर हमला किया गया था जिसमे कम से कम 3 लोग घायल हुए थे। फिर उसी महीने भारत हाई कमीशन पर 2 ग्रेनेड से हमला किया था। पर अब ये कोई नई बात नहीं रह गई है। इन सब के बाद भी वहाँ की सरकार इसपर चूप क्यों है? कनाडा के प्रधान मंत्री से जब इस पर सवाल किया गया तो उनका कहना था की “ अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता ” को वो रोक नहीं सकते। उन्होंने कहा की “कनाडा ने हमेशा हिंसा और हिंसा की धमकियों को बहुत गंभीरता से लिया है। हमने आतंकवाद के खिलाफ हमेशा सख्त कार्रवाई की है और हम हमेशा करेंगे। हमारा देश बेहद विविधतापूर्ण है और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता हमारे पास है। हम हमेशा यह सुनिश्चित करेंगे कि हिंसा और उग्रवाद को सभी रूपों में ख़त्म किया जाए।” पिछले दिनों तो ब्रैंपटन शहर में ऑपरेशन ब्लू स्टार की झांकी तक निकली गई थी जिसमे पूर्व प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी को मारा गया था। फिर 8 जुलाई को एक रैली के लिए निकले पोस्टर मे “किल इंडिया” लिखा था और कनाडा मे भारतीय अधिकारियों की फोटो टारगेट मे लगी हुई थी। क्या है असली वजह? दरअसल जस्टिन ट्रूडू की गठबंधन की सरकार है। और दूसरी पार्टी मे शामिल है खालिस्तानी समर्थक, जगमीत सिंह जिसे ट्रूडू का किंग मेकर कहा जाता है। तो ये “ अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता ” की बात नहीं है, बात है वोट बैंक की। सिंह खालिस्तान रेफरेंडम का समर्थन करता है। ऐसा नहीं है की प्रधान मंत्री ट्रूडू कारवाई नहीं करते। जब बात उन पर आती है तो कड़ी से कड़ी सजा भी मिलती है। जैसे की जब पिछले साल ओंटारिओ के एक व्यक्ति ने PM के ऊपर एक आपत्तिजनक ग्राफिक बनाया था तो उसे 3 महीनों के लिए घर मे नजरबंद कर दिया था और एक ने जब उनके घर पर पत्थर फेक था तो 10 महीनों के लिए घर मे बंद कर दिया गया था। भारत सरकार का क्या कहना है? भारत सरकार ने कई बार कनाडा सरकार को इन पर रोक लगाने, भारत के “वांटेड लिस्ट” मे आने वालों पर कड़ी कारवाई करने और इनके फन्डिंग पर पाबंदी लगाने को कहा है। पर हर बार उन्होंने ऐसा कुछ भी नहीं किया और आनुमान है की इसका खामियाजा आगे जाकर कई देशों को झेलना पड़ सकता है।

क्या अमेरिका सच में सूर्य की रौशनी को रोक सकता है

US के व्हाइट हाउस ने एक रिपोर्ट निकाली है जिसमे उन्होंने ये बताया है कि वो सूर्य की  रौशनी को पृथ्वी पर आने से रोकने के उपर शोध करना चाहते है. इस प्रक्रिया को सोलर रेडिएशन मॉडिफिकेशन (SRM) कहते है. उनका मानना है की इस से पृथ्वी को और ठंडा किया जा सकता है. और उसमे वक़्त भी काफी कम लगेगा. इसमें सूरज की गर्मी को धरती तक आने से रोकने के लिए धूल और भाप की एक दीवार खड़ी कर दी जाएगी. उसके बाद ही उन्होंने फिर ये साफ कर दिया की ये बस रिसर्च तक ही सीमित होगा, अभी इस पर कोई कदम नहीं उठाए जाएंगे. आज जब ग्लोबल वार्मिंग अपने चरम सीमा पर है, सभी इसी खोज मे है की इसे नियंत्रण मे कैसे लाया जाए. आए दिन किसी न किसी रिपोर्ट से ये मालूम पड़ता है की पृथ्वी का तापमान बढ़ता  जा रहा है. और इस SRM के ऊपर कई दिनों से रिसर्च जारी है पर सभी शोधकर्ता अलग अलग अनुमान लगा रहे है| इसलिए यह ढंग काफी  विवादित है. कुछ समय पहले यूनाइटेड नेशन्स इनवायरमेंट प्रोग्राम (UNEP) की एक रिपोर्ट आई, जो कहती है कि ग्लोबल वार्मिंग घटाने के लिए सूरज को ढांपने की तकनीक जानलेवा साबित हो सकती है. कौन से तरीकों की बात हो रही है? पहला तरीका  है मरीन क्लाउड ब्राइटनिंग जिससे समुद्र के ऊपर बनने वाले बदल को और सफेद कर दिया जाएगा जिससे सूर्य की किरणें स्पेस में ही वापस रिफ्लेक्ट हो जाए और दूसरा तरीका है स्ट्रेटोस्फेरिक एयरोसोल इंजेक्शन. इस प्रोसेस में साइंटिस्ट बड़े-बड़े गुब्बारों के जरिए वायुमंडल के ऊपरी हिस्से पर सल्फर डाइऑक्साइड का छिड़काव करेंगे. सल्फर सूरज की किरणों को परिवर्तित कर सकता है.कई वैज्ञानिकों और जानकारों का मानना है की ये लास्ट लाईन ऑफ़ डिफेन्स है. सभी देश अगर ग्रीन हाउस गैस को किसी भी तरीके से नियंत्रण में लाने मे नाकाम होते है तो इसक बारे में सोचा जा सकता है क्योंकि इसके फायदे से ज्यादा नुकसान होने की संभावनाएं है.हार्वर्ड और ऑक्सफोर्ड जैसी यूनिवर्सिटी भी इस रिसर्च पर जोरों शोरों से लगी हैं. एक तरफ जहां यह रिसर्च ग्लोबल वार्मिंग को कम करेगी, दूसरी ओर इसके जलवायु तंत्र पर बहुत गहरे प्रभाव कर सकते है.

Karnataka Election 2023: बजरंग दल की तुलना PFI से करने पर भड़के नरोत्तम

भोपाल – कर्नाटक विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के घोषणा पत्र में बजरंग दल पर प्रतिबंध लगाने की घोषणा पर गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा की कड़ी प्रतिक्रिया सामने आई है गृह मंत्री ने कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष और पूर्व सीएम कमलनाथ को एक पत्र लिख कर उनका जबाव माँगा है गृह मंत्री का कहना है की कमलनाथ जी स्वयं को बड़ा हनुमान भक्त बताते हैं तो उन्हें इस विषय पर अपनी स्थिति स्पष्ट करनी चाहिए . मिश्रा ने इस पत्र में लिखा है “इस घोषणा पत्र में कांग्रेस ने बजरंग दल जैसे राष्ट्र सेवी संगठन पर प्रतिबंध लगाने की घोषणा की गई है। ऐसे में कोई भी बजरंग भक्त ऐसा नहीं होगा, जिसकी भावनाएं आहत न हुई हो। पीएफआई जैसे राष्ट्र विरोधी संगठन के साथ बजरंग दल की तुलना कर इसका अपमान किया है।’ साथ ही अपने ट्वीट में नरोत्तम ने लिखा कि “तुष्टिकरण की राजनीति करने वाली कांग्रेस ने कर्नाटक में अपने घोषणा पत्र में बजरंग दल की तुलना पीएफआई से करने के साथ बजरंग दल पर प्रतिबंध लगाने की बात कर करोड़ों हिंदुओं और राम भक्तों की धार्मिक भावनाओं को आहत किया है। खुद को हनुमान भक्त बताने वाले कमलनाथ जी को बताना चाहिए कि वह अपनी पार्टी के निर्णय के पक्ष में है या विपक्ष में। साथ ही कमलनाथ जी आप यह भी बताएं कि दिग्विजय सिंह जी के बजरंग दल पर बैन करने वाले ट्विट से सहमत है या नहीं। मुझे उम्मीद है कि एक हनुमान भक्त होने के नाते आप मेरे पत्र का जवाब जरूर देंगे।” बता दें की बजरंग दल की PFI से तुलना करने पर भाजपा प्रदेश सहित पूरे देश में कांग्रेस पर हमलावर है साथ इस मामले में बजरंग दल के नेताओं की भी कड़ी प्रतिक्रिया सामने आई है