MP Chitrakoot : चित्रकूट, जिसे “अनेक आश्चर्यों की पहाड़ी” कहा जाता है, न केवल प्राकृतिक सौंदर्य का प्रतीक है, बल्कि यह एक ऐसी पावन भूमि भी है जिसने इतिहास के कई पन्नों को अपनी ओर आकर्षित किया। यह वह स्थान है जहां भगवान राम ने अपने वनवास के लगभग साढ़े ग्यारह वर्ष बिताए थे। लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस पवित्र नगरी ने मुगल बादशाह औरंगजेब के अभिमान को भी चूर-चूर कर दिया था?
MP में औरंगज़ेब को होना पड़ा मजबूर
चित्रकूट का धार्मिक महत्व रामायण काल से जुड़ा हुआ है। यह वह स्थान है जहां भगवान राम, माता सीता और लक्ष्मण ने अपने निर्वासन के दौरान निवास किया। मंदाकिनी नदी के किनारे बसा यह क्षेत्र ऋषि-मुनियों की तपोभूमि रहा है। कहा जाता है कि यहां के कण-कण में भक्ति और श्री राम बसे हैं।
पौराणिक मान्यता
ऐतिहासिक कथाओं के अनुसार, औरंगजेब ने चित्रकूट के मंदिरों को नष्ट करने की योजना बनाई थी। उसने अपनी सेना के साथ इस पवित्र भूमि पर आक्रमण किया, लेकिन यहां की आध्यात्मिक शक्ति उसके सामने एक दीवार बनकर खड़ी हो गई। कहा जाता है कि जब औरंगजेब की सेना ने मंदिरों को तोड़ने का प्रयास किया, तो अचानक उसकी सेना के सैनिक बेहोश होने लगे। यह देखकर औरंगजेब घबरा गया।
उस समय चित्रकूट में संत बालक दास नाम के एक संत रहा करते थे। औरंगजेब उनसे मदद की भीख मांगने लगा। संत बालक दास जी ने औरंगज़ेब को सलाह दी कि वह अपनी सेना को चित्रकूट से 10 किलोमीटर दूर ले जाए और मंदिरों को नुकसान न पहुंचाने का वचन दे। संत की बात मानकर औरंगजेब ने एक ताड़ के पत्ते पर यह लिखा कि वह कभी चित्रकूट के मंदिरों को नहीं तोड़ेगा। इसके बाद संत ने उसे एक राख दी, जिससे उसकी सेना ठीक हो गई।
‘बालाजी मंदिर’ का करवाया निर्माण
इस घटना ने औरंगजेब के दंभ को तोड़ दिया। इतना ही नहीं, उसने चित्रकूट में एक मंदिर का निर्माण भी करवाया, जो आज “बालाजी मंदिर” के नाम से प्रसिद्ध है। यह मंदिर इस बात का प्रमाण है कि आस्था और सत्य के सामने कोई भी नहीं टिक सकता। औरंगजेब जैसा पाखंडी शासक भी यहाँ अपनी जिंदगी की भीख मांगने लगा।
इस घटना के बाद औरंगज़ेब ने आठ गांवों की 330 बीघा जमीन और राजकोष से चांदी का एक रुपया प्रतिदिन देने का फरमान जारी किया था। इस फरमान की छायाप्रति आज भी मंदिर में मौजूद है। चित्रकूट से जाने के बाद औरंगजेब ने फिर कभी इस तरफ नजर उठाकर देखने का दुस्साहस नहीं किया।

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