स्वामी विवेकानंद ने भारत के युवाओं को एक संदेश दिया था कि हम जो भी है वह अपनी सोच की वजह से हैं इसलिए इस बात का ध्यान ऱखना चाहिए कि आप क्या सोचते हैं, वहीं आज की युवा पीढ़ी की सोच तो स्वतंत्र है ही नहीं क्योंकि वो तो नशे के वशीभूत हो चुकी है, जो उनकी सोच में एक ट्रेंड बन गया है। आज युवा दिवस के मौके पर पत्रिका की एक रिपोर्ट के ज़रिए आज हम आपको बताएंगे कि कैंसर जैसी बड़ी बीमारी के मरीजों में सबसे ज्यादा तादाद युवाओं की ही है।
60 फीसदी कैंसर मरीजों में युवा शामिल
आज हम अपने आस पास देख सकते हैं कि आज का युवा प्रारम्भिक स्कूल से ही तम्बाकू, बीडी. सिग्रेस जैसी लतों में उलझ जाता है। शुरू में तो ये सब उसके लिए खेल होता है या ट्रेंड को देखते हुए वो ये नशे कर ने लगता है पर कुछ ही सालों में ये ही नशे उसकी जिंदगी बनने का उम्र में जिंदगी खत्म कर देते हैं। भोपाल के एम्स की एक रिपोर्ट इस तथ्य को साबित करती है । जिसमें बताया गया है कि कैंसर से पीड़ित 60 फीसदी मरीजों की आयु 15 से 28 साल के बीच देखी गई है।
ओरल कैंसर के ज्यादातर मरीज युवा ही
ब्रिटिश मेडिकल जनरल में एम्स के ओरल और मैक्सिलो फेशियल सर्जन डॉ अंशुल की रिसर्च में बताया गया है कि कम मुंह खुलने यानी ओरल सबम्यूकस फाईब्रोसिस के ज्यादातर मरीज युवा ही होते हैं। जिन्होंने बेहद कम उम्र से ही तम्बाकू, गुटखा या सुपारी खाई हो।ऐसे सो मे से 10 से 12 मरीजों को कैंसर की बीमारी होती है वहीं ऐसे भी कई केस होते हैं जिसमें मरीज को मुंह खुलने की तख्लीफ ना होते हुए भी कैंसर हो जाता है। भोपाल में ओरल कैंसर के कुल मरीजों में से 14.3 % पुरूष हैं और 4.6 % महीलाँए हैं।
ओरल कैंसर के होते हैं ये चार ग्रेड
वहीं आपको बतादें कि ये ओरल कैंसर की चार ग्रेड होती हैं। इनमें पहली और दूसरी ग्रेड के मरीज एस्सरसाईज और हल्दी शहद की मदद से ठीक हो जाते हैं पर तीसरे और चौथे ग्रेड के मरीजों को सर्जरी ही करानी होती है। बतादें कि नशे के इस जाल से युवा पीढ़ी तब तक नहीं बच सकती जब तक युवा इसे अपनी प्रतिष्ठा या शान मानता रहेगा।
प्रतिमाह पान मसाला की होती है इतनी खपत
आपको जानकर हैरानी होगी कि शहर में पान मसाला के कारोबार से प्रतिमाह 50 करोड़ रूपए से ज्यादा की कमाई होती है जिसमें भी जर्दा का पाऊच सबसे ज्यादा चलन में है। और इसके बाद सिग्रेट, बीड़ी, तम्बाकू और सुपारी की खपत होती है। आपको ये भी जानना चाहिए कि सादा पान मसाला भी ओरल कैंसर जैसे रोगों को बड़ावा देता है।
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अगर इतना सब सुनने के बाद भी आपको अपनी जान की फिक्र नहीं है तो इक बार अपने परिवार के बारे में ज़रूर सोचे। और ये भी सोचें कि युवाओं के लिए जितनी बड़ी परेशानी बेरोजगारी नहीं उससे भी ज्यादा बड़ी और खतरनाक परेशानी उनका नशा है जो ना केवल उनको बल्की इस समाज को भी दीमक की तरह खत्म करने का सामर्थ्य रखता है।