महाभारत कथा: महाभारत था के वनपर्व में हमें इसका उत्तर मिलता है। एक बार अग्निदेव सप्त ऋषियों की पत्नियों पर मोहित हो जाते हैं और उन सबको तब तक देखते है जब तक उनको एहसास नहीं हो जाता की ये पाप है। अपने इस कार्य से शर्मिंदा होकर अग्निदेव वन की ओर चले जाते हैं। जहां देवी स्वाहा जो कि प्रजापति दक्ष की पुत्री होती है उनकी नजर अग्निदेव पर पड़ती है और अग्निदेव से उनको प्रेम हो जाता है।
इसके बाद अग्निदेल को प्राप्त करने के लिए देवी स्वाहा एक के बाद एक सप्त ऋषियों की पत्नियों का रूप धारण कर अग्निदेव से प्रेम करती हैं लेकिन जब वह सातवीं बार अग्निदेव के सामने आती हैं तब अग्निदेव समझ जाते है, कि देवी स्वाहा ने उनके साथ छल किया है।
लेकिन देवी स्वाहा पे क्रोधित होने की बजाय अग्निदेव उनका आभार प्रकट करते हैं क्योंकि देवी ने अग्निदेव को उनकी कामइच्छा से मुक्त किया था। फिर अग्निदेव देवी स्वाहा से विवाह कर लेते हैं और उन्हें ये वरदान देते हैं कि जब तक हवन में आहुती देते समय स्वाहा का नाम नहीं लिया जाएगा तब तक अग्निदेव उस आहुति को स्वीकार नहीं करेंगे, इसी कारण हवन में आहुति देते वक्त हम देवी स्वाहा का जाप करते हैं। महाभारत के वनपर्व में इस पूरी घटना की कथा लिखी है।
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