Aayudh

Categories

सावान के महीने में ज्योतिर्लिंग के दर्शन क्यों हैं ख़ास , जानिए मध्य प्रदेश के ज्योतिर्लिंग की पौराणिक कथा

भगवान भोलेनाथ को समर्पित सावन का महीना शुरू हो चुका है, ऐसे में यदि कोई भक्त शिव शम्भू की ज्योतिर्लिंग का दर्शन करे तो उसे अधिक फल प्राप्त होता है. भोलेनाथ के कुल 12 ज्योतिर्लिंग हैं इनमें से दो ज्योतिर्लिंग अकेले मध्य प्रदेश में ही स्थित है.प्रदेश के उज्जैन में महाकालेश्वर और खंडवा में ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग हैं. आज इस लेख के माध्यम से जानेंगे कि क्या है महाकालेश्वर और ओंकारेश्वर से जुड़ी पौराणिक कथा.

महाकालेश्वर

उज्जैन के महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग की पौराणिक कथा का वर्णन शिव पुराण में मिलता है . उसमे बताया गया है कि एक बार उज्जैन में चंद्रसेन नामक राजा राज्य करता था वो भगवान शिव का भक्त था .चंद्रसेन की मित्रता शिव के एक गण से हो गई थी जिसका नाम था

मणिभद्र . मणिभद्र ने राजा को एक चिंतामणि दी जिसके मिलते ही राजा की कीर्ति और यश चारो दिशाओं में फैलने लगे .राजा चंद्रसेन का वैभव देख अन्य राज्यों के राजा चिंतामणि के लालच में आगये और राजा चन्द्रसेन पर आक्रमण कर दिया . चंद्रसेन राज्य से भागकर महाकाल की शरण में आ गया और भगवान शिव की तपस्या करने लगा ,तभी राजा को तपस्या करता देख एक विधवा स्त्री का बेटा भी भोलेनाथ की तपस्या करने लगा .

 तपस्या में लीन हो जाने के कारण माँ की आवाज़ भी सुनाई नहीं दी ,तब माँ ने गुस्से में पूजा की सामग्री फैकना और पुत्र को मारना शुरू कर दिया .उसी समय सबके देखते ही देखते उस स्थान पर एक मंदिर प्रकट हो गया और उसमे स्वयंभू शिवलिंग का भी प्राकट्य हुआ यह . यह सब सुनकर राजा चंद्रसेन भी शिवलिंग के दर्शन करने यहां आये.उस वक्त जितने भी राज्यों के राजाओं ने हमला किया था वो भी युद्ध का मार्ग छोड़कर बाबा महाकाल की शरण में आगये.

ओंकारेश्वर

ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग मध्य प्रदेश में इंदौर के पास स्थित है . ओंकारेश्वर से जुड़ी पौराणिक कथा ये है कि एक बार शिवपुरी नामक पर्वत पर मांधाता राजा ने तपस्या की ,राजा की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें दर्शन दिया .राजा के कहने पर भगवान् शिव वहीँ शिवलिंग के रूप में रहने लगे.

तभी से इस पर्वत को मान्धाता पर्वत कहने लगे . बताया जाता है कि आज भी भगवान शिव और माता पार्वती यहाँ हर रात शयन के लिए आते हैं .मंदिर में हर रात चौसर की बिसात रखी जाती है जो सुबह मंदिर खुलने पर बिखरी हुई मिलती है और आज तक कोई भी इसका रहस्य नहीं जान पाया है .

यहाँ मंदिर को दो भागों में बांटा गया है एक है ओंकारेश्वर और दूसरा है ममलेश्वर महादेव .यह मंदिर ओम की आकार वाली पहाड़ पर स्थित है जिसके कारण इसका नाम ओंकारेश्वर रखा गया .यह पर्वत चारो ओर से पार्वती और कावेरी नदी से घिरा हुआ है .

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *