अफ्रीकी चीते कुनो में क्यों मरते जा रहे है?
अफ्रीकी चीते मरते जा रहे है, जिनमे से 4 साल का चीता तेजस अभी तक का आखिरी मरने वाला था। भारत: शुरुआती जांच के अनुसार आपसी झगड़े मे तेजस के गर्दन पर चोट आई थी जिससे उसकी मौत हो गई। भारत के चीता पुनर्वास कार्यक्रम के तहत लाये गए 7 अफ्रीकी चीते अभी तक मर चुके है। साउथ अफ्रीका और नामीबिया से 20 चीते लाए गए थे जिनमें से अब जाकर बस 16 बच गए है। उनमें से एक के 4 मे से 3 बच्चों ने भी कुपोषण और कमजोरी से अपनी जान गवा दी। और रिपोर्ट्स के अनुसार बाकियों की मौत किसी चोट या इंफेक्शन से हुई है। क्यों लाए गए थे अफ्रीकी चीते? ₹500 मिलियन का ट्रांस कॉन्टिनेंटल चीता पुनरुत्पादन का यह कार्यक्रम शायद दुनिया में अपनी तरह का सबसे महत्वाकांक्षी कार्यक्रम है। प्रयास यह है कि, अगले दशक में, लगभग 35 की आत्मनिर्भर आबादी स्थापित होने तक, हर साल पांच से 10 जानवरों को लाया जाए। दक्षिण अफ्रीका और नामीबिया में चीतों के विपरीत, जो बाड़ वाले अभयारण्यों में रहते हैं, भारत की योजना उन्हें प्राकृतिक, बिना बाड़ वाले, जंगली परिस्थितियों में विकसित करने की है। कूनो में, 17 वयस्कों में से केवल छह ही जंगल में हैं और बाकी जानवरों को भारतीय परिस्थितियों के अनुकूल बनाने में मदद करने के लिए बड़े, विशेष रूप से डिजाइन किए गए बाड़ों में रखे गए हैं। साल के अंत तक सभी जानवरों को खुले में छोड़ने की योजना है। जानवरों को रेडियो कॉलर लगाया जाता है और 24/7 ट्रैक किया जाता है। क्या है जगल अधिकारियों का कहना? भारत के अधिकारियों की माने तो उनकी उम्मीद भी यही थी क्योंकि जब किसी जानवर को विदेश से लाया जाता है तो जीवित शेष-दर बस 50% होती है। जिसकी वजह मुख्यत: नए देश के वातावरण मे ठीक से अभ्यस्त नहीं हो पाना है। पर विशेषज्ञों का ये मानना है की ये सही तरीके से ध्यान नहीं रखने की वजह से हुआ है। चीतों को रहने के लिए बड़ी जगह चाहिए होती है। यह चीतों के बीच क्षेत्रीय संघर्ष को रोकता है। और कुनो नेशनल पार्क में उन्हे जगह कम मिल रही है। इसी वजह से चीते नियंत्रित वातावरण में थे। कुछ का मानना है की राजस्थान के मुकुंद्रा बाघ अभयारण्य इन चीतों के लिए कुनो से ज्यादा अच्छी जगह हो सकती है। ये भी पढ़ें: https://aayudh.org/deep-sea-mining-in-talks/
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