जैन धर्म के सबसे श्रेष्ठ गुरू आचार्य विद्यासागर जी महाराज ने 17 फरवरी शनिवार की रात 2:35 बजे हम सब को अलविदा कह महा समाधि में लीन हो गए। रविवार की दोपहर को महाराज जी की पार्थिव शरीर का अंतिम संस्कार किया गया था। जिकसे बाद आज यानि 20 फरवरी को उनकी अस्थि संचय होगी। इस बड़ी घटना के बाद सबके जहन में यहीं चल रहा होगा की आखिर आचार्य विद्यासागर महाराज जी के बाद आचार्य की उपाधि किसे दी जाएगी।
आचार्य विद्यासागर जी महाराज ने पहले ही त्याग दिया आचार्य का पद
आपको बता दें कि जैन संत शिरोमणि आचार्य विद्यासागर जी महाराज ने 6 फरवरी को मुनि योग सागर से मिलने के बाद इस विषय पर चर्चा किए और उसके बाद आचार्य पद से त्याग कर दिया था। उन्होंने मुनि समय सागर जी महाराज को आचार्य पद देने की घोषणा भी की थी। जिसके बाद मुनि समय सागर महाराज के चंद्रगिरी तीर्थ पहुंचने के बाद विधिवत सभी नियमों के साथ उन्हें आचार्य की गद्दी सौंपी जाएगी। विद्यासागर महाराज के उत्तराधिकारी बनाए गए मुनि समय दिन मंगलवार को मध्य प्रदेश के रावल वाड़ी पहुंच गए। मुनि समय महाराज 43 साधुओं के साथ पैदल यात्रा कर 22 फरवरी को बालाघाट से डोगरगढ़ पहुंचेंगे। वहां उन्हें नियम अनुसार आचार्य की गद्दी सौंप दी जाएगी।
कौन है आचार्य समय सागर जी महाराज
समय सागर महाराज जी जैन संत शिरोमणि आचार्य विद्यासागर जी महाराज के शिष्य है। प्रथम मुनि महाराज मुनिश्री समयसागर जी महाराज अभी 65 साल के हैं जो आचार्य विद्यासागर जी महाराज के सांसारिक जीवन के छोटे भाई और शिष्य भी हैं। ये मूल रूप से कर्नाटक के रहने वाले हैं। इनका जन्म स्थान कर्नाटक के वेलगाम में है। दरअसल आचार्य समय सागर जी महाराज पहले शांतिनाथ जैन के नाम से चर्चित थे।
महाराज जी के पिता का नाम मल्लप्पाजी जैन है। इनकी मां का नाम श्रीमंति जी जैन है। जैन धर्म के अगले आचार्य संत शिरोमणि आचार्य समय सागर महाराज जी अपने छह भाई-बहनों में छठे नंबर पर है। संत शिरोमणि आचार्य समय सागर महाराज जी ने ब्रह्मचर्य व्रत दो मई 1975 को अपनाया।
इसके बाद 18 दिसंबर 1975 को उन्होंने झुल्लक दीक्षा ली है और 31 अक्टूबर 1978 को एलक दीक्षा जैन सिद्ध क्षेत्र नैनागिरी जी के छतरपुर मध्य प्रदेश में ली इसके बाद मुनि दीक्षा 8 मार्च 1980 को जैन सिद्ध क्षेत्र द्रोणगिरी जी, छतरपुर मध्य प्रदेश में ली है। जैन संत शिरोमणि आचार्य विद्यासागर जी महाराज इनके सांसारिक जीवन के भाई और दीक्षा गुरू भी है। अब अपने दीक्षा गुरू की जगह वह स्वयं लेंगे।
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