तीर्थस्थल ओंकारेश्वर के ओंकार पर्वत पर 28 एकड़ में अद्वैत वेदांत पीठ और आदि शंकराचार्य की 108 फीट ऊंची भव्य प्रतिमा का निर्माण कार्य अंतिम चरण में है। आदि शंकराचार्य की प्रतिमा को ” “स्टेच्यू ऑफ़ वननेस ” कहा जाता है।देश का चतुर्थ ज्योतिर्लिंग ओम्कारेश्वर शंकराचार्य की दीक्षा स्थली है।
जहां वे अपने गुरु गोविंद भगवत्पाद से मिले और यहीं 4 वर्ष रहकर उन्होंने विद्या अध्ययन किया। 12 वर्ष के आचार्य शंकर की यह प्रतिमा श्रद्धांजलि के रूप में स्थापित की जा रही है। यह पूरी दुनिया में शंकराचार्य की सबसे ऊंची प्रतिमा होगी।
18 सितंबर को होगा लोकार्पण
आदि शंकराचार्य की प्रतिमा का लोकार्पण मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान 18 सितम्बर को करेंगे। इस दौरान देश के कोने-कोने से आए साधू संत भी मौज़ूद रहेंगे। 18 तारीख को दो प्रोग्राम होंगे,फर्स्ट हाफ में मान्धाता पर्वत पर और सेकंड हॉफ में सिद्धवरकूट में प्रोग्राम होगा।
मान्धाता पर्वत पर एक पूजा चल रही है और आज से भी एक पूजा आरम्भ होगी, जो लगातार तीन दिन जारी रहेगी। सिद्धवरकूट में भी 2-3 हजार साधु संत धार्मिक अनुष्ठान करेंगे।

वैश्विक केंद्र होगी शंकराचार्य की प्रतिमा
मध्यप्रदेश की करीब दो हजार करोड़ रुपयों की धार्मिक एवं आध्यात्मिक योजना के तहत आकार ले रही आदि शंकराचार्य की प्रतिमा प्रथम चरण में बनकर तैयार हो चुकी है, जबकि शेष कार्यो का भूमिपूजन होना है.
सनातन धर्म के पुनरुद्धारक, सांस्कृतिक एकता के देवदूत व अद्वैत वेदांत दर्शन के प्रखर प्रवक्ता ‘आचार्य शंकर’ के जीवन और दर्शन के लोकव्यापीकरण के उद्देश्य के साथ मध्य प्रदेश शासन ने ओंकारेश्वर को अद्वैत वेदांत के वैश्विक केंद्र के रूप में स्थापित किया जा रहा है।
8 वर्ष की उम्र में ओम्कारेश्वर पहुंचे शंकराचार्य
आदि शंकराचार्य मात्र 8 वर्ष की उम्र में अपने गुरु को खोजते हुए केरल से ओमकारेश्वर आये थे, और यहां गुरु गोविंद भगवत्पाद से दीक्षा ली। यही से उन्होंने पूरे भारतवर्ष का भ्रमण कर सनातन की चेतना जगाई। इसलिए ओम्कारेश्वर के मान्धाता पर्वत पर यह 108 फीट ऊंची बहुधातु की प्रतिमा है, जिसमें आदि शंकराचार्य बाल स्वरूप में है।
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