क्या है भोजशाला का पूरा इतिहास, जानिए पूरा विवाद

सोमवार को मध्य प्रदेश के इंदौर हाईकोर्ट की पीठ ने भोजशाला के एएसआई सर्वे की इजाजत दे दी है। जिसकी रिपोर्ट 29 अप्रेल से पहले जमा होनी है। ये फैसला ज्ञानवापी के सर्वे के तर्ज पर लिया गया है आप सभी ज्ञानवापी के मामले को तो अच्छे से जानते होंगे लेकिन भोजशाला का इतिहास क्या है और क्यों यहां सर्वे की मांग उठी ये भी आज हम आपको अपनी इस रिपोर्ट में बताएंगे।

हाईकोर्ट ने दी एएसआई सर्वे को मंजूरी

आज इंदौर हाईकोर्ट में जस्टिस सुश्रुत अरविंद धर्माधिकारी और देवनारायण मिश्रा की पीठ ने भोजशाला के एएसआई सर्वे करने की मंजूरी दे दी है उन्होंने कहा कि दोनों पक्षों के प्रतिनिधियों की उपस्थिती में ये सर्वे होगा। यह सर्वे वैज्ञानिक तरीकों से मस्जिद परिसर के 50 मीटर के दायरे में होगा जिसमें अगर ज़रूरत लगी तो खुदाई भी कराई जाएगी। सबसे पहला सवाल उठता है कि क्यों होगा सर्वे तो आपको बतादें कि मध्य प्रदेश के धार में स्थित कमाल मौलाना मस्जिद को लेकर हिंदू फ्रंट फॉर जस्टिस ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी।

भोजशाला मंदिर या कमाल मौलाना मस्जिद

हिंदू पक्ष का कहना है कि मस्जिद के स्थान पर पहले मां सरस्वती का मंदिर भोजशाला था जिसका निर्माण साल 1034 में परमार शासक राजा भोज ने कराया था जहां मां शारदा की अराधना होती थी। माना जाता है कि भोजशाला का निर्माण राजा भोज ने संस्कृत की पढ़ाई के लिए बनवाया था इसे हम बिल्कुल तक्षशिला जैसा ही एक विद्धयालय मान सकते हैं। वहीं मुस्लिम पक्ष इसे मौलाना कमालुद्दीन का मस्जिद मानते हैं और सालों से दोनों पक्षों के बीच इस ेलेकर विवाद चल रहा है। जिसके बाद में अब जाकर इसके सर्वे को मंजूरी मिली है।

भोजशाला का पूरा इतिहास

अब हम आपको लेकर के चलते हैं भोजशाला के इतिहास में जिससे इस मामले का सच आपके सामने खुद आजाएगा। शुरूआत करते हैं भोजशाला के निर्माण से साल 1034 में भोजशाला का निर्माण राजा भोज ने कराया था। यह एक संस्कृत विश्वविध्यालय था। साल 1269 में अरब मूल के कमाल मौलाना धार में आकर बसे। 1305 में अलाउद्दीन खिलजी ने परमारों को हराकर अपना इस्लामी शासन जमा लिया और भोजशाला समेत कई धार्मिक स्थलों को ध्वस्त कर दिया और सन् 1514 में मेहमूद शाह खिलजी द्वितीय ने भोजशाला को तब से 204 साल पहले मृत्यु को प्राप्त हुए कमाल मौलाना की याद में यहां मस्जिद बना दी।

जब शुक्रवार को पढ़ी बसंत पंचमी

जिसके बार साल 1995 में पहले हिंदू और मुस्लिम पक्ष के बीच में विवाद हुआ फिर सुलह हुई कि मंगलवार को हिंदू पत्र पूजा करेगा और शुक्रवार को मुस्लिम नमाज पढ़ेंगे। लेकिन मई 1997 में प्रवेश पर प्रतिबंध लग गया जो कि जुलाई में ही खुल वा दिया गया और पहले जैसा ही कर दिया। कि मंगलवार और बसंत पंचमी पर यहां हिंदू लोग पूजा पाठ करते हैं और शुक्रवार को नुस्लिम पक्ष नमाज। लेकिन जब साल 2003, 2006, 2012,और 2016 में तब साम्प्रदायिक हिंसा फैस गई जब बसंत पंचमी शुक्रवार को पढ़ी और प्रशासन द्वारा किसी तरह ऐसी स्थिती को संभाला गया और अब ऐसी स्थिती साल 2026 में एक बार फिर आने वाली है जिसके पहले ही ये याचिका दायर कर दी।

इंदौर की पीठ ने भोजशाला की कार्बन डेटिंग करने और उसका वैज्ञानिक परिक्षण करने की मंजूरी दी जिससे जमीन के नीचे और उपर की संरचना कितनी पुरानी है ये पता चल सके। इस मामले को लेकर अगली सुनवाई 29 अप्रेल को होगी जिसके पहले एएसआई टीम को अपनी रिपोर्ट सौंपनी होगी। इसके अलावा सर्वे की वीडियोग्राफी भी कोर्ट को सौंपनी होगी।

ब्रिटिश म्यूजियम में है भोजशाला की प्रतिमा

आपको एक और चौंकाने वाली बात बता देते हैं कि मुगलों के आक्रमण के बाद जब अंग्रेजों का शासन हुआ तो साल 1875 में खुदाई के दौरान उस स्थान से मां वाग्देवी की प्रतिमा मिली और आप शायद विश्वास ना करें कि यह मां सरस्वती की यानी की वाग्देवी की प्रतिमा 114 सालों से ब्रिटिश म्यूजियम ग्रेट रसल में रखी हुई है और 1952 से कई बार इसे लाने के प्रयास किए पर कोई फायदा नहीं हुआ।

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