सुप्रीम कोर्ट ने आज इलेक्टोरल बॉन्ड को असंवैधानिक घोषित कर दिया है। न्यायालय का कहना है कि इस बॉन्ड के कारण जनता सूचना के अधिकार से वंचित हो रही है यह संविधान के अनुच्छेद 19 (1) (ए) के तहत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को प्रभावित करता है। कोर्ट ने निर्देश जारी कर दिए हैं कि बैंक इलेक्टोरल बॉन्ड पर रोक लगा दे।
क्या होता है इलेक्टोरल बॉन्ड
इलेक्टोरल बॉन्ड एक ऐसी तरकीब है जिसकी मदद से कोई व्यक्ति, संस्था, और कॉरपोरेट, स्टेट बैंक ऑफ इंडिया की शाखा से बॉन्ड खरीदकर अपनी मन पसंद पार्टी को दान दे सकते हैं और पार्टी उस बॉन्ड को भुनाकर अपना चंदा ले सकती है। बतादें कि इस प्रक्रिया के दौरान बॉन्ड लेने वाले की पहचान बैंक किस प्रकार से उजारा नहीं करती थी। इस बॉन्ड की एक खास बात यह थी कि इससे 1 फीसदी वोट मिलने वाली पार्टियों को ही दान दिया जा सकता था।
इलेक्टोरल बॉन्ड बनाने के पीछे की थी ये बजह
जनवरी साल 2018 में इलेक्टोरल बॉन्ड की शरूआत मोदी सरकार द्वारा की गई थी। उस समय सरकार का कहना था कि इसकी मदद से पार्टियों को दिए जा रहे चंदे में पार्दर्शिता आएगी और साफ सिथर धन आएगा। ये बॉन्ड साल में चार बार आते हैं जनवरी, अप्रेल, जुलाई और अक्टूबर में इस दौरान बैंक की शाखा में जाकर बॉन्ड लिया जाता था या फिर उसकी वेबसाईट पर जाकर ऑनलाईन खरीद लिया जाता था।
एसबीआई और चुनाव आयोग को देनी होगी जानकारी
कोर्ट ने इलेक्टोरल बॉन्ड पर रोक लगाने के साथ ही एसबीआई से 2019 से लेकर अब तक के सभी बॉन्ड की जानकारी देने को कहा है। इस जानकारी को बैंक तीन हफ्तों के अंदर कोर्ट को सौंप देगा। कोर्ट ने चुनाव आयोग ये भी 2019 से लेकर अब तक की सभी बॉन्ड को जानकारियाँ मांगी हैं यह सभी जानकारी चुनाव आयोग द्वारा ही जनता तक भी पहुँचाई जाएगी।
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