इन दिनों सोशल मीडिया पर एक संत काफी ज्यादा मशहूर चल रहे हैं। जिनको सुनने वालों की तादाद में बुजुर्गों से भी ज्यादा युवान लोग शामिल हैं। बाबा के वचनों में एक ऐसा जादू है जो हर किसी को वैराग्य की ओर अग्रसर कर सकने में सामर्थ्य रखता है। हम बात कर रहें हैं वृंदावन के महान संत प्रेमानंदजी महाराज की। जिनके बारे में आपने ये तो ज़रूर सुना होगा कि उनकी दोनों किडनी फेल हैं जिसके कारण उनका डायलेसिस होता है। लेकिन आखिर पूज्य महाराज श्री के अंदर प्रिया प्रियतम के लिए ये अनन्य भक्ति कैसे आई किस तरह से और कब बाबा ने संत बनने का निर्णय लिया।
प्रेमानंदजी महाराज का जन्म
बाबा का जन्म उत्तरप्रदेश में कानपुर के पास बसे अखरी गांव में ब्राहण कुल के अंदर हुआ। परिवार में हमेशा से ही धार्मिक माहौल मिला था। उनके दादाजी भी एक संत थे। बाबा के पिता का नेम श्री शंभू पांडे और माता का नाम श्रीमति रामा देवी था। साथ ही जब पूज्य महाराज जी पांचवी कक्षा में पड़ा करते थे तब ही उन्हें करीब 15 चालीसा कंठस्थ याद थे।
बचपन से थी बाबा का यह विचार
वह अक्सर एक बात सोचा करते थे कि मैं सबसे अधिक माँ को प्रेम करता हूँ पर निश्चित ही एक ना एक दिन माँ भी मुझे छोड़ कर चली जाएंगी , पिताजी भी चले जाएंगे और भाई भी फिर मेरा क्या होगा मैं क्या करूंगा। तो उनके मन में फिर एक ही विचार आया कि केवल भगवान ही हैं जिससे वह संबंध बना सकते हैं क्योंकि भगवान उनसे संबंध कभी नहीं तोड़ेंगे और सदैव उनके साथ रहेंगे।
13 वर्ष की आयु में प्रेमानंदजी महाराज ने छोड़ा घर
विचार करते करते ही जब वह 9 वी कक्षा में पहुँचे थे तब उनकी उम्र करीब 13 वर्ष थी इस दौरान उन्होंने अपनी माँ से भी इस विषय पर बात की पर माँ ने सोचा कि शायद बालपन के कारण वह ऐसा कह रहे थे पर एक सबह ठीक तीन बजे महाराज श्री को ऐसी उत्कंठा हुई कि वह अपने घर से भगवत प्राप्ती के उद्देष्य को साथ लेकर भाग गए। अगर आपको महाराज जी के बचपन से जुड़ी ये वीडियो अच्छी लगी हो तो हमें कॉमेंट करके ज़रूर बताए साथ ही उनसे जुड़े किसी भी सवाल को भी आप हमसे पूछ सकते हैं।