अधिकतर खालिस्तानी कनाडा में है और आए दिन कोई ना कोई खालिस्तानी गतिविधि होते रहती है। मार्च मे वहाँ के एक शहर सर्रे मे वहाँ के भारतीयों पर हमला किया गया था जिसमे कम से कम 3 लोग घायल हुए थे। फिर उसी महीने भारत हाई कमीशन पर 2 ग्रेनेड से हमला किया था। पर अब ये कोई नई बात नहीं रह गई है।
इन सब के बाद भी वहाँ की सरकार इसपर चूप क्यों है?
कनाडा के प्रधान मंत्री से जब इस पर सवाल किया गया तो उनका कहना था की “ अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता ” को वो रोक नहीं सकते। उन्होंने कहा की “कनाडा ने हमेशा हिंसा और हिंसा की धमकियों को बहुत गंभीरता से लिया है। हमने आतंकवाद के खिलाफ हमेशा सख्त कार्रवाई की है और हम हमेशा करेंगे। हमारा देश बेहद विविधतापूर्ण है और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता हमारे पास है। हम हमेशा यह सुनिश्चित करेंगे कि हिंसा और उग्रवाद को सभी रूपों में ख़त्म किया जाए।”
पिछले दिनों तो ब्रैंपटन शहर में ऑपरेशन ब्लू स्टार की झांकी तक निकली गई थी जिसमे पूर्व प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी को मारा गया था। फिर 8 जुलाई को एक रैली के लिए निकले पोस्टर मे “किल इंडिया” लिखा था और कनाडा मे भारतीय अधिकारियों की फोटो टारगेट मे लगी हुई थी।
क्या है असली वजह?

दरअसल जस्टिन ट्रूडू की गठबंधन की सरकार है। और दूसरी पार्टी मे शामिल है खालिस्तानी समर्थक, जगमीत सिंह जिसे ट्रूडू का किंग मेकर कहा जाता है। तो ये “ अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता ” की बात नहीं है, बात है वोट बैंक की। सिंह खालिस्तान रेफरेंडम का समर्थन करता है।
ऐसा नहीं है की प्रधान मंत्री ट्रूडू कारवाई नहीं करते। जब बात उन पर आती है तो कड़ी से कड़ी सजा भी मिलती है। जैसे की जब पिछले साल ओंटारिओ के एक व्यक्ति ने PM के ऊपर एक आपत्तिजनक ग्राफिक बनाया था तो उसे 3 महीनों के लिए घर मे नजरबंद कर दिया था और एक ने जब उनके घर पर पत्थर फेक था तो 10 महीनों के लिए घर मे बंद कर दिया गया था।
भारत सरकार का क्या कहना है?
भारत सरकार ने कई बार कनाडा सरकार को इन पर रोक लगाने, भारत के “वांटेड लिस्ट” मे आने वालों पर कड़ी कारवाई करने और इनके फन्डिंग पर पाबंदी लगाने को कहा है। पर हर बार उन्होंने ऐसा कुछ भी नहीं किया और आनुमान है की इसका खामियाजा आगे जाकर कई देशों को झेलना पड़ सकता है।