देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी मध्यप्रदेश के शहडोल के दौरे पर हैं. पहले प्रधानमंत्री का यह दौरा 27 जुलाई को होने वाला था लेकिन बारिश के कारण इसकी तारीख आगे बढ़ा दी गई. शहडोल जिले में 44.65% आबादी जनजातीय समुदाय की है, वहीँ पुरे मध्यप्रदेश में जनजाति आबादी 21.1% है. प्रधानमन्त्री से पहले भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जे. पी. नड्डा खरगोन के दौरे पर थे और गृहमंत्री का बालाघाट दौरा प्रस्तावित था. खरगोन और बालाघाट भी जनजातीय बहुल जिले हैं. ऐसे में एक बात तो साफ़ है कि मध्यप्रदेश विधानसभा और 2024 के लोकसभा चुनावों को देखते हुए भाजपा जनजातीय वोटर्स पर फोकस कर रही है. मध्यप्रदेश में जनजातीय समुदाय की बड़ी आबादी उन्हें महत्वपूर्ण बनाती है और यही कारण है कि हर राजनीतिक दल उन्हें साधने की कोशिश में लगा है.
क्यूँ ख़ास हैं जनजाति ?
मध्यप्रदेश में जनजातियों की संख्या आबादी की 21.1% है, 100 विधानसभा सीटों में जनजातीय आबादी 15% से ज्यादा है. मध्यप्रदेश की कुल 230 विधानसभा सीटों में से 47 सीटें जनजातीय समाज के लिए आरक्षित है और 2018 के विधानसभा चुनावों में 30 सीटें कांग्रेस के हिस्से में आयीं थी और 16 सीटों पर भाजपा के उम्मीदवार जीते थे. 2023 के चुनावों में अगर मध्यप्रदेश भाजपा जनजातीय वोटर्स को साध लेती है तो जीत की संभावना कहीं ज्यादा बढ़ जाएगी.
2018 में क्यूँ मिली कांग्रेस को बढ़त ?
2018 के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस ने जनजातीय वोटर्स को साधने के लिए कई दांव चले थे, इनमें से एक था जय युवा आदिवासी (जयस) के संस्थापक हीरालाल अलावा को मनावर विधानसभा से टिकट देना. कांग्रेस के इस कदम ने जनजातीय युवाओं के बीच एक्टिव कैडर को कांग्रेस के साथ कर दिया. इसके साथ हीं कांग्रेस ने अपने वचनपत्र में जनजातीय समुदाय से 68 वादे किये थे जिनमें से एक पेसा एक्ट को लागू करना था. पुरे प्रदेश और देश में एक नैरेटिव चलाया गया कि मध्यप्रदेश में जनजातियों के साथ अत्याचार हो रहा है. जनजातियों को हिन्दू समाज से अलग बताने का प्रोपगेंडा और स्थानीय स्तर पर काम कर रहे सैंकड़ों एनजीओ का नेटवर्क भी कांग्रेस के लिए मददगार रहा.
2023 क्यूँ अलग है?
सबसे पहले अगर कांग्रेस से ही शुरुवात करें तो जो हीरालाल अलावा 2018 में कांग्रेस की शक्ति बने थे उन्होंने कांग्रेस के खिलाफ मोर्चा खोल रखा है. विधानसभा चुनावों से पहले हीं हीरालाल अलावा ने साफ़ कर दिया है कि जयस और कांग्रेस एक नहीं हैं. दूसरी तरफ अपने 15 महीने के शासन में जहाँ कांग्रेस ने जनजातीय समाज के साथ किया एक भी वादा पूरा नहीं किया, वहीँ शिवराज सरकार द्वारा जनजातीय समाज को मिलने वाली कई योजनायें बंद करवा दी. जैसे जनजातीय छात्रों को मिलने वाले स्कालरशिप, सहरिया महिलाओं को मिलने वाला पोषण भत्ता.
दूसरी तरफ भाजपा लगातार जनजाति समाज के बीच काम करती रही. शिवराज सिंह चौहान ने वर्षों से हो रही पेसा एक्ट की मांग को पूरा किया. भाजपा सरकार जनजातीय समाज के गौरव और विकास के लिए दर्जनों योजनायें लेकर आई. देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की मौजूदगी में जनजातीय गौरव दिवस की घोषणा की गयी और देश के पहले पीपीपी मॉडल पर बने रेलवे स्टेशन का नाम गौंड महारानी कमलापति के नाम पर रखा गया.
मध्यप्रदेश की सरकार ने सिद्धू-कान्हो और तांत्या मामा जैसे जनजातीय वीरों को सम्मान दिलवाया. इसके साथ हीं जनजातीय क्षेत्रों में मेडिकल कॉलेज और विकास कार्यों को भी बढ़ावा दिया गया. 2018 के विधानसभा चुनावों के बाद जनजातीय समुदाय के साथ हुए धोखे की परत को साफ़ कर विकास की कहानी लिखी गई. इन सभी तःयों और जनजाति समुदाय के बीच भाजपा की स्वीकार्यता को देखते हुए एक बात साफ़ लग रही है कि 2023 में भाजपा जनजातीय सीटों पर बढ़त लेकर आगे रहेगी.