धनतेरस दिवाली की शुरुआत का एक अच्छा प्रतीक है और यह समृद्धि के प्रतीक के रूप में कीमती धातुओं, विशेष रूप से सोने और चांदी की खरीद से जुड़ा है। दिवाली के पहले धन और सौभाग्य को आमंत्रित करते हुए, घरों को साफ करने और सजाने का भी समय है. धनतेरस पर, कुछ लोग गाय के गोबर से बने दीपक जलाने की परंपरा का पालन करते हैं, माना जाता है कि यह घर में समृद्धि लाता है और नकारात्मक ऊर्जा को दूर करता है. यह सामान्य दिवाली समारोहों में एक अनोखा मोड़ है. धनतेरस के दिन भगवान धन्वंतरि की पुजा की जाती है. भारत में भगवान धन्वंतरि का केवल एकमात्र मंदिर है जो स्थान काशी के प्रसिद्ध सुड़िया में स्थित है, जिसमें भगवान की आष्टधातुकृत मूर्ति है, जो करीब 325 साल पुरानी है. धनतेरस के दिन भगवान धन्वंतरि के सार्वजनिक दर्शन का अद्वितीय अनुभव होता है. इस मंदिर का साल भर में केवल एक ही दिन खुलने का परंपरागत आचरण है, जिसका इंतजार भक्तों को धनतेरस के दिन होता है। इस समय, भगवान धन्वंतरि के दर्शन केवल पाँच घंटे तक सीमित होते हैं. इस वर्ष, श्री धन्वंतरि पूजनोत्सव विक्रम संवत 2080 कार्तिक कृष्ण 13 शुक्रवार को होगा, और मंदिर का पट धनतेरस के दिन सायंकाल 5 बजे से रात्रि 10 बजे तक ही खुलेगा.
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