Aayudh

मध्यप्रदेश की सांस्कृतिक यज्ञ में शिवराज की आहुति

मैं मानता हूँ सरकार का काम भौतिक प्रगति करना है, विकास और जनता का कल्याण ये है. लेकिन लोगों को संतों के मार्गदर्शन में ठीक दिशा मिले ये भी सरकार का काम है. ये विचार मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की है. जब प्रदेश के मुखिया की ये दृष्टि हो तो निश्चय हीं उसका प्रभाव सरकार के कामों पर दिखता है. बीते 18 वर्षो में शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में सरकार ने प्रदेश के सांस्कृतिक वैभव को अद्भुत रूप से बढाने का काम किया है.

मध्यप्रदेश की धरती हमेशा से भारत का सांस्कृतिक केंद्र रही है. इसी मध्यप्रदेश की भूमि में सतयुग में भगवान् ब्रह्मा ने तपस्या की, त्रेता युग में भगवान् राम 12 वर्षों तक चित्रकूट में रहे. द्वापर युग में भगवान् श्री कृष्ण ने उज्जैन में शिक्षा प्राप्त की और कलयुग में आदि गुरु शंकराचार्य ने यहाँ दीक्षा ली. आज मध्यप्रदेश के ओम्कारेश्वर के पास आदि गुरु शंकराचार्य के संदेशों की स्मृति में विशाल एकात्मता की प्रतिमा का निर्माण हो रहा है. 108 फीट ऊंची यह प्रतिमा 54 फीट ऊंचे प्लेटफार्म पर स्थापित होने वाली है. प्रतिमा के निर्माण के लिए प्रदेश सरकार ने दो हजार करोड़ का बजट दिया और उसे तेजी से पूरा भी करवाया.

सिर्फ प्रतिमा बना कर छोड़ दिया ऐसा नहीं है. प्रदेश सरकार द्वारा स्थापित आचार्य शंकर सांस्कृतिक एकता न्यास ने पुरे देश में घूम घूम कर आचार्य शंकर के संदेशों का प्रसार किया. मध्यप्रदेश की सरकार एकमात्र ऐसी सरकार है जो वृद्धों को हवाई जहाँ से तीर्थ दर्शन करवाती है और युवाओं को एकात्म का पाठ भी पढ़ाती है. ये सरकार का संस्कृति और समाज से लागाव हीं तो है कि अपने शासन काल में भाजपा सरकार ने हजारों नहीं बल्कि लाखों वृद्धों को सरकारी सहयोग से तीर्थों का दर्शन करवाया.

आप भोपाल समेत प्रदेश के किसी भी बड़े शहर में निकल जाएँ, जो दीवारें कभी धुल और पान के पीक से ढंकी मिलती थी वो आज भारतीय संस्कृति और कला के अद्भुत नमूनों से ढंकी हुई है. कहीं जनजातीय समुदाय के पारंपरिक चित्र बने हैं तो कहीं पौराणिक कथाओं और शिक्षाओं को दर्शाते जीवंत भित्तिचित्र. कितनी खुबसूरत बात है आप खुद सोचिये की अगर आज कोई बालक मध्यप्रदेश के शहरों में घुमने भर निकल जाए और अपने आस पास ध्यान से देखे तो वो अपने साथ वो वेदज्ञान लेकर आएगा जिसके लिए ऋषियों-मुनियों ने अपना जीवन खपा दिया.

मुख्यमंत्री अपने भाषणों में अक्सर कहते हैं कि भौतिकता की दगदग अग्नि में दग्ध विश्व मानवता को संस्कार और अध्यात्म का पाठ भारत ही पढ़ा सकता है. हमारी अर्तव्यवस्था लगतार मजबूत हो रही है, आज भारत विश्व का सर्वाधिक युवा और जनसँख्या वाला देश है. ऐसे में निश्चय हीं भारत आगे बढ़कर विश्व के विकास की बागडोर को संभालेगा, और इसमें कोई संदेह नहीं उस समय भारत का दिशा हमारी संस्कृति देगी, हमारे संस्कार देंगे.

मध्यप्रदेश की सरकार ने सांस्कृतिक वैभव को जन-जन तक पहुंचाने के लिए अनेक ऐसे कदम उठाये हैं जिन्हें आप गिनने बैठो तो आप गिनती भूल जाओगे. इसी सरकार के मार्गदर्शन में भोपाल का जनजातीय संग्राहलय बना, जो आज के समय में देश का एकमात्र ऐसा केंद्र है जहाँ आप एक छत के निचे जनजातीय समाज की कला, संस्कृति, नृत्य, गायन, खान-पान सबको समझ सकते हो. इसी सरकार ने भारत भवन को एक ऐसे सांस्कृतिक केंद्र की तरह विकसित किया कि आज देश भर के कलाकार यहाँ आना अपना सौभाग्य समझते हैं. यहाँ के भूरी बाई जैसे कलाकारों को पद्म पुरस्कार से सम्मानित किया गया. त्रिवेणी संग्राहलय जैसा अद्भुत केंद्र, जहाँ जाकर आप सम्पूर्ण श्रृष्टि के ज्ञान और जान सकते हैं, इसी सरकार ने बनवाया.

अब सांस्कृतिक वैभव की बात करें और महाकाल की नगरी उज्जैन में बने महाकाल लोक का जिक्र न हो ये तो संभव नहीं है. शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में एक ऐसा वैभवशाली महाकाल लोक बना जिसके उद्घाटन पर स्वय प्रधानमंत्री उसके वैभव को देखकर भावविभोर हो गए. जिसके दर्शन के लिए देश हीं नहीं बल्कि दुनिया भर से लाखों की संख्या में श्रद्धालु उज्जैन पहुँचने लगे हैं. शिवराज सरकार से पहले किसी ने इसका ख्याल भी नहीं लाया होगा कि महाकाल के उज्जैन को इतना भव्य रूप भी दिया जा सकता है. अब तो जल्द हीं सलकनपुर लोक और भव्य राम वन पथ गमन क्षेत्र का भी निर्माण होने वाला है.

पुरे विश्व ने देखा की किस तरह 2016 में शिवराज सिंह के नेतृत्व में भाजपा सरकार ने अद्भुत, दिव्य सिंहस्थ कुम्भ का आयोजन किया. देश और दुनिया से 7.5 करोड़ श्रद्धालु इस अद्भुत आयोजन में शामिल हुए और मजाल हो कि किसी को थोड़ी भी परेशानी आई हो. पुरे उज्जैन को दुल्हन की तरह सजा दिया गया, विक्रमादित्य के वैभव और महाकाल की महिमा को इतने खुबसूरत तरीके से चित्रित किया गया कि भूतो न भविष्यति.

अपने सम्पूर्ण शासन काल में जिस तरह शिवराज सिंह चौहान ने मध्यप्रदेश के सांस्कृतिक वैभव को निखारने का काम किया है, वो कोई आध्यात्मिक व्यक्ति हीं कर सकता है. मुख्यमंत्री के भाषण आज भी संस्कृत के खुबसूरत और ओजपूर्ण श्लोकों से भरे होते हैं. उनकी ललाट पर चमकता तेज शायद इश्वर का आशीर्वाद है जो उन्हें इस सांस्कृतिक गौरव की पुनर्स्थापना की लिए मिला है.

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