प्रयागराज। 13 जनवरी से शुरू हुआ महाकुंभ अब कुछ ही दिनों में समाप्त होने वाला है। धर्म, आध्यात्म ,परंपरा और पर्यटन के विभिन्न पहलुओं को प्रदर्शित करने वाला महकुंभ इस सदी का सबसे बड़ा समागम है। इसी समागम में अलग-अलग राज्यों के प्रतिनिधि मंडल भी शामिल हुए हैं। इसी में एक प्रतिनिधि मंडल कश्मीरी पंडितों का भी है।
जी हाँ, वही कश्मीरी पंडित जिन्हें 90 के दशक में उन्हीं के कश्मीर से भगा दिया गया। इतने अत्याचार किए गए की उन्हें कश्मीर छोड़ना पड़ा। जब भी कश्मीरी पंडितों का जिक्र होता है तो आँखों के सामने उस समय की तस्वीरें घूमने लगती हैं। कैसे उन्हें रातों- रात वहां से भगा दिया गया था। साल 1990 से लेकर अब तक वो अपने हक़ की मांग कर रहे हैं, मगर सरकार अब भी उनकी मांगों को पूरा करने में असफल है।
जब Aayudh की टीम कश्मीरी पंडितों के शिविर में पहुंची तो उन्होंने बताया कि कश्मीरी पंडित आज भी विपरीत परिस्थितियों में जी रहे हैं।
क्या कहना है शिविर के संस्थापक का ?

जब Aayudh की टीम ने शिविर के संस्थापक अश्विनी जी से बात कि तो उन्होंने बताया कि इस शिविर के लगाने के पीछे का उद्देश्य हिन्दू समुदाय के लोगों को अपनी दास्तां सुनाना है। उन्होनें बताया कि हम कुंभ में अपने हिस्से के मूल्यों को देने आए हैं। उन्होंने सरकार से अपील की है कि जम्मू शहर में कश्मीरी पंडितों का एक बड़ा तबका दयनीय स्तिथि में जी रहा है। सरकार उनके लिए कुछ कदम उठाए।
कश्मीर और देश के अलग-अलग हिस्सों से आने वाले कश्मीरी पंडितों के लिए इस शिविर में भोजन और रुकने कि निः शुल्क व्यवस्था की गई है।
1990 में बेटियों की प्राइवेसी ख़त्म हो गई थी
जब Aayudh की टीम ने एक महिला से बात करने की कोशिश कि तो उन्होंने भी हमें एक ऐसी कहानी सुनाई, जिसने हमें झंकझोर कर रख दिया। उन्होंने बताया कि 1990 में जब कश्मीरी पंडितों को भगाया गया तब एक ही घर में 15-15 परिवार रहने को मजबूर थे। बेटियों और महिलाओं की प्राइवेसी ख़त्म हो चुकी थी। पार्टिशन के लिए साड़ियों का इस्तमाल किया जाता था।
उन्होंने बंदूक उठाया, हमनें कलम उठाई
90 के दसक में प्रताड़ित कश्मीर के लोगों का कहना है कि यदि आज हम अपने हालातों को थोड़ा भी बेहतर कर पाए हैं तो उसके पीछे की वजह है ‘शिक्षा’। हमनें भले ही एक वक्त खाना खाया हो मगर अपने बच्चों को पढ़ाया है।
संघियों को मारने के लिए नाम निकाले गए

कश्मीरी पंडितों के शिविर में जब Aayudh की टीम लोगों से बात कर रही थी तभी एक व्यक्ति ने कहा – “उन्होंने तो हमें मारने के लिए हिटलिस्ट निकाले थे।” जब Aayudh की टीम ने उनसे पूरी जानकारी ली तब पता चला कि उनका नाम कुलदीप है, वो संघी हैं और कश्मीर में शाखा चलाते थे। उनका कहना है कि कश्मीर में उस वक्त की सरकार हमें इंडिया का एजेंट कहती थी।
अब सवाल ये है कि अपने ही देश के एक राज्य में रहने वाला व्यक्ति अपने ही देश का एजेंट कैसे हो सकता है, उन्होंने हमें आगे बताया कि अचानक एक दिन रात को सभी मुस्लिम समुदाय के लोग निकलकर ‘यहाँ बनेगा पाकिस्तान’ के नारे लगाने लगे थे।
इन कहानियों से आपको इतना तो जरूर पता चल गया होगा कि कश्मीरी पंडितों को 90 के दशक में किन-किन हालातों से गुजरना पड़ा।
Article 370 हटने से क्या हैं उम्मीदें ?
जब Aayudh की टीम ने कुलदीप जी से आर्टिकल 370 के बारे में सवाल किया तो उनके चेहरे पर एक मुस्कान तो आई मगर साथ ही उन्होंने एक चिंता भी जताई। उन्होंने कहा कि सरकार ने आर्टिकल 370 को हटाकर एक अच्छा कदम उठाया है मगर अभी उसका असर दिखने में कम से कम दस साल लगेंगे।
यदि आप भी कश्मीरी पंडितों के इतिहास, उनपर हुए अत्याचार और बरबर्ता की कहानी को सुनना और समझना चाहते हैं तो Aayudh के यूट्यूब चैनल पर सुन सकते हैं।
Watch : https://youtu.be/cDlY7sJ0bAE?si=Q8ZfhOixhz_0Jw6O
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