VK Saxena vs Medha Patkar : कोर्ट से मिली डबल राहत

Delhi LG vs Medha Patkar : दिल्ली के उपराज्यपाल (LG) विनय कुमार सक्सेना और सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटकर के बीच चल रहा मानहानि का मामला हाल के दिनों में खूब सुर्खियों बटोर रहा है। यह विवाद, करीब 23 साल पुराना है। नर्मदा बचाओ आंदोलन की लीडर मेधा पाटकर और तत्कालीन गैर-सरकारी संगठन (एनजीओ) प्रमुख वीके सक्सेना के बीच शुरू हुआ था।

इस मामले में साकेत कोर्ट ने हाल ही में महत्वपूर्ण फैसला सुनाया, जिसके तहत मेधा पाटकर को राहत मिली है। आइए, इस मामले की पूरी कहानी को समझते हैं।

कैसे हुई शुरुआत ?

यह विवाद 2000 में शुरू हुआ, जब वीके सक्सेना अहमदाबाद स्थित एक NGO नेशनल काउंसिल फॉर सिविल लिबर्टीज के अध्यक्ष थे। उस समय मेधा पाटकर नर्मदा बचाओ आंदोलन के जरिए नर्मदा नदी पर बड़े बांधों के निर्माण के खिलाफ आवाज उठा रही थीं। सक्सेना ने पाटकर और उनके आंदोलन के खिलाफ विज्ञापन प्रकाशित किए, जिसे पाटकर ने अपमानजनक बताकर उनके खिलाफ मुकदमा दायर किया।

जवाब में, सक्सेना ने 2001 में पाटकर के खिलाफ दो मानहानि के मामले दर्ज किए। इनमें से एक मामला एक टीवी चैनल पर की गई टिप्पणी से जुड़ा था, जबकि दूसरा 25 नवंबर, 2000 को जारी एक प्रेस नोट से संबंधित था, जिसमें पाटकर ने सक्सेना को “कायर” और “गैर-देशभक्त” कहा था, साथ ही हवाला लेनदेन में शामिल होने का आरोप लगाया था।

कानूनी प्रक्रिया और सजा

लंबी कानूनी लड़ाई के बाद, मई 2024 में साकेत कोर्ट के मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट राघव शर्मा ने मेधा पाटकर को आपराधिक मानहानि का दोषी ठहराया। 1 जुलाई, 2024 को कोर्ट ने उन्हें 5 महीने की साधारण कैद और सक्सेना को 10 लाख रुपये मुआवजा देने का आदेश दिया। कोर्ट ने माना कि पाटकर के बयान से सक्सेना की प्रतिष्ठा को गंभीर नुकसान पहुंचा। हालांकि, उनकी उम्र और स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए सजा को 1 अगस्त तक निलंबित कर दिया गया, ताकि वे अपील दायर कर सकें।

कोर्ट से मिली बड़ी राहत

29 जुलाई, 2024 को साकेत कोर्ट के अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश विशाल सिंह ने पाटकर की सजा को निलंबित कर दिया और उन्हें 25,000 रुपये के मुचलके पर जमानत दे दी। कोर्ट ने सक्सेना को जवाब दाखिल करने के लिए नोटिस जारी किया और मामले की अगली सुनवाई 4 सितंबर को तय की।

इसके बाद, 8 अप्रैल, 2025 को एक और महत्वपूर्ण फैसले में कोर्ट ने कहा कि पाटकर को जेल नहीं जाना पड़ेगा। उन्हें एक साल की परिवीक्षा पर रिहा किया गया और जुर्माने की राशि को भी कम करके 1 लाख रूपए कर दिया गया। कोर्ट ने माना कि पाटकर एक सम्मानित सामाजिक कार्यकर्ता हैं और उनका अपराध इतना गंभीर नहीं कि उन्हें जेल की सजा दी जाए।

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