महाशिवरात्री 8 मार्च को मनाई जाएगी। इस दिन भगवान शिव के भक्त अलग अलग उपायों से भगवान शिव को मनाते हैं। इस दिन शिव भक्त अपने प्रभु की रात्रि चार प्रहरों में पूजा करते हैं और शिवलिंग का अभिषेक करते हैं। ऐसे लोग जो इस दिन व्रत रहते हैं वह पंचामृत से भगवान का अभिषेक कर महाशिवरात्री व्रत कथा को सुनते हैं।
महाशिवरात्री व्रत कथा
एक बार माता पार्वती ने भगवान से पूछा कि प्रभु आपको पाने का सरल और सुगम उपाय क्या है तो भोलेनाथ से मुस्कुराते हुए कहा कि देवी ध्यान से सुनो जो फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी का व्रत करता है उस से मैं शीघ्र ही प्रसन्न हो जाता हूँ। इस के बाद भगवान माता पार्वती को इस व्रत की कथा सुनाते हैं वह कहते हैं कि एक गांव में एक शिकारी रहता था। वह शिकार शिकार कर के ही अपने परिवार को पालता था। शिकारी पर गांव के ही एक साहूकार का कर्ज था जिसे वह लाख महनत कर के भी चुका नहीं पा रहा था।
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एक बार साहूकार ने उसे बंदी बना कर शिवमठ में बंद कर दिया। इस दिन शिवरात्री थी और शिकारी ने उस की कथा भी सुनी। जब शाम को शिकारी को साहूकार के पास ले जाया गया तो शिकारी ने उससे वादा किया वह कल अपना उधार ज़रूर चुका देगा। ऐसा कह कर शिकारी घने जंगल की ओर चल दिया। वह शिकार की खोज में एक बील के पेड़ पर जाकर बैठ गया। उस पेड़ के नीचे एक शिवलिंग मौजूद था जो की पत्तों से ठका हुआ था। शिकारी बैठे बैठे बील के पत्ते तोड़ तोड़कर नीचे गिरा रहा था लोकिन अनजाने में वह पत्ते शिवलिंग पर गिर रहे थे। इस तरह से शिकारी की अनजाने में ही सही पर शिलिंग की पूजा हो रही थी।
व्रत का ऐसा है प्रभाव
शिकारी को लम्बे इंतजार के बाद एक हिरणी दिखाई दी शिकारी उसे मारने ही वाला था कि हिरणी ने उससे प्रार्थना की वह बच्चों को जन्म देने वाली है। जैसे ही वह बच्चों को जन्म दे देदी तो खुद आकर शिकार बन जाएगी। इस बात पर शिकारी ने उसे छोड़ दिया। फिर जब हिरणी अपने बच्चों के साथ वापस आई पर कहने लगी वह इन बच्चों के पिता को ढूढ रही है जैसे ही वह मिलेंगे तो वह खुद आ जाएगी। कुछ देर बाद ही एक हिरण आया शिकारी उसे मारना चाहता था पर वह बोला कि अगर तुमने मेरी पत्नी और बच्चों को मार दिया है तो मुझे भी मार दो पर अगर अभी नहीं मारा है तो मैं उन से एक बार मिल लूं फिर मैं खुद शिकार बन जाऊंगा।
शिकारी उसे भी छोड़ देता है कुछ ही समय में हिरण को पूरा परिवार शिकार बनने के लिए खुद ही आ जाता है पर अनजाने में हुए शिवरात्री के व्रत और पूजा से शिकारी का हृदय पिघल जाता है और वह उन्हें छोड़ देता है। इस के साथ ही उनसे मन में भगवान शिव के प्रति अपार प्रेम आ जाता है। इस के प्रभाव से अंत में उसकी वही गति होती है जो भजन करने वाले साधु की होती है।