Martyrs day: अहिंसा और शांति के पुजारी महात्मा गांधी की आज 75वीं डेथ एनिवर्सरी (Martyrs day) है। बापू के विचारों को आज भी लोग उतना ही महत्व देते है जितना आजादी के पहले देते थे। यूं ही नहीं इनको ‘राष्ट्र पिता’ की उपाधि दी गई है। वे मानवता और शांति के प्रतीक हैं। वैसे तो इनका नाम मोहनदास करमचंद गांधी है पर इनको महात्मा गांधी, बापू, अहींसा के पुजारी और राष्ट्रपिता के नाम से भी जाना जाता है। गांधी को याद करना मतलब बदलती दुनिया के लिए कालातीत ज्ञान। आज महात्मा गांधी की 75वीं पुण्य तिथि (Martyrs day ) है और इस प्रतिष्ठित व्यक्ति की स्थायी विरासत पर विचार करने का एक उपयुक्त अवसर है। भारत के अहिंसक स्वतंत्रता आंदोलन के नेता गांधीजी अपने पीछे बहुमूल्य विचारों का खज़ाना छोड़ गए जो पीढ़ियों तक गूंजता रहेगा।
एक शक्तिशाली आयुध के रूप में अहिंसा- गांधी के दर्शन के मूल में “अहिंसा” का सिद्धांत था। वह शांतिपूर्ण प्रतिरोध की परिवर्तनकारी शक्ति में विश्वास करते थे, उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि सच्ची ताकत शारीरिक शक्ति में नहीं बल्कि अटूट साहस और नैतिक दृढ़ता के साथ प्रतिकूल परिस्थितियों का सामना करने की क्षमता में निहित है। अहिंसा पर उनकी शिक्षाओं ने विश्व स्तर पर नागरिक अधिकार आंदोलनों को प्रेरित किया, जिसने इतिहास की दिशा को आकार दिया।
सत्याग्रह – सत्य की शक्ति- गांधी ने “सत्याग्रह” की अवधारणा पेश की, एक दर्शन जो अहिंसक तरीकों से सत्य की खोज की वकालत करता था। इसने व्यक्तियों को ईमानदारी और दृढ़ विश्वास के साथ अन्याय के खिलाफ खड़े होने के लिए प्रोत्साहित किया। यह सिद्धांत उत्पीड़न के खिलाफ लड़ाई में आधारशिला बन गया, जिससे साबित हुआ कि सच्चाई की ताकत सकारात्मक बदलाव ला सकती है।
सादगी और विनम्रता- अक्सर भौतिक गतिविधियों से प्रेरित दुनिया में, गांधी का जीवन सादगी और विनम्रता का उदाहरण है। वह संपत्ति संचय करने के बजाय उद्देश्यपूर्ण जीवन जीने में विश्वास करते थे। न्यूनतम जीवन शैली अपनाकर उन्होंने प्रदर्शित किया कि सच्ची खुशी दूसरों की सेवा और उच्च आदर्शों की खोज में मिलती है।
सर्वोदय – सभी के लिए कल्याण- गांधी ने एक ऐसे समाज की कल्पना की जहां हर व्यक्ति की भलाई को प्राथमिकता दी जाए। उनकी “सर्वोदय” की अवधारणा का उद्देश्य सामाजिक और आर्थिक समानता पर जोर देते हुए सभी का उत्थान करना था। यह दृष्टिकोण समावेशी विकास और सामाजिक न्याय की वकालत करने वाले आंदोलनों को प्रेरित करता रहता है।
चरित्र के लिए शिक्षा- गांधीजी के लिए, शिक्षा का अर्थ केवल ज्ञान प्राप्त करना नहीं बल्कि चरित्र निर्माण करना था। उन्होंने ऐसे व्यक्तियों को आकार देने में शिक्षा के महत्व पर जोर दिया जो न केवल बौद्धिक रूप से कुशल हों बल्कि नैतिक रूप से भी ईमानदार और दयालु हों। शिक्षा के प्रति उनका समग्र दृष्टिकोण जिम्मेदार नागरिकों को विकसित करने के लिए एक शाश्वत मार्गदर्शक बना हुआ है।
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