सनातन धर्म के सभी ग्रन्थों और पुराणों में सबसे श्रेष्ठ श्रीमद्भगवतगीता को माना जाता है। श्रीमद्भगवतगीता को ना केवल भारत में बल्कि सम्पूर्ण विश्व में एक मार्गदर्शक के तौर पर देखा जाता है। बतादें कि गीता का प्राकट्य मार्गशीर्ष मास की शुक्लपक्ष की एकादशी तिथि को हुआ था जिसे आज के दौर में लोग गीता जयंती के तौर पर मनाते हैं।
क्यों मनाई जाती है गीता जयंती
सनातन धर्म के सभी वेदों और पुराणों की रचना महार्षी वेद्व्यास ने की है। पर श्रीमद्भगवतगीता का रचना किसी के द्वारा नहीं की गई थी बल्कि यह एक प्रकार की श्रुति है यानि जो सुनी गई था। दरअसल गीता का जन्म स्वयं श्रीकृष्ण के मुख से हुआ है। गीता वही ज्ञान है जिसे कुरुक्षेत्र में श्रीकृष्ण ने अर्जुन को दिया था और उसी दिन को गीता जयंती का नाम दिया गया।
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गीता का महत्व
भगवतगीता में कुल 18 अध्याय हैं । इन अठारह अध्यायों में वह ज्ञान व्याप्त है जिसे अर्जुन से भगवान के श्रीमुख से सुना। माना जाता है कि यदि मनुष्य को जीवन में कोई भी दुविधा आती है तो वह उसका फल गीता से ले सकता है। भगवतगीता में बताती है कि हम क्या हैं और हमारा जीवन लक्ष्य क्या है। साथ ही श्रीमद्भगवतगीता हमें जीवन जीने का और कर्म करने का सही सलीका भी सिखाती है।
श्रीमद्भगवतगीता के मुख्य उपदेश
गीता में श्रीकृष्ण अर्जुन को अपना कर्तव्य पूरा करने की सलाह देते हैं। वह अर्जुन के अंदर आए वैराग्य को हटाकर उन्हें कर्म निष्ठ बनाते हैं। गीता के सार के तौर पर भगवान कहते हैं कि मनुष्य के हाथ में केवल कर्म है उसे फल की चिंता नहीं करनी चाहिए और अपने कर्म को पूर्ण निष्ठा से करना चाहिए।
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