चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को भालचंद्र संकष्टी चतुर्थी कहते हैं। इस वर्ष भालचंद्र संकष्टी का यह व्रत 28 मार्च को रखा जाएगा। इस दिन भगवान श्री गणेश और चंद्रमा की पूजा की जाती है। इस व्रत को सुहागिन स्त्रियां संतान प्राप्ती की कामना और संतान की लम्बी उम्र के लिए रखती हैं। इस लेख के माध्यम से जानिए व्रत की विधि, शुभ मुहुर्त एवं व्रत परायण का समय।
भालचंद्र संकष्टी चतुर्थी व्रत विधि
इस दिन व्रत करने वाले को सर्वप्रथम स्नानादि से निवृत हो कर भगवान श्री गणेश का पूजन करना चाहिए। पहले भगवान श्री गणेश का अभिषेक करें फिर उन्हें वस्त्र धारण कराएं। तत्पश्चात फल फूलादि चढ़ाएं। भगवान को लड्डू या मोदक का भोग लगाएं। इतना करने के बाद भालचंद्र संकष्टी चतुर्थी व्रत की कथा पढ़ें या सुने। प्रथम पूज्य श्रीगणेश का ऊँ गं गणपतये नम का जप कर ध्यान करें और भक्ती भाव से आरती करें। शाम को चंद्रोदय तक का इंतजार करें और चंद्रमा को अर्घ देकर व्रत का परायण करें।
भालचंद्र संकष्टी चतुर्थी व्रत शुभ मुहुर्त
भालचंद्र संकष्टी चतुर्थी तिथी का आरम्भ 28 मार्च 2024 को शाम 6 बजकर 56 मिनट पर हो रहा है। यह तिथी अगले दिन यानी 29 मार्च को रात 8 बजकर 20 मिनट तक रहने वाली है। चतुर्थी का पूजा 28 मार्च को ही होगी इस दिन चंद्रोदय 9 बजकर 9 मिनट पर होगा।
चंद्रोदय समय
भालचंद्र संकष्टी चतुर्थी व्रत रखने वाले को सम्पूर्ण दिन व्रत रखते हुए रात को चंद्रोदय का इंतजार करना चाहिए। इस दिन चंद्रोदय रात 9 बजकर 9 मिनट पर होगा। अलग अलग शहरों के अनुसार चंद्रोदय के समय में थोड़ा अंतर हो सकता है। चंद्रोदय के बाद व्रत करने वाले को विधिवत चंद्रमा और भगवान गणेश की पूजा करनी चाहिए।
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