राम मंदिर के निर्माण के लिए लाखों कारसेवक अपने प्राणों को हथेली पर रख कर अयोध्या पहुँचे थे। इन राम भक्तों में से कुछ ने अपनी जान की बाजी लगा दी तो कुछ घायल अवस्था को प्राप्त हुए। ऐसे ही एक राम के योद्धा ने आयुध मीडिया की टीम के साथ अपना बाबरी विध्वंस के समय का अनुभव सांझा किया।
राम के योद्धा ने बताया अपना अनुभव
भगवान सिंह नामक एक कारसेवक ने आयुध की टीम को बताया कि जब वह कॉलेज के प्रथम वर्ष में थे तो बाबरी विध्वंस की तैयारियाँ की जा रही थी। जब लोगों ने उनसे राम शिला के लिए समर्थन मांगा तो भगवान सिंह ने भी अपना योगदान दिया। इसी कढ़ी में राम के योद्धा ने कारसेवा में जाने का संकल्प ले लिया। भगवान सिंह 5 साथियों समेत 25 अक्टूबर को अयोध्या के लिए रवाना हुए। उस वक्त उन्हें साथियों सहित हनुमान गढ़ी के ही निकट बने हनुमान मंदिर के आश्रम में रुकने को कहा गया।
अयोध्या में पहुँचे लाखों कारसेवक
राम के योद्धा ने बताया कि 30 अक्टूबर आते आते अयोध्या में लाखों की संख्या में कारसेवक आ गए थे। जैसी ही सभी कारसेवकों ने बाबरी ढांचे की ओर कूच किया तो पुलिस फोर्स ने भी अपना पूरा बल लगा दिया। पहले तो पुलिस ने लाठियों का इस्तमाल किया लेकिन कारसेवकों का हौंसला कम नहीं हुआ। जब लाठियों से बात नहीं बनी तो पुलिस ने फायरिंग करने की बात कही लेकिन राम के भक्त रूके और डरे नहीं।
मरने वाले कारसेवकों की बताई गलत संख्या
इस फायरिंग के चलते हुए भी कारसेवकों ने अपनी कारसेवा नहीं रोकी और बाबरी के ढांचे का करीब पहुँच गए। इस फायरिंग में हजारों की संख्या में जन हानी हुई जिसे तत्कालीन अखबारों में 40 बताया जा रहा था। अंधाधुन फायरिंग के चलते हुए भी कारसेवकों ने बाबरी के ढांचे को हानी पहुँचा ही दी। इस दौरान भगवान सिंह को भी पैर में गोलियाँ लगी जिसके बाद उन्हें कई दिन अस्पताल में गुजारने पढ़े। भगवान सिंह का कहना है कि आज उन्हें बेहद खुशी होती है कि उनकी ही आँखों के सामने राम मंदिर का निर्माण हो रहा है।
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