माघ शुक्ल पंचमी तिथि पर बसंत पंचमी का त्योहार मनाया जाता है. इस दिन सभी पिले रंग के वस्त्र धारण कर मां सरस्वती की पूजा करते हैं लेकिन क्या आपको पता है कि मां सरस्वती की उत्पत्ति कैसे हुई थी। मां सरस्वती को वागीश्वरी, भगवती, शारदा, वीणावादनी और वाग्देवी सहित अन्य कई नामों से भी पूजा जाता है। ये शिक्षा और बुद्धि प्रदाता हैं। वीणावादनी देवी से ही संगीत की उत्पत्ति हुई जिसके कारण इनको संगीत की देवी भी कहा जाता है।
पवित्र सत ग्रंथों में लिखी है मां सरस्वती की कथा
उपनिषदों की कथा के अनुसार ब्रह्मा जी ने जीवों यानि मनुष्य योनि की रचना की। जब ब्रह्मा जी ने पूरी सृष्टि की रचना कर देखने लगे तो उनको हर तरफ उदासी और मौन ही दिखाई दे रहा था। ब्रह्मा जी को लगा सृष्टि की रचना करने में उनसे कुछ छूट गया है। जिसके बाद ब्रह्मा जी ने कमण्डल से जल निकाल अपनी हथेली में लेकर संकल्प स्वरूप उस जल को सृष्टि पर छिड़कर भगवान श्री विष्णु की स्तुती की। ब्रह्मा जी की स्तुती को सुन कर भगवान विष्णु प्रकट हुए। पूरी समस्या जानने के बाद भगवान विष्णु ने आदिशक्ति दुर्गा माता का आव्हान किया। जिसके बाद क्षणभर में मां दुर्गा प्रकट हो गई। फिर ब्रह्मा और विष्णु दोनों ने मिलकर आदिशक्ति दुर्गा माता से इस समस्या को दूर करने का निवेदन किया।
आदिशक्ति दुर्गा माता के तेज से उत्पन्न हुई थी वीणावादनी देवी की
जब ब्रह्मा और विष्णु जी की पूरी बातें मां दुर्गा ने सुना तो उसी क्षण आदिशक्ति दुर्गा मां के शरीर से एक चमकता हुआ सितारा उत्पन्न हुआ। वह चमकता सितारा एक दिव्य नारी के रूप में बदल गया। इतना सुन्दर स्वरूप किसी ने नहीं देखा था। वह सुंदर स्वरूप एक चतुर्भुजी सुंदर स्त्री का था जिनके एक हाथ में वीणा दूसरे हाथ में वर मुद्राएं थी। बाकि अन्य दोनों हाथों में पुस्तक एंव सुंदर मोतीयों की मालाएं थी। प्रकट होते ही देवी ने अपनी वीणा से मधुरनाद किया जिससे संसार के समस्त जीव-जन्तुओं को वाणी प्राप्त हो गई सभी एक सुंदर स्वर में बोलने लगें। हवा के चलने की सरसराहट सुनाई देने लगी। इनता सुंदर स्वरूप और शब्द, रस का संचार कर देने वाली उन देवी को देवताओं ने “सरस्वती” कहा। इसी लिए माघ शुक्ल पंचमी तिथि पर बसंत पंचमी के दिन मां सरस्वती की पूजा की जाती है। बसंत पंचमी को मां सरस्वती का प्रकटोत्सव दिवस भी कहा जाता है।
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