भारत सरकार के दिए GI tag के वजह से वापस बढ़ी जम्मू कश्मीर के पहचान कश्मीरी केसर की शान।
कश्मीर: कश्मीरी केसर पूरी दुनिया में सबसे अधिक उच्च क्वालिटी का माना जाता है। कश्मीरी केसर अन्य देशों के केसर से अलग हैं। इसके जैसे उच्च सुगंध, गहरे रंग, लंबे और मोटे धागे (कलंक) के कारण अधिक औषधीय मूल्य वाले गुणों में श्रेष्ठ माना जाता है।
यह मसाला कश्मीर के कुछ क्षेत्रों में उगाया जाता है, जिनमें पुलवामा, बडगाम, किश्तवाड़ और श्रीनगर शामिल हैं। श्रीनगर के पास पंपोर मे सबसे ज्यादा उगाए जाते है इसलिए उसे केसर की राजधानी भी कहते है।

क्या थी दिक्कत?
जम्मू कश्मीर का पहचान कहे जाने वाले कश्मीरी केसर की खेती जलवायु परिवर्तन के वजह से 1996 से 2017 के बीच 63% से कम हो गई थी।
दुनिया में सबसे अधिक केसर उत्पादन करने वाला देश ईरान है जो कि जो हर साल 30,000 हेक्टेयर भूमि पर 300 टन से अधिक केसर की खेती करता है। इसके अलावा स्पेन, अफग़ानिस्तान ख़राब क्वालिटी का केसर कम कीमत में बेचते हैं। जिसके कारण कश्मीरी केसर की कीमत लगभग 50% तक गिर गई हैं।
2010 मे भारत सरकार ने इसके सुधार के लिए कदम उठाए जिससे खास कोई फायदा नहीं दिखा।
फिर 2020 मे कश्मीरी केसर को भौगोलिक संकेत रजिस्ट्री द्वारा भौगोलिक संकेत GI tag दिया गया।
क्या है GI tag?
भौगोलिक संकेत (GI tag) एक नाम या निशान होता है जो किसी निश्चित क्षेत्र विशेष के उत्पाद, कृषि, प्राकृतिक और निर्मित उत्पाद (मिठाई, हस्तशिल्प और औद्योगिक सामान) को दिया जाने वाला एक स्पेशल टैग है। यह स्पेशल क्वालिटी और पहचान वाले उत्पाद जो किसी विशिष्ट भौगोलिक क्षेत्र में उत्पन्न होने वाले को दिया जाता है।
GI tag किसी उत्पाद को जीवन भर के लिए नहीं दिया जाता है। नियम के अनुसार यह 10 वर्ष के लिए दिया जाता है। इस अवधि के बाद इसे प्राप्त करने के लिए फिर से अप्लाई करना पड़ता है।
क्या रहे फायदे?
इसके बाद कश्मीरी केसर की डिमान्ड अमेरिका, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया जैसे पूरी दुनिया मे बढ़ गई और अब इसकी कीमत 60% से भी ज्यादा बढ़ चुकी है।
आज की कीमत मे ये चांदी से भी 5 गुना ज्यादा महँगा है इसलिए इसे लाल सोना भी कहा जाता है।
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