अयोध्या। श्री राम जन्मभूमि के मुख्य पुजारी आचार्य सत्येंद्र दास जी का बुधवार की सुबह 80 वर्ष की आयु में निधन हो गया। आचार्य लम्बे समय से बीमार चल रहे थे। उन्हें पहले अयोध्या के अस्पताल में भर्ती कराया गया था। तबियत अधिक बिगड़ने के कारण उन्हें लखनऊ रेफर किया गया। लखनऊ के पीजीआई में उनका इलाज चल रहा था। इलाज के दौरान ही ब्रेन स्ट्रोक होने से उनका निधन हो गया।
सूचनाओं के अनुसार आचार्य सत्येंद्र दास के पार्थिव शरीर को अयोध्या लाया जाएगा। जिसके बाद गुरुवार को आयोध्या के सरयू तट पर उनका अंतिम संस्कार होगा।
कौन हैं आचार्य सत्येंद्र दास ?
आचार्य सत्येंद्र दास का जन्म 20 मई 1945 को उत्तरप्रदेश के संतकबीरनगर जिले में हुआ था। यह जिला आयोध्या से 90 किलोमीटर की दूरी पर है। आचार्य सत्येंद्र दास जी के पिता अभिराम दास जी के आश्रम पर अक्सर जाया करते थे। सत्येंद्र दास भी उनके साथ आश्रम पर जाते थे। अभिराम दास जी वही हैं, जिन्होंने राम, लक्ष्मण, भरत, शत्रुघ्न और सीता जी के मूर्तियों के निकलने का दावा किया था।
अभिराम दास जी का भगवान राम के प्रति सेवा और समर्पण देख सत्येंद्र दास काफी प्रभावित हुए। उन्होंने साल 1958 में घर छोड़कर सन्यास लेने का फैसला किया। सन्यास लेने के बाद सत्येंद्र दास, अभिराम दास जी के साथ ही उनके आश्रम पर रहने लगे।
आचार्य सत्येंद्र दास जी ने अध्यापक और पुजारी दोनों की भूमिका निभाई

1958 में घर छोड़ने के बाद उन्होंने आश्रम में रहकर संस्कृत की पढ़ाई शुरू की। 12वीं तक उन्होंने संस्कृत में पढ़ाई की। 12वीं के बाद संस्कृत से ही आचार्य किया। पढ़ाई के साथ-साथ पूजा पाठ भी करते थे। जब पढ़ाई खत्म हुई तो अयोध्या में नौकरी की तलाश करने लगे। 1976 में अयोध्या के संस्कृत महाविद्यालय के व्याकरण विभाग में सहायक अध्यापक के पद पर नियुक्त हुए।
सहायक अध्यापक के तौर पर उन्हें 75 रूपए तन्खा मिलती थी। अध्यापन के साथ ही वो राम मंदिर में पुजारी का भी काम करते थे। तब उन्हें बतौर पुजारी 100 रूपए मिलते थे। जब साल 2007 में अध्यापक के पद से रिटायर हुए , तो उनकी तन्खा बढ़कर 13 हजार रूपए हो गई थी। रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के बाद वेतन में वृद्धि कर 38,500 रुपए कर दी गई थी।
32 वर्षों तक रामलला की सेवा की
आचार्य सत्येंद्र दास साल 1992 से रामलला की सेवा कर रहे हैं। मार्च 1992 में तत्कालीन रिसीवर ने आचार्य सत्येंद्र दास की पुजारी के तौर पर नियुक्ति की थी।
उन्होनें करीब 23 वर्षों तक टेंट में रामलाल की सेवा की। इसके बाद जब रामलला अस्थायी मंदिर में विराजे तब उन्होनें 8 साल तक उनकी सेवा की। रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के बाद मुख्य पुजारी के रूप में कार्यरत थे।
बाबरी विध्वंस के वक्त रामलला को गोद में लेकर भागे
आचार्य सत्येंद्र दास जी ने एक अख़बार के इंटरव्यू में बताया कि वो बाबरी विध्वंस के दौरान वहीं मौजूद थे। उनका कहना है कि 6 दिसंबर, 1992 को जब उन्होंने रामलला को भोग लगाया, उसके बाद चारों तरफ़ आवाज़ें गूंजने लगीं। नारे लगने लगे। सारे नवयुवक कारसेवक विवादित ढांचे पर पहुंचकर उसे तोड़ना शुरू कर दिया।
उन्होनें बताया कि “बीच वाले गुंबद के नीचे मैं रामलाल की सेवा कर रहा था। गुस्साए कारसेवकों ने इसे भी तोड़ना शुरू कर दिया। गुम्बद के बीच में एक बड़ा सुराख़ होने के बाद वहां से रामलला पर मिट्टी और पत्थर गिरने शुरू हो गए थे। जिसके बाद मैं रामलला की मूर्ति को लेकर दौड़ पड़ा।”