ज्ञानवापी मस्जिद के बाद अब समूचे देश की निगाहें मथुरा स्थित श्रीकृष्ण जन्मभूमी पर टिकी हुई हैं। 14 दिसम्बर को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने श्रीकृष्ण जन्मभूमी के करीब स्थित शाही ईदगाह मस्जिद का सर्वे कराने की मंजूरी दे दी है और यह सर्वे किस तरह किया जाएगा इसकी सुवाई 18 दिसम्बर को की जाएगी। आज इस लेख के माध्यम से जानिए मंदिर बनने से लेकर के मंदिर विवाद के पीछे के तथ्य।
किसने कराया था श्रीकृष्ण जन्मभूमी का निर्माण
श्रीकष्ण जन्मभूमी विवाद आज से करीब 350 साल पुराना है। ओरछा के राजा वीर सिंह बुंदेला ने सन् 1618 ई में भगवान श्रीकृष्ण जन्मभूमी पर मंदिर बनवाया था। तब तक इस भूमी से जुड़ा कोई विवाद खड़ा नहीं हुआ था।
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इस शासक ने किया श्रीकृष्ण जन्मभूमी पर आक्रमण
सन् 1670 में मुगल शासक ओरंगजेब ने एक शाही ईदगाह नामक मस्जिद का निर्माम कराया था। हिंदूपक्ष का कहना है कि यह मस्जिद का निर्माण भगवान श्रीकृष्ण का मंदिर तोड़कर किया गया था। बतादें कि मस्जिद के निर्माण के बाद से ही यह ज़मीन करीब 100 साल तक मुस्लिम पक्ष के पास थी। इस जमीन पर हिंदुओं का प्रवेश वर्जित था।
मराठों ने कराया था जन्मभूमी ता पुन: निर्माण
सन् 1770 में मराठों और मुगलों के बीच जंग छिड़ गई है।इस जंग में मराठों को जीत मिली थी जिसके बाद यह भूमी पुन हिंदूपक्ष के पास आ गई थी। जिसपर मराठों ने दोबारा मंदिर बनवाया और उसे केशवदेव मंदिर कहा गया।
अंग्रेजों ने की थी श्रीकृष्ण जन्मभूमी की नीलामी
समय बीतने के साथ मंदिर जर्र अवस्था को प्राप्त हो गया था। फिर अंग्रेजों द्वारा सन् 1815 में मंदिर की नीलामी कर दी गई जिसे काशी नरेश ने खरीदा। काशी नरेश की कोशिशों के बाबजूद मंदिर का पुन निर्माण नहीं हो सका जिसके कारण यह जगह खाली पड़ी रही। जिसके बाद साल 1944 में इस भूमी को जुगल किशोर बिड़ला ने खरीद लिया।
श्रीकृष्ण जन्मस्थान ट्रस्ट ने की मंदिर की स्थापना
आजादी के बाद साल 1951 में श्रीकृष्ण जन्मस्थान ट्रस्ट की स्थापना हुई। साल 1953 में मंदिर निर्माण की शुरूआत हुई और साल 1958 में मंदिर का निर्माण कार्य पूरा हो गया। लेकिन तब से आज तक इस मंदिर को लेकर विवाद चला आ रहा है।