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क्या अमेरिका में चुनाव एक कारोबार बन गया है?

2020 में, संयुक्त राज्य अमेरिका में चुनाव अभियानों पर लगभग 1440 करोड़ डॉलर खर्च किए गए थे। यह अमेरिकी इतिहास का सबसे महंगा चुनाव प्रचार था। ये 70 देशों के GDP से भी ज्यादा है। अमेरिका: राष्ट्रपति जो बाइडेन की टीम ने नई डेटा निकाली है जिससे ये सामने आया है की 2020 के राष्ट्रपति चुनाव में बाइडेन ने लगभग 100 करोड़ डॉलर्स उठाए थे और वही ट्रम्प ने 77.5 करोड़ डॉलर्स। इस साल मे अभी तक राष्ट्रपति पद के उम्मीदवारों मे बाइडेन को 7.7 करोड़ डॉलर्स डोनेशन मे मिले है, ट्रम्प को 3.8 करोड़ डॉलर्स और रॉन डी सैन्टिस को 2 करोड़ डॉलर्स। 2020 में, संयुक्त राज्य अमेरिका में चुनाव अभियानों मे 2016 के खर्च से दोगुने से भी अधिक है। पर ये पैसे आते कहा से है? 2010 के पहले तक तो इनमे पैसे आम जनता, पोलिटिकल एक्शन कमिटी और खुद सरकार के तरफ से जाता था। पर फिर 21 जनवरी 2010 को, अमेरिका के सुप्रीम कोर्ट ने सिटीजन्स यूनाइटेड के पक्ष में 5-4 निर्णय जारी किया, जिसने पहले संशोधन के उल्लंघन के रूप में कॉर्पोरेट खजाने से चुनाव प्रचार मे स्वतंत्र व्यय पर बीसीआरए के प्रतिबंधों को हटा दिया। उनका मानना था की अगर ऐसा नहीं किया जाए तो अभिव्यक्ति की आजादी पूरी तरीके से लागू नहीं होगी। और फिर तब से बड़ी बड़ी कंपनियों द्वारा चुनावों मे पैसे बहाए जाने लगे। अमरीका में चुनाव पर इसका असर ट्रम्प के चुनाव प्रचार में नैशनल राइफल एसोसिएशन (NRA) ने 3 करोड़ डॉलर्स दिए थे। जिसके बाद डोनाल्ड ट्रम्प ने आते ही ऐसे बदलाव लाए की बंदूक खरीदना आसान हो गया। अमेरिकी बंदूक की बिक्री 2020 में रिकॉर्ड 23 मिलियन तक पहुंच गई जो की 2019 से 65% से ज्यादा थी। और फिर ये 2021 में बढ़ती ही गई। और इसका असर कितना घातक रहा वो बताने की जरूरत भी नहीं है। 2023 मे अब तक 1355 मास शूटिंग के रिपोर्ट दर्ज हो चुके है। 2019 में, अमेरिका में बंदूक से संबंधित मौतों की कुल संख्या 33,599 थी। 2022 में, मौतों की संख्या 31% की वृद्धि बढ़कर 44,290 हो गई। आलोचकों का आरोप है कि “अमेरिकी राजनीतिक अभियानों पर बड़ी धनराशि इस हद तक हावी है जो दशकों में नहीं देखी गई” और “आम अमेरिकियों की आवाज़ को दबा रही है।” ऐसा दावा है की अगले चुनाव के लिए दोगुना पैसा बहाया जाएगा। ऐसा ही रहा तो ना जाने आगे कौन सी कंपनी चुनाव मे पैसे देकर अपने फायदे के नियम बनवाएगी। अब सरकार की नियम से कारोबार नहीं, कारोबारियों से सरकार के नियम बनेंगे। ये भी पढ़ें: मालदीव में मोदी के मुखौटे में India Out के नारे क्यों लग रहे है? https://aayudh.org/india-out-campaign-revived-in-maldives/

मालदीव में मोदी के मुखौटे में India Out के नारे क्यों लग रहे है?

मालदीव में राष्ट्रपति के चुनाव होने वाले है और इसलिए यहाँ “India Out” अभियान चल रहा है। इस साल ईद के दिन से इसकी शुरुआत हुई थी। मालदीव: ये ‘India Out’ अभियान नया नहीं है, आधिकारिक रूप से 2020 से ही ये चालू है। क्या है “India Out” अभियान? 2005 में लोकतांत्रिक संवैधानिक सुधारों के उद्भव और 2008 में मौमून अब्दुल गयूम की चुनावी हार ने चर्चा और असहमति के लिए जगह खोल दी थी। तब से ही मालदीव में भारत विरोधी भावनाओं को कभी-कभार बढ़ावा देने और सहायता के राजनीतिकरण का उदय हुआ। 2013 में चीन का आदमी कहे जाने वाले अब्दुल्ला यामीन के चुनाव के बाद, मालदीव ने चीन के साथ अपनी बातचीत बढ़ा दी और 2014 में बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) परियोजना के समर्थन के लिए राष्ट्रपति शी जिनपिंग की यात्रा का स्वागत किया। जैसे-जैसे घरेलू असहमति और विरोध पर यामीन पर कार्रवाई हुई, भारतीय और अंतर्राष्ट्रीय आलोचना बढ़ती गई, मालदीव के राष्ट्रपति चीन के और करीब आ गए। यामीन पर कई भ्रष्टाचार के आरोप लगे जिसके वजह से वो 11 साल की सजा भी काट रहा है और 2018 मे राष्ट्रपति पद से हाथ भी धोना पड़ा। 2018 में यामीन की चुनावी हार के बाद ही इस अभियान का ये स्वरूप सामने आया। कैसा रहा है भारत-मालदीव का रिश्ता? भारत और मालदीव के बीच पिछले छह दशकों से राजनयिक, रक्षा, आर्थिक और सांस्कृतिक संबंध साझा हैं। हिंद महासागर में एक महत्वपूर्ण भौगोलिक स्थिति में स्थित, मालदीव हिंद महासागर और उसके पड़ोस के लिए भारत की रणनीति के लिए महत्वपूर्ण है। अपनी ओर से, मालदीव को भारत की आर्थिक सहायता और शुद्ध सुरक्षा प्रावधान से लाभ मिलता है। हालाँकि, 2013 में यामीन के सत्ता में आने के साथ, लोकतंत्र पर उनके सख्त रुख, चीन के प्रति निकटता और राष्ट्रवादी भावनाओं को बढ़ाने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली भारत विरोधी बयानबाजी के कारण भारत-मालदीव संबंधों में गिरावट आई। 2018 में एक नए राष्ट्रपति, इब्राहिम सोलिह को चुना गया, जिन्होंने तुरंत ‘India First’ नीति शुरू करके रिश्ते को बेहतर बनाने के लिए काम किया। नीति में आर्थिक और रक्षा साझेदारी के लिए भारत को प्राथमिकता दी गई, और मालदीव में चीनी निवेश और गतिविधियों से उत्पन्न भारतीय चिंताओं के प्रति अधिक संवेदनशीलता दिखाई गई। पर अब फिर से चुनाव आ रहे है और यमीन को लगता है की भारत को मुद्दा बनाकर वो लोगों की समस्या हल कर पाएगा पर वो लोग मालदीव के है की चीन के वो तो वक्त ही बताएगा। ये भी पढ़ें: क्या Seema Haider के वजह से हो रहे है पाकिस्तान में मंदिरों पर हमले? https://aayudh.org/seema-haider-behind-temple-attack-in-pakistan/

तीन चुनाव और लड़ेंगे गोपाल भार्गव

मध्यप्रदेश में विधानसभा चुनाव से पहले कद्दावरो ने चुनाव लड़ने की ताल ठोकना शुरू कर दिया है.ताजा चर्चा प्रदेश के पीडब्ल्यूडी  मंत्री गोपाल भार्गव के बयान के बाद शुरू हुई है . जिसमें वे कहते नजर आ रहे है की गोपाल भार्गव को अभी तीन चुनाव और लड़ना है .भार्गव के इस बयान के मायने इसलिए और ज्यादा है क्योंकि भाजपा में नेताओं के चुनाव लड़ने की उम्र की तय सीमा है . गोपाल बोले गुरु का आदेश है तीन चुनाव और लड़ना है दरअसल गोपाल भार्गव के तीन चुनाव और लड़ने की चर्चा उनके ही एक बयान के बाद शुरू हुई है. इस बयान का एक वीडियो सोशल मीडिया पर जमकर वायरल हो रहा है. जिसमें भार्गव अपनी विधानसभा क्षेत्र में विकास कार्यों का भूमि पूजन करने पहुंचे थे. तभी उन्होंने लोगों को संबोधित करते हुए कहा कि “गुरु का आदेश है, गोपाल तुम्हें तीन चुनाव और लड़ना है और आगे बढ़ना है. उन्होंने आगे कहा कि “तुम चुनाव लड़ते रहना जनता का भला करते रहना, न किसी की बुराई करना और न किसी की निंदा करना, तुम्हारी कोई कितनी भी बुराई करे, निंदा करे लेकिन तुम्हें किसी की निंदा नहीं करनी है”. भाजपा में चुनाव लड़ने की उम्र की है तय सीमा एमपी के कद्दावर नेता गोपाल भार्गव के इस बयान के सियासी हलकों में और अधिक मायने इसलिए निकाले जा रहे हैं .क्योंकि भाजपा ने केंद्र से लेकर राज्यों के चुनावों में चुनाव लड़ने की उम्र की सीमा 70 साल तय करके रखी हुई है .और फिलहाल गोपाल भार्गव की उम्र 71 साल हो चुकी है . अब भार्गव के इस बयान के बाद एमपी के वरिष्ठ पत्रकार प्रभु पटेरिया ने चुटकी भी ली है .उन्होंने एक ट्वीट करते हुए लिखा है “पार्टी के सर्वोच्च पीठाधीश्वर गुरु की चलेगी या आध्यात्मिक गुरु की? बात आगामी एक चुनाव  की नहीं तीन चुनाव की है।” 8 बार के विधायक हैं गोपाल भार्गव इस बार बेटा भी कर रहे दावेदारी एमपी सरकार में पीडब्ल्यूडी मंत्री भार्गव सागर जिले की रहली विधानसभा क्षेत्र से 8 बार से लगातार विधायक चुने गए हैं. तो वहीं उनके रिटायरमेंट की खबरों के बीच भार्गव के बेटे अभिषेक भार्गव काफी लम्बे समय से विधान सभा क्षेत्र में सक्रिय हैं. 

क्या Seema Haider के वजह से हो रहे है पाकिस्तान में मंदिरों पर हमले?

पाकिस्तान मे अल्पसंख्यक हिंदुओं पर हमला कोई नई बात नहीं है, पर ऐसा लगता है की Seema Haider के वजह से हमलों में इतनी तेजी आई है।   पाकिस्तान: 14 जुलाई की देर रात कराची के मरी माता मंदिर को जमींदोज कर दिया गया था। स्थानीय लोगों का कहना है की जब बिजली भी नहीं थी तब भारी पुलिस की तैनाती में मंदिर परिसर को ऐसे गिराया गया की बस बाहरी दीवार और दरवाजा बच गया। दूसरे हमले में पाकिस्तानी समाचार आउटलेट डॉन की एक रिपोर्ट के अनुसार, 16 जुलाई, रविवार की सुबह सिंध के काशमोर क्षेत्र में डकैतों के एक गिरोह ने रॉकेट लॉन्चर से एक हिंदू मंदिर पर हमला किया। हमलावरों ने कथित तौर पर हिंदू विश्वासियों को निशाना बनाया क्योंकि उन्होंने मंदिर और आसपास के हिंदुओं के घरों पर अंधाधुंध गोलीबारी की। पुलिस का अनुमान है कि हमले में आठ से नौ बंदूकधारी शामिल थे। ये रॉकेट फट नहीं पाया इसलिए कोई हताहत की खबर नहीं आई। हालांकि पाकिस्तान मे अल्पसंख्यक हिंदुओं पर हमला कोई नई बात नहीं है, पर ऐसा लगता है की Seema Haider के वजह से ये हमले इतने ज्यादा हो रहे है। कौन है Seema Haider? 4 बच्चों की माँ सीमा हैदर मई मे सबसे छुप कर पाकिस्तान से भारत अपने प्रेमी के साथ रहने आई थी। वो नोएडा के सचीन मीना के साथ रह रही थी। इसके बाद दोनों से यूपी की एंटी टेररिस्ट स्क्वाड (UP ATS)  ने पूछताछ के लिए गिरफ्तार कर लिया। इस घटना के बाद मुंबई पुलिस को एक अज्ञात व्यक्ति का फोन आया, जिसने सीमा हैदर के देश नहीं लौटने पर 26/11 जैसे आतंकी हमले की धमकी दी। रिपोर्टों के अनुसार, 12 जुलाई, 2023 को मुंबई पुलिस यातायात नियंत्रण कक्ष को कॉल प्राप्त हुई थी। कॉलर, जो शुद्ध उर्दू में बात कर रहा था, ने कथित तौर पर कहा कि 26/11 के विनाशकारी मुंबई हमलों के समान संभावित आतंकवादी हमले होंगे। रिपोर्ट्स के मुताबिक, कॉल एक ऐप के जरिए की गई थी और पुलिस कॉल करने वाले के आईपी एड्रेस को ट्रैक करने की कोशिश कर रही थी। पाकिस्तान के मानव अधिकार आयोग (HRCP) ने भी कहा है की सिंध के कई इलाकों से 30 हिंदुओं को अगवा किया गया है जिनमे ज्यादा औरतें और बच्चें शामिल है। कथित तौर पर इन्हे संगठित आपराधिक गिरोहों द्वारा बंधक बनाया गया है। उन्होंने और बताया की, “इसके अलावा, हमें परेशान करने वाली रिपोर्टें मिली हैं कि इन गिरोहों ने उच्च श्रेणी के हथियारों का उपयोग करके समुदाय के पूजा स्थलों पर हमला करने की धमकी दी है।” अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं की प्रतिक्रिया कई अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं ने भारत में वक्त बेवक्त अल्पसंख्यकों के अधिकारों के लिए सवालिया निसान लगाए है। 2022 में आई United Nations Human Rights Council की Universal Periodic Review Process के ज़रिए अल्पसंख्यक समुदायों के खिलाफ बढ़ते अपराधों को रोकने और कमजोर समूहों की सुरक्षा करने को कहा गया था। अब ये देखना है की कौन सी अंतर्राष्ट्रीय संगठन इस पर पाकिस्तान के अल्पसंखयक हिंदुओं के रक्षा के लिए सामने आती है। ये भी पढ़ें: France Protest के जगह मणिपुर पर चर्चा कर रही है यूरोपीय संसद https://aayudh.org/eu-meeting-on-manipur-riots-instead-of-france-protest/

France Protest के जगह मणिपुर पर चर्चा कर रही है यूरोपीय संसद

France Protest के बजाय यूरोपीय संसद ने मणिपुर के हिंसों पर अपनी प्रतिक्रिया जाहिर करते हुए ये दिखा दिया की उनकी दोहरी नीतियाँ कैसी होती है। फ़्रांस: भारत के मणिपुर मे हो रहे हिंसे पर यूरोपी संसद ने 13 जुलाई को एक बैठक मे प्रस्ताव पारित किया। इसमे भारतीय अधिकारियों से मणिपुर में हिंसा को रोकने और धार्मिक अल्पसंख्यकों, विशेषकर ईसाइयों की रक्षा के लिए “सभी आवश्यक” उपाय करने का आह्वान करने को कहा है। ये प्रस्ताव 5 राजनीतिक गुटों द्वारा पेश किया गया था और 705 सदस्यीय संसद में लगभग 80% विधायक उनकी हिस्सेदारी से ही है। भारतीय प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के आधिकारिक दौरे के लिए फ्रांस पहुंचने के तुरंत बाद ही निर्धारित समय पर अन्य वोटों के साथ प्रस्ताव की प्रक्रिया हुई। बैठक मे क्या कहा गया? ·प्रस्ताव में चिंता व्यक्त की गई कि पिछले दो महीनों में मणिपुर में जातीय हिंसा में 120 से अधिक लोग मारे गए हैं, 50,000 लोग विस्थापित हुए हैं और 1,700 घर, 250 से अधिक चर्च और कई मंदिर नष्ट हो गए हैं। ·इसने राजनीतिक नेताओं से “भड़काऊ बयान बंद करने, विश्वास फिर से स्थापित करने और तनाव को सुलझाने में निष्पक्ष भूमिका निभाने” का भी आग्रह किया। ·यूरोपीय संसद ने यह भी कहा कि “जो लोग सरकार के आचरण की आलोचना करते हैं उन्हें अपराधी नहीं ठहराया जाएगा”। ·और कहा कि हिंसा “राजनीति से प्रेरित, हिंदू बहुसंख्यकवाद को बढ़ावा देने वाली विभाजनकारी नीतियों” के साथ-साथ उग्रवादी समूहों की बढ़ती गतिविधि के कारण भड़की थी। भारत की प्रतिक्रिया भारत ने प्रतिक्रिया व्यक्त की कि यह “अस्वीकार्य” और “औपनिवेशिक मानसिकता” का प्रतिबिंब था। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने एक बयान में कहा, “भारत के आंतरिक मामलों में इस तरह का हस्तक्षेप अस्वीकार्य है, और औपनिवेशिक मानसिकता को दर्शाता है।” “न्यायपालिका सहित सभी स्तरों पर भारतीय अधिकारी मणिपुर की स्थिति से अवगत हैं और शांति और सद्भाव तथा कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए कदम उठा रहे हैं। यूरोपीय संसद को सलाह दी जाएगी कि वह अपने आंतरिक मुद्दों पर अपने समय का अधिक उत्पादक ढंग से उपयोग करे, उन्होंने कहा। France Protest 2023 की वजह? 27 जून को पेरिस के एक शहर मे एक पुलिस वाले ने ट्राफिक नियम तोड़ने पर 17 साल के नाहेल की पॉइंट ब्लैंक पर गोली मारकर हत्या कर दी थी। नाहेल अल्जीरियाई मूल से था। और उसकी माँ का दावा है की इसी वजह से उसके साथ ये बर्बरता हुई थी। इस घटना का विरोध करने के लिए हजारों की तादाद में वहाँ के लोगों ने प्रदर्शन करना शुरू कर दिया। जो आगे बढ़ कर दंगे मे तब्दील हो गया जिसमे 29 तारीख तक, 150 से अधिक लोगों को गिरफ्तार कर लिया गए, 24 अधिकारी घायल हो गए थे, और 40 कारों को आग लगा दी गई थी। यह विरोध प्रदर्शन सालों से हो रहे फ़्रांस पुलिस द्वारा जातिवाद हमलों के खिलाफ था। ·1983 मे एक 19 साल के लड़के को पॉलिक ने ऐसे मारा था की वो 2 सप्ताह तक कॉम मे चला गया था। ·2005 मे फिर जैसा नाहेल के साथ हुआ ठीक वैसी ही घटना सामने आई थी। ·और एक बार 3 किशोर लड़कों को इस तरह पुलिस ने डराया था की वो उनसे छिपने के लिए ट्रैन्स्फॉर्मर मे चले गए थे। इससे उन्मे से 2 की मौत हो गई थी और 1 बुरी तरीके से घायल हो गया था। ·फ्रांस में एक स्वतंत्र संवैधानिक प्राधिकरण, डिफेंडर ऑफ राइट्स के अनुसार, बाकी आबादी की तुलना में काले या उत्तरी अफ्रीकी मूल के युवाओं की पुलिस द्वारा पहचान जांच किए जाने की संभावना 20 गुना अधिक है। जून के इस प्रदर्शन को फ़्रांस के मीडिया ने “एंटी-फ़्रांस” बताया था और एमनुयाल मैक्रोन की सरकार ने अराजक दंगा करार दिया। तब युरोपियन यूनियन ने ना कोई मीटिंग रखी और ना ही कोई प्रस्ताव पारित किया। पश्चिमी देशों के हिसाब से भारत मे कुछ हो तो वो मानवाधिकार का उल्लंघन है और उनके देशों मे कुछ हो तो देश विरोधी गतिविधि है। ये भी पढ़ें: GI tag से कश्मीरी केसर हुआ चांदी से भी 5 गुना ज्यादा महँगा https://aayudh.org/gi-tagged-kashmiri-saffron/

GI tag से कश्मीरी केसर हुआ चांदी से भी 5 गुना ज्यादा महँगा

भारत सरकार के दिए GI tag के वजह से वापस बढ़ी जम्मू कश्मीर के पहचान कश्मीरी केसर की शान। कश्मीर: कश्मीरी केसर पूरी दुनिया में सबसे अधिक उच्च क्वालिटी का माना जाता है। कश्मीरी केसर अन्य देशों के केसर से अलग हैं। इसके जैसे उच्च सुगंध, गहरे रंग, लंबे और मोटे धागे (कलंक) के कारण अधिक औषधीय मूल्य वाले गुणों में श्रेष्ठ माना जाता है। यह मसाला कश्मीर के कुछ क्षेत्रों में उगाया जाता है, जिनमें पुलवामा, बडगाम, किश्तवाड़ और श्रीनगर शामिल हैं। श्रीनगर के पास पंपोर मे सबसे ज्यादा उगाए जाते है इसलिए उसे केसर की राजधानी भी कहते है। क्या थी दिक्कत? जम्मू कश्मीर का पहचान कहे जाने वाले कश्मीरी केसर की खेती जलवायु परिवर्तन के वजह से 1996 से 2017 के बीच 63% से कम हो गई थी। दुनिया में सबसे अधिक केसर उत्पादन करने वाला देश ईरान है जो कि जो हर साल 30,000 हेक्टेयर भूमि पर 300 टन से अधिक केसर की खेती करता है।  इसके अलावा स्पेन, अफग़ानिस्तान ख़राब क्वालिटी का केसर कम कीमत में बेचते हैं। जिसके कारण कश्मीरी केसर की कीमत लगभग 50% तक गिर गई हैं। 2010 मे भारत सरकार ने इसके सुधार के लिए कदम उठाए जिससे खास कोई फायदा नहीं दिखा। फिर 2020 मे कश्मीरी केसर को भौगोलिक संकेत रजिस्ट्री द्वारा भौगोलिक संकेत GI tag दिया गया। क्या है GI tag? भौगोलिक संकेत (GI tag) एक नाम या निशान होता है जो किसी निश्चित क्षेत्र विशेष के उत्पाद, कृषि, प्राकृतिक और निर्मित उत्पाद (मिठाई, हस्तशिल्प और औद्योगिक सामान) को दिया जाने वाला एक स्पेशल टैग है। यह स्पेशल क्वालिटी और पहचान वाले उत्पाद जो किसी विशिष्ट भौगोलिक क्षेत्र में उत्पन्न होने वाले को दिया जाता है। GI tag किसी उत्पाद को जीवन भर के लिए नहीं दिया जाता है। नियम के अनुसार यह 10 वर्ष के लिए दिया जाता है। इस अवधि के बाद इसे प्राप्त करने के लिए फिर से अप्लाई करना पड़ता है। क्या रहे फायदे? इसके बाद कश्मीरी केसर की डिमान्ड अमेरिका, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया जैसे पूरी दुनिया मे बढ़ गई और अब इसकी कीमत 60% से भी ज्यादा बढ़ चुकी है। आज की कीमत मे ये चांदी से भी 5 गुना ज्यादा महँगा है इसलिए इसे लाल सोना भी कहा जाता है। ये भी पढ़ें: AI के वजह से किस कंपनी के 90% कर्मचारी निकाले गए? https://aayudh.org/ai-causing-layoffs/

AI के वजह से किस कंपनी के 90% कर्मचारी निकाले गए?

भारतीय स्टार्टअप, दुकान के CEO ने कुछ दिनों पहले AI चैटबॉट के बदले अपने कंपनी के 90% कर्मचारियों को निकाल दिया। भारत: दुकान एक बेंगलुरु स्थित ई-कॉमर्स कंपनी है जिसके CEO सुमित साह है। भारतीय स्टार्टअप, दुकान के CEO सुमित साह ने कुछ दिनों पहले एक ट्वीट कर बताया की उन्होंने अपने कंपनी के 90% कर्मचारियों को निकाल दिया। और उसे एक AI चैटबॉट से बदल दिया। AI चैटबॉट के फायदे ये AI सॉफ्टवेयर शुरुआती ग्राहक प्रश्नों का तुरंत उत्तर दे सकता है, जबकि उसके कर्मचारियों की पहली प्रतिक्रियाएँ औसतन 1 मिनट और 44 सेकंड के बाद भेजी जाती थीं। उन्होंने ट्वीट किया, चैटबॉट से बातचीत करने पर ग्राहक की समस्या को हल करने में लगने वाला औसत समय भी लगभग 98% कम हो गया। इसे फर्म के डेटा वैज्ञानिकों में से एक द्वारा बस दो दिनों में बनाया गया था। उनका कहना है की ऐसा करना बहुत मुश्किल था पर जरूरी भी। “अर्थव्यवस्था की स्थिति को देखते हुए, स्टार्टअप ‘यूनिकॉर्न’ बनने के प्रयास के बजाय ‘लाभप्रदता’ को प्राथमिकता दे रहे हैं, और हम भी ऐसा ही कर रहे हैं।” और इसे इसकी दक्षता को कम निवेश मे बढ़ाने से संभव हो सकता है। क्या थी दिक्कतें? शाह ने कहा, टेक्नॉलजी का उपयोग करके, कंपनी ने अपने ग्राहक सहायता कार्य की लागत में लगभग 85% की कटौती की है। उन्होंने कहा कि व्यवसाय का यह हिस्सा लंबे समय से समस्याग्रस्त रहा है, जिसमें अन्य मुद्दों के अलावा देरी से प्रतिक्रिया और महत्वपूर्ण समय पर कर्मचारियों की सीमित उपलब्धता शामिल है। नौकरियों का भविष्य कैसा होगा? दुकान अभी भी कई भूमिकाओं के लिए भर्ती कर रहा है। फर्म की वेबसाइट के अनुसार, रिक्त पदों में इंजीनियरिंग, मार्केटिंग और बिक्री की भूमिकाएँ शामिल हैं। छंटनी की खबरें ऐसे समय में आई हैं जब Open AI द्वारा अपने AI-संचालित चैटबॉट ChatGPT को जनता के लिए जारी करने के आठ महीने बाद यह आशंका बढ़ गई है कि AI के परिणामस्वरूप बड़े पैमाने पर नौकरियां जाएंगी। World Economic Forum ने अपनी ‘Future of Jobs’ रिपोर्ट में कहा है, लगभग 23% नौकरियाँ बाधित होंगी, कुछ ख़त्म हो जाएँगी और कुछ सृजित हो जाएँगी। महत्वपूर्ण रूप से, WEF को उम्मीद है कि पाँच वर्षों में कुल मिलाकर 14 मिलियन कम नौकरियाँ होंगी, क्योंकि अनुमानित 83 मिलियन भूमिकाएँ गायब हो जाएँगी, जबकि केवल 69 मिलियन ही उभरेंगी। ये भी पढ़ें: पाकिस्तान में 150 साल पुरानी मरी माता मंदीर क्यों गिराया गया? https://aayudh.org/mari-mata-mandir-demolished-in-karachi/

पाकिस्तान में 150 साल पुरानी मरी माता मंदीर क्यों गिराया गया?

14 जुलाई की देर रात, पाकिस्तान के कराची मे स्थित 150 साल पुरानी मरी माता मंदीर को ज़मींदोज़ कर दिया गया। पाकिस्तान: 14 जुलाई की रात जब बिजली नहीं थी, पाकिस्तान के कराची मे स्थित 150 साल पुरानी मरी माता मंदीर को ज़मींदोज़ कर दिया गया। भारी पुलिस की तैनाती के बीच, बुल्डोज़र से मंदिर के द्वार और बाहरी दीवारों के अलावा पूरे परिसर को गिर दिया गया। इससे वहाँ का पूरा हिन्दू समाज सदमे में है। सिंध के राजधानी कराची में ये मंदिर सोल्जर बाजार मे था।  इसके प्रबंधन की जिम्मेदारी मदारसी हिंदू समुदाय के पास थी। वहाँ के वरिष्ठ पुलिस अधिकारि का कहना है की मंदिर पुराना और खतरनाक हो गया था इसीलिए ऐसा किया गया। पर वहाँ के स्थानीय हिंदु कुछ और बता रहे है। इलाके में पुराने हिंदू मंदिरों की देखभाल करने वाले रामनाथ मिश्रा महाराज ने कहा, “उन्होंने (अधिकारियों ने) इसे सुबह-सुबह किया और हमें इसकी जानकारी नहीं थी कि ऐसा होने वाला है।” मिश्रा का कहना है कि के मंदिर के प्रांगण के नीचे खजाना दबा हुआ है। क्या मरी मत मंदिर के जमीन पर मॉल बनाना चाहते थे? औरों ने बताया मंदिर परिसर पर काफी समय से अतिक्रमण करने वालों की नजर थी।  क्योंकि वो वहाँ एक कमर्शियल कॉम्प्लेक्स बनाना चाहते थे। और इसके लिए लगभग 400 से 500 वर्ग यार्ड की जमीन मंदिर परिसर मे थी। मंदिर प्रबंधन पर खाली करने के लिए बहुत दबाव बनाया जा रहा था। इसलिए अनिच्छा से अधिकांश देवताओं को पास के एक छोटे से कमरे में स्थानांतरित कर दिया गया था। इसके बाद वे मंदिर का जीर्णोद्धार करने वाले थे, लेकिन उससे पहले ही इसे बिल्कुल जमींदोज कर दिया गया। इन्होंने बताया की जिन लोगों ने इन पर दवाब बनाने की कोशिश की थी वो किसी और से 7 करोड़ पाकिस्तानी रुपये मे इसे बेचने की बात कर रहे थे। और इसमे जाली दस्तावेसज़ों की भी बात सामने आई थी। इन लोगों ने पाकिस्तान-हिंदू काउन्सिल से अपील की है की मामले की जल्द से जल्द जाँच की जाए। पाकिस्तान की अधिकांश हिंदू आबादी सिंध प्रांत में बसी हुई है जहां वे मुस्लिम निवासियों के साथ संस्कृति, परंपराएं और भाषा साझा करते हैं। ये भी पढ़ें: UPI अब फ्रांस भी पहुँचा https://aayudh.org/indian-upi-in-france/

UPI अब फ्रांस भी पहुँचा

PM Modi with France PM Macron on UPI

भारत और फ्रांस ने खुदरा भुगतान के मामले में भारत के यूनिफाइड पेमेंट इंटरफेस (UPI) का उपयोग करने की अनुमति देने वाले एक समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं। फ्रांस: पीएम नरेंद्र मोदी ने अपनी आधिकारिक यात्रा पर फ्रांस पहुंचने के बाद इस खबर की घोषणा की और इस नवीनतम विकास के साथ, फ्रांस इसे अनुमति देने वाला यूरोप का पहला देश है। जून 2022 में, नेशनल पेमेंट्स कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया (एनसीपीआई) की अंतरराष्ट्रीय शाखा ने वहां UPI और RuPay को स्वीकार करने के लिए फ्रांस के Lyra नेटवर्क के साथ एक समझौता ज्ञापन (MOU) पर हस्ताक्षर किए। क्या है UPI? 2016 में लॉन्च किया गया UPI, भारत की मोबाइल-आधारित तेज़ भुगतान प्रणाली है, जो ग्राहकों को ग्राहक द्वारा बनाए गए वर्चुअल पेमेंट एड्रेस (VPA) का उपयोग करके चौबीसों घंटे तुरंत भुगतान करने की सुविधा देती है। यह व्यक्ति-से-व्यक्ति (P2P) और व्यक्ति-से-व्यापारी (P2M) दोनों भुगतानों का समर्थन करता है और यह उपयोगकर्ता को पैसे भेजने या प्राप्त करने में भी सक्षम बनाता है। डील के फायदे? ·इस नई डील के साथ, भारतीय पर्यटक यूपीआई का उपयोग करके फ्रांस में रुपये का भुगतान कर सकते हैं। ·पहले वे भुगतान के लिए केवल क्रेडिट और डेबिट कार्ड का उपयोग कर सकते थे। लेकिन QR कोड या UPI आईडी को स्कैन करना अब एक विकल्प है। ·इस सौदे के लागू होने से फ्रांस में डिजिटल भुगतान को बढ़ावा मिलेगा और एक बैंक अधिकारी ने बताया कि इससे विदेशी मुद्रा भंडार बचाने में मदद मिलेगी क्योंकि फ्रांस में खुदरा भुगतान रुपये में किया जाएगा। पेरिस के ला सीन म्यूजिकल में भारतीय समुदाय को संबोधित करते हुए पीएम मोदी ने कहा: “भारत और फ्रांस फ्रांस में UPI का उपयोग करने पर सहमत हुए हैं। समझौते के बाद मैं चला जाऊंगा. हालाँकि, आगे बढ़ना आपका काम है। दोस्तों, आने वाले दिनों में इसकी शुरुआत एफिल टॉवर से की जाएगी, जिसका मतलब है कि भारतीय पर्यटक अब एफिल टॉवर पर यूपीआई के माध्यम से रुपये में भुगतान कर सकेंगे,”। इस घोषणा को भारत और फ्रांस के बीच द्विपक्षीय व्यापार और पर्यटन के लिए एक महत्वपूर्ण विकास के रूप में देखा जा रहा है। पीएम मोदी ने यह भी कहा कि दोनों देश लंबे समय से पुरातत्व मिशन पर काम कर रहे हैं। और कौन से देश मे है भारतीय UPI? यू.पी.आई. इसके पहले अमेरिका, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, यूनाइटेड अरब एमिरेटस, ब्रिटेन, सिंगापूर जैसे दुनिया के 10 देशों में अपनाया जा चुका है। इसके इस्तेमाल से क्रॉस बॉर्डर भुगतान करने में आसानी हो जाती है। ये भी पढ़ें: Underground Climate Change क्या है जो शिकागो मे धरती खिसका रही है? https://aayudh.org/underground-climate-change-in-chicago/

Underground Climate Change क्या है जो शिकागो मे धरती खिसका रही है?

Underground Constructions in chicago

नॉर्थवेस्टर्न यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर लोरिया ने एक स्टडी के मुताबिक शिकागो के नीचे से धरती हट रही है। और ये हो रहा है Underground Climate Change की वजह से। Underground Climate Change की क्या है वजह? शिकागो: ट्रेन टनल, पार्किंग गैरेज, सबवे से निकलते हवाओं, पदार्थों के वजह से अंदर गर्मी बढ़ती है। 20वीं सदी के मध्य से, शहर की सतह और आधारशिला के बीच की ज़मीन औसतन 5.6 डिग्री फ़ारेनहाइट गर्म हो गई है। वह सारी गर्मी, जो ज्यादातर बेसमेंट और अन्य भूमिगत संरचनाओं से आती है, ने दशकों में कुछ इमारतों के नीचे रेत, मिट्टी और चट्टान की परतों को कई मिलीमीटर तक कम या सूजन कर दिया है, जो दीवारों और नींव में दरारें और दोषों को खराब करने के लिए पर्याप्त है। भूमिगत तापमान बढ़ने से मेट्रो सुरंगें गर्म हो रही हैं, जिससे यात्रियों के लिए ट्रैक अधिक गर्म हो सकते हैं और भाप-स्नान की स्थिति पैदा हो सकती है। और, समय के साथ, वे इमारतों के नीचे की ज़मीनमें छोटे बदलाव का कारण बनते हैं, जो संरचनात्मक तनाव पैदा कर सकता है, जिसका प्रभाव लंबे समय तक ध्यान देने योग्य नहीं होता है जब तक कि अचानक न हो जाए। और देशों मे क्या है हाल? यह सिर्फ शिकागो मे नहीं है। दुनिया भर के बड़े शहरों में, मनुष्यों द्वारा जीवाश्म ईंधन जलाने से सतह पर तापमान बढ़ रहा है। लेकिन गर्म बेसमेंट, पार्किंग गैरेज, ट्रेन सुरंगों, पाइपों, सीवरों और बिजली के तारों और आसपास की धरती से भी बाहर निकल रही है, एक ऐसी घटना जिसे वैज्ञानिकों ने “Underground Climate Change” कहा है। ऑस्ट्रेलिया में न्यू साउथ वेल्स विश्वविद्यालय में भू-तकनीकी इंजीनियरिंग के एक वरिष्ठ व्याख्याता असल बिडरमाघज़ ने कहा। “लेकिन अगले 100 वर्षों में, एक समस्या है। और अगर हम अगले 100 वर्षों तक बैठे रहें और इसे हल करने के लिए 100 वर्षों तक प्रतीक्षा करें, तो यह एक बड़ी समस्या होगी। डॉ. बिडरमाघ्ज़ ने लंदन में भूमिगत गर्मी का अध्ययन किया है लेकिन वह शिकागो में शोध में शामिल नहीं थे। प्रोफेसर लोरिया की ये स्टडी कई सालों के शिकागो मे किए हुए जाँच-पड़ताल के उपर आधारित है। ये भी पढ़ें: पाकिस्तानी सेना को अपने ही देश में क्यों मारा जा रहा है? https://aayudh.org/pakistan-army-under-attack/