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क्या अमेरिका में चुनाव एक कारोबार बन गया है?

2020 में, संयुक्त राज्य अमेरिका में चुनाव अभियानों पर लगभग 1440 करोड़ डॉलर खर्च किए गए थे। यह अमेरिकी इतिहास का सबसे महंगा चुनाव प्रचार था। ये 70 देशों के GDP से भी ज्यादा है।

अमेरिका: राष्ट्रपति जो बाइडेन की टीम ने नई डेटा निकाली है जिससे ये सामने आया है की 2020 के राष्ट्रपति चुनाव में बाइडेन ने लगभग 100 करोड़ डॉलर्स उठाए थे और वही ट्रम्प ने 77.5 करोड़ डॉलर्स।

इस साल मे अभी तक राष्ट्रपति पद के उम्मीदवारों मे बाइडेन को 7.7 करोड़ डॉलर्स डोनेशन मे मिले है, ट्रम्प को 3.8 करोड़ डॉलर्स और रॉन डी सैन्टिस को 2 करोड़ डॉलर्स।

2020 में, संयुक्त राज्य अमेरिका में चुनाव अभियानों मे 2016 के खर्च से दोगुने से भी अधिक है।

पर ये पैसे आते कहा से है?

2010 के पहले तक तो इनमे पैसे आम जनता, पोलिटिकल एक्शन कमिटी और खुद सरकार के तरफ से जाता था। पर फिर 21 जनवरी 2010 को, अमेरिका के सुप्रीम कोर्ट ने सिटीजन्स यूनाइटेड के पक्ष में 5-4 निर्णय जारी किया, जिसने पहले संशोधन के उल्लंघन के रूप में कॉर्पोरेट खजाने से चुनाव प्रचार मे स्वतंत्र व्यय पर बीसीआरए के प्रतिबंधों को हटा दिया।
उनका मानना था की अगर ऐसा नहीं किया जाए तो अभिव्यक्ति की आजादी पूरी तरीके से लागू नहीं होगी। 
अमेरिका में चुनाव मे दिए गए पैसे
और फिर तब से बड़ी बड़ी कंपनियों द्वारा चुनावों मे पैसे बहाए जाने लगे। 

अमरीका में चुनाव पर इसका असर

ट्रम्प के चुनाव प्रचार में नैशनल राइफल एसोसिएशन (NRA) ने 3 करोड़ डॉलर्स दिए थे। जिसके बाद डोनाल्ड ट्रम्प ने आते ही ऐसे बदलाव लाए की बंदूक खरीदना आसान हो गया। 
अमेरिकी बंदूक की बिक्री 2020 में रिकॉर्ड 23 मिलियन तक पहुंच गई जो की 2019 से 65% से ज्यादा थी। और फिर ये 2021 में बढ़ती ही गई।
और इसका असर कितना घातक रहा वो बताने की जरूरत भी नहीं है। 2023 मे अब तक 1355 मास शूटिंग के रिपोर्ट दर्ज हो चुके है।
अमेरिका शूटिंग मे मारे गए बच्चें
2019 में, अमेरिका में बंदूक से संबंधित मौतों की कुल संख्या 33,599 थी। 2022 में, मौतों की संख्या 31% की वृद्धि बढ़कर 44,290 हो गई। 
आलोचकों का आरोप है कि "अमेरिकी राजनीतिक अभियानों पर बड़ी धनराशि इस हद तक हावी है जो दशकों में नहीं देखी गई" और "आम अमेरिकियों की आवाज़ को दबा रही है।"

ऐसा दावा है की अगले चुनाव के लिए दोगुना पैसा बहाया जाएगा। ऐसा ही रहा तो ना जाने आगे कौन सी कंपनी चुनाव मे पैसे देकर अपने फायदे के नियम बनवाएगी। अब सरकार की नियम से कारोबार नहीं, कारोबारियों से सरकार के नियम बनेंगे।

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