About Us

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आयुध का अर्थ होता है वह मारक शस्त्र का जिसका उपयोग शत्रु पर किया जाता है लेकिन उसका नियंत्रण चलाने वाले के हाथों में होता है. किसी भी युद्धरत सभ्यता और समाज के लिए आयुध उतना हीं आवश्यक है जितना जीने के लिए स्वास. यह आयुध लाठी जितना सरल भी हो सकता है और बैलिस्टिक मिसाइल जितना जटिल भी. 

वर्तमान समय में जब हर ओर नैरेटिव का युद्ध चल रहा है, व्यक्ति, संस्थाएं और समूह प्रयास कर रहे हैं कि उनके विचार स्थापित हों. नैरेटिव के इस युग में समाज हित के विचार कहीं पीछे छूटते दिखाई देते हैं, ऐसे में समाज के हितों कि रक्षा के लिए एक ऐसे आयुध की आवश्यकता है जो समाज विरोधी विचारों का उत्तर देने में सक्षम हो, अपने विषय और विचारों को मजबूती से रखे और उसका नियंत्रण समाज के हाथों में हो. 

इसी संकल्पना और विचार के साथ राष्ट्रीय विचारों से जुड़े युवाओं के एक समूह ने आयुध नाम से एक डिजिटल मीडिया प्लेटफार्म की शुरुआत की. इस मंच के माध्यम से हम राष्ट्र और समाज हित से जुड़े विषयों को निरंतर उठा रहे हैं. आयुध का वर्तमान कार्यक्षेत्र मध्यप्रदेश है. पिछले एक वर्ष में हमने समसामयिक विषयों के साथ मध्यप्रदेश के सामाजिक, सांस्कृतिक और विषयों को भी प्रमुखता से उठाया है. इस यात्रा में हमें नागरिकों एवं प्रदेश के अनेक विशिष्ट जनों का भरपूर प्रेम और सहयोग मिला है.

इसी प्रेम का परिणाम है कि एक वर्ष के समय में तमाम चुनौतियों और प्रतिकूल परिस्तिथियों में भी आयुध ने 700 से ज्यादा विडियो अनेक विषयों पर बनाये जिन्हें सभी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर 3 करोड़ लोगों ने देखा. इस दौरान 50 हज़ार लोग सब्सक्राइबर और फॉलोवर के रूप में हमसे जुड़े. 

संख्या एक सूचक मात्र होती है, उद्देश्य की सफलता को संख्या मात्र से नहीं नापा जा सकता. गुरूजी गोलवलकर ने स्पष्ट रूप से कहा था कि देश के भीतर शत्रुतापूर्ण तत्व बाहर से आक्रामकों की तुलना में राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए अधिक खतरा पैदा करते हैं. उन्होंने भारत में तीन प्रमुख आंतरिक खतरे देखे: मुस्लिम, ईसाई और कम्युनिस्ट. आयुध ने इन तीनों के विचारों और विध्वंशकारी कार्यों का मुखरता से भंडाफोड़ किया है. वह चर्च और ईसाईयों द्वारा धोखे से किया जा रहा धर्मान्तरण हो, इस्लामिक आक्रामकता और षड़यंत्र या फिर कम्युनिस्टों द्वारा फेंके जा रहे भ्रामक नैरेटिव, आयुध ने हर क्षेत्र में कार्य किया है और उन कार्यों को सफलता भी मिली है.

इस दस्तावेज में आयुध के एक वर्ष की यात्रा और अभियानों को प्रस्तुत करने का प्रयास किया गया है. आशा है इस से आप आयुध की संकल्पना और उद्देश्य को बेहतर तरीके से समझ पायेंगे.

धन्यवाद

आयुध : क्या और क्यूँ ?

ध्येय वाक्य – न दैन्यं, न पलायनम

जिस अर्जुनमें युद्धके लिये इतना उत्साह था, वीरता थी, वे ही अर्जुन दोनों सेनाओं में अपने कुटुम्बियोंको देखकर उनके मरने की आशंका से मोहग्रस्त होकर इतने शोकाकुल हो गये हैं कि उनका शरीर शिथिल हो रहा है, मुख सूख रहा है, शरीरमें कँपकँपी आ रही है, रोंगटे खड़े हो रहे हैं, हाथसे धनुष गिर रहा है, त्वचा जल रही है, खड़े रहनेकी भी शक्ति नहीं रही है और मन भी भ्रमित हो रहा है। कहाँ तो अर्जुनका यह स्वभाव कि ‘न दैन्यं न पलायनम्’ और कहाँ अर्जुनका कायरताके दोष से शोकाविष्ट होकर रथ के मध्यभाग में बैठ जाना! वही अर्जुन योगेश्वर श्रीकृष्ण के मुख से भगवत गीता का ज्ञान सुनने के बाद कहते हैं _ ‘स्थितोऽस्मि गतसन्देहः करिष्ये वचनं कि मूल में मेरा जो यह सन्देह था कि युद्ध करूँ या न करूँ (‘न चैतद्विद्मः कतरन्नो गरीयः’ २।६), वह मेरा सन्देह सर्वथा नष्ट हो गया है और मैं अपनी वास्तविकतामें स्थित हो गया है। वह संदेह ऐसा नष्ट हो गया है कि न तो युद्ध करनेकी मनमें रही और न युद्ध न करनेकी ही मनमें रही। अब तो यही एक मनमें रही है कि आप जैसा कहें, वैसा मैं करूँ अर्थात् अब तो बस, आपकी आज्ञाका ही पालन करूँगा-‘करिष्ये वचनं तव।’ अब मेरेको युद्ध करने अथवा न करनेसे किसी तरहका किंचिन्मात्र भी प्रयोजन नहीं है। अब तो आपकी आज्ञाके अनुसार लोकसंग्रहार्थ युद्ध आदि जो कर्तव्य-कर्म होगा, वह करूँगा। और अर्जुन अपने मूल चरित्र को पुनः प्राप्त करते हैं, ‘न दैन्यं न पलायनम्’ अर्थात स्थिति और परिस्थिति चाहे कुछ भी हो न मैं कहीं किसी दीनता (कमजोरी) का प्रदर्शन करूँगा न हीं युद्धक्षेत्र को छोड़कर पीछे हटूंगा. 

हमने इसी प्रसंग और भाव को संगृहीत करते हुए न दैन्यं, न पलायनम को अपना ध्येय वाक्य बनाया है और इसे चरितार्थ करने का प्रयास भी किया है. धर्मान्तरण के मामलों को रिपोर्ट करते हुए अन्तर्राष्ट्रीय संस्थानों द्वारा हमपर दबाव बनाया गया, जानलेवा हमले हुए. मुस्लिम आक्रामकता के मामले को रिपोर्ट करते हुए हमारे विडियो प्रसाशन द्वारा हटा दिए गए, धमकियां दी गयीं लेकिन हम पीछे नहीं हटे.

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