प्रयागराज। महाकुंभ में अघोरियों की उपस्थिति हमेशा से ही लोगों के लिए जिज्ञासा का विषय रही है। लोग अघोरियों को देखकर उत्सुकता से भर जाते हैं, लेकिन उनके जीवन, उनकी साधना और उनके विचारों के बारे में बहुत कम लोग ही जानते हैं। इसी रहस्य से पर्दा उठाने के लिए Aayudh की टीम ने प्रयागराज महाकुंभ में एक अघोरी बाबा से मुलाकात की और अघोर परंपरा के बारे में विस्तार से जानकारी प्राप्त की।
क्या होता है अघोर?
अघोरी बाबा से बातचीत के दौरान उन्होंने अघोर शब्द का अर्थ स्पष्ट किया। उन्होंने बताया कि ‘घोर’ का अर्थ होता है जटिल, और ‘अघोर’ का अर्थ होता है सरल और निर्मल। अघोर वह अवस्था है जो व्यक्ति को सभी बंधनों से मुक्त कर देती है। यह मार्ग उन्हें सांसारिक मोह-माया से परे ले जाता है और परम सत्य की खोज में सहायता करता है।
साधु-संतों और अघोरियों में अंतर
अघोरी बाबा ने बताया कि आमतौर पर लोग संतों और अघोरियों को एक ही श्रेणी में रख देते हैं, लेकिन दोनों में एक बहुत बड़ा अंतर है। उन्होंने अघोरी को एक प्रकार का शोधकर्ता बताया, जो ब्रह्मांड के गुप्त रहस्यों पर शोध करता है और सत्य की खोज में लगा रहता है।
उन्होंने बताया कि अघोर साधना में केवल दो ही पक्ष होते हैं— गुरु और शिष्य। अघोर पंथ में मंत्र, शास्त्र या वेदों की बहुत अधिक भूमिका नहीं होती है। गरुड़ पुराण में अघोरियों का उल्लेख मिलता है, लेकिन उसमें भी उनके रहस्यों को उजागर नहीं किया गया है।
अघोरी क्यों रखते हैं डरावना रूप?
जब अघोरी से उनके रूप-रंग और विचित्र आचरण के बारे में पूछा गया, तो उन्होंने बताया कि उनका उद्देश्य लोगों को डराना नहीं, बल्कि स्वयं को समाज से अलग रखना होता है। उन्होंने कहा—”हम अपना रूप इसलिए ऐसा रखते हैं ताकि लोग हमसे दूर भागें और हमें साधना के लिए एकांत मिल सके।”
अघोरी और तांत्रिक विद्या
अघोरी बाबा ने बताया कि तांत्रिक विद्या केवल काले जादू तक सीमित नहीं है। इसमें योग, चिकित्सा और कला का भी ज्ञान होता है। कुछ लोग इसे गलत तरीके से उपयोग करते हैं, इसलिए समाज में तांत्रिकों को लेकर नकारात्मक धारणा बन गई है।
अघोरी कौन-सी साधना करते हैं?
अघोरी विशेष रूप से श्मशान साधना करते हैं। इस पर उन्होंने कहा—”श्मशान साधना हमें वैराग्य सिखाती है। जब शरीर पंचतत्व में विलीन हो जाता है, तो वह हमें जीवन की असलियत से परिचित कराता है।”उन्होंने यह भी बताया कि शिव का सबसे प्रिय स्थान श्मशान है, क्योंकि यह एकांत और शांति का प्रतीक है।
नागा साधुओं और अघोरियों में क्या अंतर है?
अघोरी बाबा ने स्पष्ट किया कि नागा साधु और अघोरी एक नहीं होते। नागा साधु सनातन संस्कृति के संरक्षक होते हैं और समाज के भीतर धर्म की रक्षा के लिए कार्य करते हैं। अघोरी ब्रह्मांड की गुप्त शक्तियों और रहस्यों पर शोध करते हैं और उनका उपयोग कल्याणकारी कार्यों में करते हैं।
अघोरी और नरभक्षण की सच्चाई
अघोरी बाबा से जब नरभक्षण को लेकर सवाल पूछा गया तो उन्होंने बताया—”हम किसी चीज से घृणा नहीं करते। अगर कुछ भी खप्पर में आ जाए, तो हम उसे ग्रहण कर लेते हैं। हमारे लिए भोजन जीवन जीने का एक माध्यम है, न कि जीने का उद्देश्य।” साथ ही उन्होंने बताया कि अघोरियों के काले कपड़े पहनने के पीछे एक वैज्ञानिक कारण है चूकी काला रंग ऊर्जा को अवशोषित करता है, जिससे साधना में मदद मिलती है।
अघोरी बाबा ने बताया कि अघोर परंपरा न केवल भारत में, बल्कि विदेशों में भी जानी जाती है। कई विदेशी साधक अघोर मार्ग को समझने और इसका अनुभव लेने के लिए भारत आते हैं।
महाकुंभ और अघोरियों का संबंध
अघोरी बाबा ने महाकुंभ के महत्व को भी बताया। उन्होंने कहा कि महाकुंभ समुद्र मंथन से जुड़ा हुआ है, और यह शिव तथा अघोरियों की साधना का प्रतीक भी है।अंत में, अघोरी बाबा ने कहा कि उनकी साधना का अंतिम लक्ष्य परम सत्य की प्राप्ति है। अघोरी सांसारिक बंधनों को तोड़कर आत्मज्ञान की ओर बढ़ते हैं और अपने गुरु के बताए मार्ग पर चलते हुए जीवन व्यतीत करते हैं।
Aayudh की टीम ने इस बातचीत से जाना कि अघोरी केवल रहस्यमयी साधु नहीं होते, बल्कि वे ब्रह्मांड और जीवन के गहरे रहस्यों की खोज में लगे होते हैं। उनके लिए हर चीज पवित्र होती है, और वे किसी भी चीज से घृणा नहीं करते। उनकी साधना उन्हें आत्मज्ञान और परम मुक्ति की ओर ले जाती है।