प्रयागराज। Aayudh की टीम पिछले कई दिनों से प्रयागराज में मौजूद है। देश की संस्कृति को प्रदर्शित करने वाला महाकुंभ अब अपने अंतिम चरण में है। 13 जनवरी से शुरू हुए इस आयोजन का 26 फरवरी को महाशिवरात्रि के दिन आखिरी शाही स्न्नान होगा। इसी बीच Aayudh ने तेरह भाई त्यागी साधुओं से मुलाकात की। उन्होंने Aayudh को अपनी रहस्मयी तपस्या के बारे में बताया। आइए जानते हैं उनकी कहानी।
क्यों लगाते हैं नाम के आगे त्यागी ?
उत्तम दास जी महाराज, तेरह भाई त्यागी जी ने हमें बताया अपने नाम के पीछे त्यागी लगाने का कारण। उन्होनें कहा कि ‘त्यागी’ का मतलब होता है, जो जीवन रहते-रहते अपने जीवन को त्याग दे। वस्तुओं का त्याग तो हर कोई करता है लेकिन हमनें अपने जीवन को त्याग दिया है, इसलिए हम अपने नाम के पीछे ‘त्यागी’ शब्द लगाते हैं।
अखिल भारतीय श्री पंच तेरह भाई त्यागी के पीछे की कहानी
उत्तम दास जी महाराज ने Aayudh को बताया कि एक गुरु जी के 5 शिष्य थे, जो बाद में तेरह हो गए, इसलिए इसका नाम अखिल भारतीय श्री पंच तेरह भाई त्यागी पड़ा। उन्होंने बताया कि इसकी शाखाओं से पूरे देशभर में 2 लाख से अधिक साधु जुड़े हैं। कुम्भ में आने का उद्देश्य सिर्फ गंगा स्न्नान करना नहीं बल्कि देशभर से आए हुए सभी साधुओं का एक स्थान पर दर्शन करना भी है। 35 करोड़ देवी-देवता पूरे एक महीने यहाँ विराजमान रहते हैं।
क्यों करते हैं, पंच अग्नि तप
आपको बता दें कि इस तप को सिर्फ त्यागी महात्मा ही करते हैं। पंच अग्नि तप में शरीर को पाँच तरीकों से तपाया जाता है। शरीर को तपाने की सबसे पहली प्रक्रिया शुरू होती है, पंच अग्नि तप पूरा नहीं होने तक भोजन को ग्रहण नहीं करने से। दूसरा, जमीन के जरिए शरीर को तपाना, तीसरा अग्नि के जरिए और चौथा जब सूर्यदेव दोपहर के 12 बजे सर के ऊपर आते हैं। इस पूरी तपस्या का उद्देश्य समाज का कल्याण है।
आपको बता दें कि यह तपस्या सदियों से चली आ रही है। इस तपस्या की प्रक्रिया 18 वर्षों की होती है। यदि कोई व्यक्ति इस तपस्या को करने में एक दिन भी चूक जाता है तो इसकी अवधि 1 वर्ष और बढ़ जाती है।
42 हज़ार किलोमीटर पैदल चल चुके हैं
उत्तम दास जी महाराज ने अपने गुरु जी का उल्लेख करते हुए कहा कि उन्होंने पूरे भारत का भ्रमण पैदल किया है। उन्होंने सनातन धर्म की सबसे महत्वपूर्ण यात्रा का जिक्र करते हुए कहा कि हमारे गुरुदेव ने 8 बार कैलाश मानसरोवर की अयोध्या से पैदल यात्रा की है। उन्होंने कहा कि कई आश्रम होने के बावजूद हम वैरागी का जीवन व्यतीत कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि हमारा अनुष्ठान मौसम के विपरीत चलता है।
हर विषय में आपको उत्तीर्ण होना होगा
महाराज जी ने Aayudh से बात करते हुए बतया कि जिस प्रकार हमारी पढ़ाई में अलग-अलग विषय होते हैं, उसी प्रकार हमारे जीवन में भी कई पड़ाव होते हैं और इनमें हमें उत्तीर्ण होना होता है। हमारे जीवन में इतने सारे विषय हैं, उन्हीं में से एक विषय ‘धर्म’ भी है, जो हमें पढ़ना होगा। यदि आपने इसे प्रेम से कर लिया तो आपके जीवन के कई अनसुलझे पहलु सुलझ जाएंगे। उन्होंने कहा कि ‘धर्म’ वो विषय है जो युवाओं को सही दिशा देता है।
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