नई दिल्ली। हाल ही में अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने एक बयान दिया, जिसमें वो कह रहे हैं कि अमेरिका ने भारत को 2.1 करोड़ डॉलर भारत में ‘वोटर टर्नआउट’ बढ़ाने के लिए दिए थे। डिपार्टमेंट ऑफ गवर्नमेंट एफिशिएंसी (DOGE) ने बताया कि यूनाइटेड स्टेट्स एजेंसी फॉर इंटरनैशनल डेवलपमेंट (USAID) ने भारत में चुनाव के लिए ये पैसे दिए थे।
आखिर USAID है क्या ?
USAID अमेरिकी सरकार की एक एजेंसी है, जो दुनियाभर के अलग – अलग देशों को आर्थिक मदद पहुँचाता है। USAID के कार्यालय 60 से अधिक देशों में मौजूद हैं और इनमें 10 हज़ार से अधिक कर्मचारी काम करते हैं। USAID पर अक्सर अपना एजेंडा चलाने का भी आरोप लगता है। आपको बता दें कि USAID जमीन पर सीधे काम नहीं करता, यह दूसरे संगठनों के साथ समझौता करता है और फिर उन्हें फंडिंग करता है।
अमेरिका ने जिन पैसों की बात की, वो गए कहाँ ?
एलन मस्क की अध्यक्षता वाले DOGE ने एक खुलासा किया कि USAID ने इंडिया को ‘वोटर टर्नआउट’ बढ़ाने के लिए 21 मिलियन डॉलर दिए हैं। अब सवाल ये उठता है कि इन पैसों का इस्तेमाल कहाँ हुआ ? आइये जानते हैं।
2024 में देश के लोकसभा चुनाव हुए, इस चुनाव के परिणाम चौंकाने वाले थे। क्यूंकि इस चुनाव में जो NDA 400 से अधिक सीटों का दावा कर रही थी उसे केवल 292 सीटें मिली। 2019 के लोकसभा चुनाव में इसी NDA को 351 सीटें मिली थीं। वहीं INDI गठबंधन को 2019 के चुनाव के मुकाबले 2024 में 140 सीटें अधिक मिलीं। यानी जिस UPA को 2019 में 90 सीटें मिली थीं, उसने 2024 के लोकसभा चुनाव में 230 सीटें हासिल की। जिसका ‘वोटिंग परसेंटेज’ 26.4 से बढ़कर 36.7 हो गया।
जब चुनाव परिणामों के विश्लेषण किये गए तो लोगों ने कहा कि ये ‘एंटी-इंकम्बेंसी’ का मामला है। आसान शब्दों में इसे ‘सत्ता विरोधी लहर’ कहा जाता है। परिणाम ये निकलकर सामने आया कि देश के प्रधानमंत्री उतने लोकप्रिय नहीं रहे जितने वो 2014 में थे। आपको बता दें कि अमेरिका की एक संस्था DOGE ने खुलासा किया है कि USAID के जरिए भारत को 21 मिलियन डॉलर ‘वोटर टर्नआउट’ बढ़ाने के लिए दिए गए थे।
आखिर पैसे भारत आए कैसे ?
आपको बता दें कि 2013 में मनमोहन सरकार एक पॉलिसी लेकर आई थी। इसका नाम था ‘NO AID POLICY’, इसके अंतर्गत भारत ने साफ़-साफ़ दुनियाभर के देशों से कहा था कि हम विदेशी सहायता स्वीकार नहीं करते। तो जाहिर सी बात है कि जिन पैसों की बात अमेरिका कर रहा है वो NGOs के जरिए आये होंगे।
रिसर्च करने पर पता चला कि अमेरिका ने वो पैसे एक NDI नाम के गैर सरकारी संगठन(NGO) को दिए हैं।
ये संस्था दुनियाभर के देशों को अच्छे से चुनाव करवाने के लिए फंड देती है। इसी संस्था के एक सदस्य हैं, RICHARD F. CELESTE . रिचार्ड 1997 से लेकर 2002 तक अमेरिका के राजदूत के तौर पर भारत में रहे हैं। ये वो दौर था जब अटल बिहारी वाजपेयी भारत के प्रधानमंत्री थे। उन्होंने अपना पूरा कार्यकाल पूरा किया था। लेकिन उनके कार्यकाल पूरा करने के बाद जब सभी अनुमान लगा रहे थे कि वाजपेयी एक बार फिर से प्रधानमंत्री बनेंगे तब मनमोहन सिंह देश के प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठते हैं।
NDI कहाँ-कहाँ काम करती है ?
NDI वही संस्था है जो दुनियाभर के देशों को चुनाव कराने के लिए फंड देती है। जब हमनें इसकी वेबसाइट को खंगाला तो पता चला कि ये संस्था बांग्लादेश, म्यांमार, कंबोडिया, इंडोनेशिया, मलेशिया, नेपाल, और पाकिस्तान जैसे अन्य देशों में काम करती है मगर भारत में काम नहीं करती। ये भारत में सीधे तौर पर नहीं लेकिन एक संस्था ‘अमेरिकन्स फॉर इंडिया’ (AFI) के साथ मिलकर काम करते हैं। इस संस्था के सलहाकार मंडल में एक सदस्य हैं, जिनका नाम है ‘विजय महाजन’

कौन हैं विजय महाजन ?
जब हमनें और पड़ताल की तो पता चला कि ‘विजय महाजन’ राजीव गाँधी फाउंडेशन के CEO हैं। साथ ही ये ‘राजीव गाँधी इंस्टिट्यूट ऑफ़ कंटेम्पररी स्टडीज’ के भी डायरेक्टर हैं। एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर विजय पटेल ने थ्रेड में एक पोस्ट किया था कि कैसे विजय महाजन अमेरिका से फंडिंग लेकर उन पैसों का उपयोग भारत और अन्य देशों के चुनावों में करते हैं। यहाँ तक कि बांग्लादेश में जो तख्तापलट हुआ उसमें इनकी भी भूमिका है।
देश में हुए किसान आंदोलन से लेकर शाहीन बाग तक में इनका हाथ था। इन्हें इन सारे प्रोटेस्ट का ‘मास्टरमाइंड’ बताया गया। JNU से लेकर जामिया में लग रहे नारों में भी इनका कनेक्शन निकलकर सामने आता है और ये उसी ‘राजीव गाँधी फाउंडेशन’ के सीईओ हैं, जिसकी अध्यक्ष सोनिया गाँधी हैं।
आपको बता दें की विजय महाजन ने अपने लिखे एक आर्टिकल में भारत में ‘कास्ट सेन्सस’ की मांग कर रहे थे। इसी ‘कास्ट सेन्सस’ का जिक्र अपनी हर रैली में करते हैं। इसी 2024 के लोकसभा चुनाव में अमेरिका भारत पर बड़े सवाल खड़े कर रहा था कि भारत में चुनावी स्वतंत्रता नहीं है। भारत के लोकतांत्रिक व्यवस्था को बदलने की जरुरत है।
ये आंकड़ें और बयान जिस तरफ इशारा कर रहे हैं, उसे आप भी समझ गए होंगे। इतनी फंडिंग के बावजूद INDI गठबंधन 2024 का लोकसभा चुनाव हार गई।

इसे लेकर जांच होगी ?
DOGE ने जब आंकड़े जारी किए तो डोनाल्ड ट्रम्प ने इसकी जांच के लिए भी कहा है। उन्होंने कहा कि इंडिया को डेटा मुहैया करने में अमेरिका पूरी सहायता करेगा। जब जांच होगी तो सबकुछ सामने आ जाएगा। इस जांच के बाद कई NGO, पत्रकार और नेता सभी सामने आएंगे जो देश में चुनाव जीतने के लिए विदेशों से फंडिंग लेते हैं।
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