लोकसभा में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने भारतीय दंड संहिता 1860, दंड प्रक्रिया संघिता 1898 और भारतीय साक्ष्य अधिनियम 1872 के जगह भारतीय न्याय संहिता 2023, भारतीय नागरिक सुरक्षा2023, भारतीय साक्ष्य बिल 2023 पेश किए। नए कानून के हिसाब से इन बिल का मकसद अपराध को बढने से रोकना और न्याय दिलाना है.
गृह मंत्री अमित शाह ने कहा की “जिस अपराध में 7 साल से अधिक की सजा होनी हो उसके लिए घटनास्थल पर जांच के लिए फारेन्सिक टीम मौजूद होनी चाहिए. उन्होंने कहा की 2027 तक देश के सभी अदालतों को कंप्यूटराइज्ड करना चाहती है। मॉब लिचिंग के केस में भी 7 साल की उम्र कैद या सजाए मौत हो सकती है। उन्होंने महिला अपराध पर कङा हुए कहा की महिलाओं के साथ अट्याचार करने वाले अपराधी को कङी सजा दी जाएगी. सामूहिक बलात्कार के लिए 20 साल की सजा की गारंटी है और 18 साल से कम उम्र की किसी भी महिला के साथ दुष्कर्म होने पर मौत की सजा सुनिश्चित की जायेगी।
भारतीय दंड संहिता 1860 और उसमें किए गए संशोधन:
भारतीय दंड संहिता अंग्रेजी शासन के दौरान 1860 में लाई गई थी। इसके अनुसार राज्य के अस्तित्व को सुरक्षित रखने और सुरक्षित रखने और संरक्षित करने के प्रावधान हैं और राज्य के खिलाफ अपराध के मामले में मौत की सजा या आजीवन कारावास और जुर्माने की सबसे कठोर सजा देने का प्रावधान है। नए कानून के हिसाब से नागरिकों के अधिकारों की रक्षा करने का भाव है. इसका मकसद अपराधी को सजा दिलाने से ज्यादा उन्हें उनकी गलती का एहसास कराना है. भारतीय न्याय संहिता 2023 के अनुसार दंड संहिता को न्याय संहिता में परिवर्तित कर दिया गया है। इसके अनुसार 22 प्रावधान पूर्व आईपीसी धारा के हैं जबकि 175 प्रावधानों में संशोधन किया गया है और 9 नए अनुभाग शामिल किए गए हैं। इस बिल में कुल 356 प्रावधान हैं। नए बिल के अनुछेद 150 में भारत की संप्रभुता, एकता और अखंडता की रक्षा करना है.
दंड प्रक्रिया संहिता 1898 और उसमें किए गए संशोधन:
दंड प्रक्रिया संहिता 1898 में अस्तित्व में आया था। इसमें कुल 37 अध्याय और 484 धाराएं शामिल हैं। इस संहिता की मुख्य विशेषता ये थी की ये न्यायपालिका को कार्यपालिका से अलग करना है। इस बिल का मुख्य लक्ष्य भारतीय समाज को सही तरीके से चलाना था. अब इसकी जगह पर भारतीय नागरिक सुरक्षा 2023 को लाया गया है। इसमें नए बिल में 5 पूर्व प्रावधान और 23 प्रावधानों में बदलाव किए गए हैं और एक नया प्रावधान शामिल किया गया है। इसमें कुल 170 अनुभाग शामिल हैं।
भारतीय साक्ष्य अधिनियम 1872 और उसमें किए गए संशोधन:
भारतीय साक्ष्य अधिनियम के पूर्व के प्रावधान के अनुसार धारा 60 के अनुसार यदि मामले के तथ्यों के बारे में अदालत में एक गवाह द्वारा कोई भी मौखिक सबूत दिया जाता है। धारा 65 बी के अनुसार इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड सबूत के रूप में स्वीकार्य हैं।
नए बिल में किए गए प्रमुख बदलाव:
नई सीआरपीसी में 356 धाराएं होंगी जबकि पहले उसमें कुल 511 धाराएं होती थी.
सबूत जुटाने के टाइव वीडियोग्राफी करनी जरूरी होगी.
किसी भी तरह के गैंग रेप के लिए 20 साल की सजा या उर्म कैद की सजा होगी.
जिन भी धाराओं में 7 साल से अधिक की सजा है वहां पर फॉरेंसिक टीम सबूत जुटाने पहुंचेगी.
पीङीत अपराध की रिपोर्ट देश के किसी भी थाने में दर्ज करा सकता है.
3 साल तक की सजा वाली धाराओं का समरी ट्रायल होगा.
शादी का झांसा देकर रेप के लिए अलग से प्रावधान बनाए गए हैं.
90 दिनों के अंदर चार्जेशीट दाखिल करनी होगी और 180 दिनों के अंदर हर हाल में जांच समाप्त की जाएगी.
सरकारी कर्मचारी के खिलाफ अगर कोई मामला दर्ज है तो 120 दोनों के अंदर अनुमति देनी जरूरी है.
घोषित अपराधियों की संपत्ति की कुर्क की जाएगी. संगठित अपराध में कठोर सजा सुनाई जाएगी.
गलत पहचान देकर यौन संबंध बनाने वालों को अपराध की श्रेणी में लाया जाएगा. गैंगरेप के सभी मामलों में 20 साल की सजा या आजीवन कारावास की सजा होगी.
18 साल से कम उम्र की बच्चियों के साथ यौन शोषण मामले में मौत की सजा का प्रावधान जोड़ा जाएगा.