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50 साल पुरानी अनोखी परंपरा , साड़ी चढ़ाने से शांत होती नदी

भारत विविधताओं का देश है यहाँ कई जाति और बोलियां बोली जाती है। सभी समाज की अलग- अलग परम्पराएं हैं और कई ऐसी परम्पराएं है जो बस चली आ रही ही। कई जगह ऐसी है जहां बड़ी अजीबोगरीब और अनोखी परंपरा देखने को मिलती है।

कई मान्यताएं भी है जो कई सालों से चलती आ रही है। हम आपको बताते है 50 साल पुराणी एक ऐसी ही मान्यता। इस मान्यता के अनुसार ताप्ती नदी जब रौद्र रूप में होती है तो माँ ताप्ती की विधिवत पूजा करने से वो शांत होने लगती है।

दरअसल ,जिले में ताप्ती नदी ने अपना रौद्र रूप दिखाना शुरू कर दिया है। ताप्ती नदी के किनारे बसे आधा दर्जन से अधिक घाट जलमग्न हो गए हैं। अब ऐसे रौद्र रूप को शांत करने के लिए 50 साल पुरानी मान्यता के अनुसार आज भी जिले के जनप्रतिनिधि और क्षेत्र वासियों द्वारा मां ताप्ती की विधि विधान के साथ पूजा अर्चना कर साड़ी चढ़ा कर पानी कम हो इसकी प्रार्थना की गई।

साड़ी चढ़ाने से कम होता है पानी

जिले के समाजसेवी अतुल पटेल और हीरालाल बडगुजर ने जानकारी दी कि “50 साल पुरानी यह परंपरा है। जब भी मां ताप्ती अपना रौद्र रूप धारण करती है, तो शांत करने के लिए पूजा अर्चना कर साड़ी चढ़ाई जाती है जिससे ताप्ती नदी का जलस्तर कम होता है।

” बता दें , ताप्ती नदी खतरे के निशान से 10 मीटर ऊपर बह रही है। ऐसे में कई घर जलमग्न हो गए है। यह खतरा भी साबित हो सकता है। ताप्ती नदी खतरे के निशान के नीचे आ जाए इसके लिए महाजनपेठ क्षेत्र वासियों द्वारा मां ताप्ती की पूजा अर्चना कर साड़ी चढ़ाई गई।

50 साल पहले शुरू हुई थी अनोखी परंपरा

समाजसेवी माधुरी अतुल पटेल और अर्चना चिटनीस ने जानकारी देते हुए कहा कि करीब 50 साल पहले भुस्कुटे सरकार द्वारा ताप्ती नदी ने अपना रौद्र रूप दिखाया था। तो उनके द्वारा पूजा अर्चना कर साड़ी चढ़ाई गई थी जिसे ताप्ती नदी का जल कम हो गया था. तब से यह परंपरा चली आ रही है।

खतरे के निशान से ऊपर बह रही नदी

ताप्ती नदी खतरे के निशान से 10 मीटर ऊपर बह रही है। ताप्ती नदी के आधा दर्जन घाट जलमग्न हो गए हैं जिसमें राजघाट, सतियारा घाट, खातू घाट, पीपल घाट, नागझिरी घाट, खलखली घाट जलमग्न हो गए हैं।

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