MP Cabinet Meeting : मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव की अध्यक्षता में मंत्रि-परिषद की बैठक मंगलवार (8 अप्रैल 2025) को मंत्रालय में सम्पन्न हुई। मंत्रि-परिषद द्वारा प्रदेश में निराश्रित गौवंश की समस्या के निराकरण के लिए पशुपालन एवं डेयरी विभाग के अंतर्गत “मध्यप्रदेश राज्य में स्वावलंबी गौशालाओं की स्थापना की नीति : 2025” की स्वीकृति दे दी गई है। गौ-शालाओं को प्रति गाय 40 रूपये मंत्रि-परिषद द्वारा गौशालाओं की स्थापना को प्रोत्साहित करने और मुख्यमंत्री द्वारा की गई घोषणा में गौ-शालाओं को 20 रुपये प्रति गौवंश प्रति दिवस से बढ़ाकर 40 रूपये प्रति गौवंश प्रति दिवस किये जाने का निर्णय लिया गया। “मुख्यमंत्री पशुपालन विकास योजना” नाम बदला मंत्रि-परिषद द्वारा राज्य में पशुपालन एवं डेयरी से संबंधित गतिविधियों में रोजगार के नवीन अवसर बढ़ाने, उत्पादकता बढाने, किसानों की आय बढ़ने से जीएसडीपी में वृद्धि और राष्ट्र की जीडीपी में योगदान बढाने के लिए मुख्यमंत्री पशुपालन विकास योजना की निरन्तरता (वर्ष 2024-25 तथा 2025-26) रखते हुए योजना का नाम “डॉ. अम्बेडकर पशुपालन विकास योजना” रखे जाने का निर्णय लिया गया। स्वीकृति अनुसार सहकारिता के माध्यम से पशुपालन गतिविधियों के लिए शून्य प्रतिशत ब्याज दर पर किसान को क्रेडिट कार्ड उपलब्ध करायें जायेंगे। नस्ल सुधार के लिए भ्रूण प्रत्यारोपण कार्यक्रम और बांझ निवारण शिविरों का आयोजन किया जायेगा। मुख्यमंत्री डेयरी प्लस कार्यक्रम, चारा उत्पादन कार्यक्रम, प्रदेश की मूल गौवंशीय नस्ल एवं भारतीय उन्नत नस्ल की दूधारू गायों के लिए पुरस्कार कार्यक्रम, मुख्यमंत्री दुधारू पशु प्रदाय कार्यक्रम तथा पशुपालकों को योजनाओं की जानकारी प्रदाय करने एवं उन्मुखीकरण के लिए प्रचार-प्रसार कार्यक्रम की निरन्तरता पर स्वीकृती दी गयी। प्रदेश में शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार के लिए MOU मंत्रि-परिषद द्वारा समग्र शिक्षा अभियान के अन्तर्गत भारत सरकार से संबद्ध संस्था एडसिल (इण्डिया) लिमिटेड के माध्यम से प्रदेश में शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार किए जाने के लिए MOU किए जाने का निर्णय लिया गया। केन्द्रीय शिक्षा मंत्रालय से संबद्ध संस्था एडसिल (इण्डिया) लिमिटेड (भारत सरकार की मिनी रत्न श्रेणी-1) सेंट्रल पब्लिक सेक्टर एन्टरप्राइजेज (सीपीएसई) संस्था है। संस्था के द्वारा म.प्र. में समग्र शिक्षा अभियान अंतर्गत गुणवत्ता सुधार, एलईपी (कक्षा VI-XII) के अंतर्गत स्वीकृत विभिन्न गतिविधियों को संचालित किया जायेगा। मल्हारगढ़ (शिवना) दाबयुक्त सूक्ष्म सिंचाई परियोजना की स्वीकृति मंत्रि-परिषद द्वारा पार्वती-कालीसिंध-चम्बल लिंक परियोजना अंतर्गत मंदसौर जिले की मल्हारगढ़ (शिवना) दाबयुक्त सूक्ष्म सिंचाई परियोजना लागत राशि 2932 करोड़ 30 लाख रूपये, सैंच्य क्षेत्र 60 हजार हैक्टेयर की प्रशासकीय स्वीकृति प्रदान की गई है। स्वीकृत परियोजना से मंदसौर जिले की मल्हारगढ़ तहसील के 32 ग्राम एवं मंदसौर तहसील के 115 ग्राम लाभान्वित होंगे। ALSO READ : Dhar : भोजशाला में हिन्दुओं के प्रवेश पर था प्रतिबंध…मुस्लिम पढ़ते हैं नमाज WATCH : https://youtu.be/6FtkA0J3txo?si=i-qvghxfPZOV5hco
Dhar : भोजशाला में हिन्दुओं के प्रवेश पर था प्रतिबंध…मुस्लिम पढ़ते हैं नमाज
Dhar : मंगलवार (8 अप्रैल 2025) को हिन्दू समाज के लोगों ने एक दूसरे को मिठाई खिलाकर उत्सव मनाया। इस दौरान आतिशबाजी भी हुई। एक समय ऐसा भी था जब भोजशाला में हिन्दू समाज के लोगों को प्रवेश करने की इजाजत नहीं थी। 8 अप्रैल की तारीख हिन्दू समाज के लोगों के लिए इसलिए महत्वपूर्ण है क्यूंकि आज ही के दिन 8 अप्रैल 2003 को हिन्दू समाज के लोगों को फिर से इस भोजशाला में प्रवेश की अनुमति मिली थी। लगातार प्रदर्शन और संघर्ष करने के बाद 8 अप्रैल 2003 को भोजशाला का ताला खोला गया। आज से कई सालों पहले कलेक्टर ने आदेश जारी कर हिन्दुओं के प्रवेश पर प्रतिबन्ध लगा दिया था। भोजशाला पर क्यों है विवाद ? भोजशाला को लेकर हिन्दू और मुस्लिम समुदाय दोनों के अपने-अपने तर्क और मान्यताएं हैं। एक तरफ मुस्लिम समुदाय के लोग यहाँ नमाज पढ़ते हैं तो वहीं दूसरी तरफ हिन्दू समाज देवी सरस्वती की पूजा करते हैं। हिन्दू फ्रंट फॉर जस्टिस ने मध्यप्रदेश हाई कोर्ट में याचिका लगाकर इसे स्थान को राजाभोज द्वारा स्थापित वाग्देवी का प्राचीन मंदिर बताया था। वहीं मुस्लिम समुदाय इसे कलाम मौला मस्जिद मानते हैं। भोजशाला के धार्मिक पक्ष को समझने के लिए कोर्ट ने ASI को सर्वे का आदेश दिया है। अब ASI की रिपोर्ट पर यह तय होगा कि भोजशाला राजा भोज द्वारा स्थापित वाग्देवी का मदिर है या फिर कलाम मौला मस्जिद। भोजशाला का इतिहास भोजशाला का निर्माण परमारवंश के महान शासक राजा भोज के द्वारा कराया गया था। 1034 ईस्वी में भोजशाला एक महाविद्यालय हुआ करता था जहाँ छात्र अध्ययन किया करते थे। एक समय पर यह शिक्षा का केंद्र हुआ करता था। राजा भोज ने यहाँ वाग्देवी की प्रतिमा स्थापित करवाई थी। भोजशाला पर हुआ था आक्रमण 1305 ईस्वी में अलाउद्दीन खिलजी ने इस स्थान को पूरी तरह तबाह कर दिया था। मंदिर को ध्वस्त करने के बाद कई सालों तक यह जगह विरान रही। 1401 ईस्वी में दिलावर खान गौरी ने इस स्थान पर मस्जिद का निर्माण करवाया। महमूद शाह ने 1514 ईस्वी में मस्जिद के दूसरे हिस्से का निर्माण करवाया। इस तरह देखते ही देखते राजा भोज की भोजशाला पर मस्जिद बना दी गई। वाग्देवी की मूर्ति कहाँ है ? जानकारी के अनुसार 1875 में भोजशाला की खुदाई की गई थी। इस खुदाई के दौरान वाग्देवी की वह मूर्ती भी मिली जिसकी स्थापना परमार वंश के शासक राजा भोज द्वारा कराई गई थी। रिपोर्ट्स के मुताबिक इस मूर्ती को मेजर किनकेड नाम का एक अंग्रेज इंग्लैंड ले गया। लंदन के संग्रहालय में इस मूर्ती को सुरक्षित रखा है। इसे वापस लाए जाने के लिए भी कोर्ट में याचिका लगाई गई है। ASI की रिपोर्ट को हाई कोर्ट में पेश कर दिया गया है लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इसपर रोक लगा दी है। इस रिपोर्ट में कई देवी-देवताओं की मूर्तियां मिलने का खुलासा हुआ है। ALSO READ : Lucknow में सपा सांसद का विरोध…महिलाएं तलवार लेकर आईं WATCH : https://youtu.be/6FtkA0J3txo?si=OzNLBJHuDbYO7GQ1
Lucknow में सपा सांसद का विरोध…महिलाएं तलवार लेकर आईं
Lucknow : मंगलवार (8 अप्रैल 2025) को उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ एक बड़े आंदोलन का गवाह बनी। क्षत्रिय समाज के हजारों कार्यकर्ताओं ने समाजवादी पार्टी (सपा) के सांसद रामजी लाल सुमन द्वारा महान योद्धा राणा सांगा के खिलाफ की गई कथित अपमानजनक टिप्पणी के विरोध में सड़कों पर उतर आए। इस प्रदर्शन को ‘महासंग्राम यात्रा’ का नाम दिया गया, जिसे लेकर प्रशासन और प्रदर्शनकारियों के बीच तनाव चरम पर पहुंच गया। इस घटना ने न केवल राजनीतिक हलकों में हलचल मचा दी है, बल्कि क्षत्रिय समुदाय के गौरव और सम्मान को भी केंद्र में ला दिया है। Lucknow पुलिस ने लिया एक्शन महासंग्राम यात्रा शुरू होने से पहले ही लखनऊ पुलिस ने सख्ती दिखाते हुए हजारों क्षत्रिय कार्यकर्ताओं को हिरासत में ले लिया। यह यात्रा राणा सांगा के सम्मान में निकाली जानी थी, लेकिन प्रशासन ने इसे अनुमति नहीं दी। इसके बावजूद प्रदर्शन का ऐलान कर दिया। पुलिस ने बैरिकेड्स लगाकर प्रदर्शनकारियों को रोकने की कोशिश की, लेकिन कार्यकर्ता उसपर चढ़ते हुए निकल गए। कई जगहों पर पुलिस और प्रदर्शनकारियों के बीच झड़प की खबरें भी सामने आईं। इस दौरान करीब 36 क्षत्रिय संगठनों ने एकजुट होकर इस आंदोलन को समर्थन दिया। सपा सांसद के बयान पर विवाद यह पूरा विवाद सपा सांसद रामजी लाल सुमन के उस बयान से शुरू हुआ, जिसमें उन्होंने राणा सांगा के बारे में कथित तौर पर आपत्तिजनक टिप्पणी की थी। क्षत्रिय समाज ने इसे अपने गौरव पर हमला माना और सांसद से माफी की मांग की। संगठनों का कहना है कि राणा सांगा, जो मेवाड़ के शौर्य और बलिदान के प्रतीक हैं, उनके खिलाफ ऐसी टिप्पणी बर्दाश्त नहीं की जा सकती। प्रदर्शनकारियों ने सपा सांसद के खिलाफ नारेबाजी की और उनके इस्तीफे की मांग भी उठाई। इस विरोध मार्च में बड़ी संख्या में युवा और महिलाएं भी शामिल हुईं। लाठीचार्ज से प्रदर्शन हुआ उग्र प्रदर्शन को रोकने के लिए पुलिस ने लाठीचार्ज और आंसू गैस का भी इस्तेमाल किया, लेकिन इसने प्रदर्शन को एक उग्र रूप दे दिया। कई प्रदर्शनकारी घायल हुए, पर उनका कहना था कि वे अपने पूर्वजों के सम्मान के लिए किसी भी हद तक जाएंगे। संगठनों ने चेतावनी दी है कि यदि सपा सांसद ने माफी नहीं मांगी, तो यह आंदोलन और तेज होगा। ALSO READ : Damoh Fake Doctor : एक चौंकाने वाला खुलासा… WATCH : https://youtu.be/6FtkA0J3txo?si=9vJxA8JZQ3M_oAae
VK Saxena vs Medha Patkar : कोर्ट से मिली डबल राहत
Delhi LG vs Medha Patkar : दिल्ली के उपराज्यपाल (LG) विनय कुमार सक्सेना और सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटकर के बीच चल रहा मानहानि का मामला हाल के दिनों में खूब सुर्खियों बटोर रहा है। यह विवाद, करीब 23 साल पुराना है। नर्मदा बचाओ आंदोलन की लीडर मेधा पाटकर और तत्कालीन गैर-सरकारी संगठन (एनजीओ) प्रमुख वीके सक्सेना के बीच शुरू हुआ था। इस मामले में साकेत कोर्ट ने हाल ही में महत्वपूर्ण फैसला सुनाया, जिसके तहत मेधा पाटकर को राहत मिली है। आइए, इस मामले की पूरी कहानी को समझते हैं। कैसे हुई शुरुआत ? यह विवाद 2000 में शुरू हुआ, जब वीके सक्सेना अहमदाबाद स्थित एक NGO नेशनल काउंसिल फॉर सिविल लिबर्टीज के अध्यक्ष थे। उस समय मेधा पाटकर नर्मदा बचाओ आंदोलन के जरिए नर्मदा नदी पर बड़े बांधों के निर्माण के खिलाफ आवाज उठा रही थीं। सक्सेना ने पाटकर और उनके आंदोलन के खिलाफ विज्ञापन प्रकाशित किए, जिसे पाटकर ने अपमानजनक बताकर उनके खिलाफ मुकदमा दायर किया। जवाब में, सक्सेना ने 2001 में पाटकर के खिलाफ दो मानहानि के मामले दर्ज किए। इनमें से एक मामला एक टीवी चैनल पर की गई टिप्पणी से जुड़ा था, जबकि दूसरा 25 नवंबर, 2000 को जारी एक प्रेस नोट से संबंधित था, जिसमें पाटकर ने सक्सेना को “कायर” और “गैर-देशभक्त” कहा था, साथ ही हवाला लेनदेन में शामिल होने का आरोप लगाया था। कानूनी प्रक्रिया और सजा लंबी कानूनी लड़ाई के बाद, मई 2024 में साकेत कोर्ट के मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट राघव शर्मा ने मेधा पाटकर को आपराधिक मानहानि का दोषी ठहराया। 1 जुलाई, 2024 को कोर्ट ने उन्हें 5 महीने की साधारण कैद और सक्सेना को 10 लाख रुपये मुआवजा देने का आदेश दिया। कोर्ट ने माना कि पाटकर के बयान से सक्सेना की प्रतिष्ठा को गंभीर नुकसान पहुंचा। हालांकि, उनकी उम्र और स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए सजा को 1 अगस्त तक निलंबित कर दिया गया, ताकि वे अपील दायर कर सकें। कोर्ट से मिली बड़ी राहत 29 जुलाई, 2024 को साकेत कोर्ट के अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश विशाल सिंह ने पाटकर की सजा को निलंबित कर दिया और उन्हें 25,000 रुपये के मुचलके पर जमानत दे दी। कोर्ट ने सक्सेना को जवाब दाखिल करने के लिए नोटिस जारी किया और मामले की अगली सुनवाई 4 सितंबर को तय की। इसके बाद, 8 अप्रैल, 2025 को एक और महत्वपूर्ण फैसले में कोर्ट ने कहा कि पाटकर को जेल नहीं जाना पड़ेगा। उन्हें एक साल की परिवीक्षा पर रिहा किया गया और जुर्माने की राशि को भी कम करके 1 लाख रूपए कर दिया गया। कोर्ट ने माना कि पाटकर एक सम्मानित सामाजिक कार्यकर्ता हैं और उनका अपराध इतना गंभीर नहीं कि उन्हें जेल की सजा दी जाए। ALSO READ : Damoh Fake Doctor : एक चौंकाने वाला खुलासा… WATCH : https://youtu.be/6FtkA0J3txo?si=Vdra8skHSf1s1oHt
Damoh Fake Doctor : एक चौंकाने वाला खुलासा…
Damoh Fake Doctor : मध्य प्रदेश के दमोह जिले से हाल ही में एक ऐसा मामला सामने आया है, जिसने पूरे राज्य को हिलाकर रख दिया। एक व्यक्ति, जिसने खुद को लंदन से प्रशिक्षित हृदय रोग विशेषज्ञ (कार्डियोलॉजिस्ट) बताकर लोगों का इलाज किया, अब उसका खुलासा नकली डॉक्टर के रूप में हुआ है। इस शख्स का नाम नरेंद्र विक्रमादित्य यादव उर्फ एन जॉन कैम है, और इसके कारनामों ने मध्य प्रदेश की स्वास्थय व्यवस्थों को लेकर कई सवाल खड़े कर दिए हैं। Fake Doctor की सच्चाई नरेंद्र विक्रमादित्य यादव ने दमोह के एक निजी अस्पताल (मिशन हॉस्पिटल) में बतौर कार्डियोलॉजिस्ट काम किया। उसने दावा किया कि वह लंदन से प्रशिक्षित है और उसके पास एमबीबीएस की डिग्री है। हैरानी की बात यह है कि उसकी डिग्री एक महिला के नाम पर दर्ज थी, जिसके आधार पर उसने नौकरी हासिल की और 8 लाख रुपये सालाना वेतन भी लिया। उसने कई मरीजों के हृदय का ऑपरेशन किया, लेकिन उसकी सच्चाई तब सामने आई जब एक मरीज की हालत बिगड़ने पर संदेह पैदा हुआ। जांच में पता चला कि वह न तो डॉक्टर था और न ही उसके पास कोई वैध डिग्री थी। दमोह के कलेक्टर और पुलिस अधीक्षक भी इस खुलासे से स्तब्ध रह गए। कांग्रेस ने उठाये सवाल इस नकली डॉक्टर के कारण दमोह में कम से कम सात लोगों की मौत हो चुकी है। उसने अपनी पहचान छिपाने के लिए एन जॉन कैम नाम का इस्तेमाल किया और लोगों को यह विश्वास दिलाया कि वह विदेश से प्रशिक्षित विशेषज्ञ है। कांग्रेस नेताओं का कहना है कि यह केवल धोखाधड़ी का मामला नहीं है, बल्कि जानबूझकर लोगों की जान से खिलवाड़ है, जिसके लिए सख्त कार्रवाई जरूरी है। पहले भी कर चूका है अपराध यह पहली बार नहीं है जब नरेंद्र विक्रमादित्य यादव ने ऐसा अपराध किया हो। रिपोर्ट्स के अनुसार, वह पहले भी छत्तीसगढ़ में बड़े अस्पतालों में ऑपरेशन कर चुका है, जहां उसकी वजह से कई मौतें हुई थीं। वह एक आदतन अपराधी है, जो अपनी चालाकी से बार-बार कानून के शिकंजे से बचता रहा। उसकी असली पहचान अभी भी पूरी तरह से उजागर नहीं हुई है। प्रशासन ने फर्जी डॉक्टर नरेंद्र विक्रमादित्य यादव को प्रयागराज से गिरफ्तार कर लिया गया है। साथ ही उसके खिलाफ जांच शुरू हो गई है। लेकिन सवाल यह है कि क्या यह कदम उन परिवारों को न्याय दिला पाएगा, जिन्होंने अपने प्रियजनों को इस नकली डॉक्टर की वजह से खो दिया? ALSO READ : Aurangzeb Tomb : औरंगज़ेब की कब्र स्थली खुलदाबाद बनेगा रतनपुर…क्यों ? WATCH : https://youtu.be/6FtkA0J3txo?si=6Em_qe-aIEvsnE42
Aurangzeb Tomb : औरंगज़ेब की कब्र स्थली खुलदाबाद बनेगा रतनपुर…क्यों ?
Aurangzeb Tomb Place Rename : औरंगज़ेब की कब्र एक बार फिर से विवादों में है। महाराष्ट्र सरकार के मंत्री संजय शिरसाट ने एक बड़ा बयान दिया है। उन्होंने रविवार को खुलदाबाद के नाम को लेकर एक बड़ी मांग की। उन्होंने कहा – खुलदाबाद के नाम को बदलकर रतनपुर किया जाना चाहिए। मंत्री के इस बयान से राजनीतिक गलियारों में हलचल तेज हो गई है। Aurangzeb Tomb Place Rename : रतनपुर ही क्यों ? आपको बता दें कि संभाजीनगर से करीब 30 किलोमीटर की दूरी पर खुलदाबाद नाम का एक शहर है। जहाँ मुग़ल शासक औरंगज़ेब की कब्र मौजूद है। बीते दिनों महाराष्ट्र सरकार के मंत्री ने इस नाम को बदलने की मांग उठायी है। मंत्री ने मीडिया से बात करते हुए कहा कि जिस तरह संभाजीनगर को पहले खडकी कहा जाता था, उसी तरह खुलदाबाद का भी पुराना नाम रतनपुर था। मंत्री संजय शिरसाट ने आगे कहा कि औरंगज़ेब ने इस जगह का नाम बदलकर खुलदाबाद कर दिया था। मंत्री का दावा है कि पहले इसे रतनपुर के नाम से जाना जाता था लेकिन जब औरंगज़ेब आया तब उसने इस जगह का नाम बदलकर खुलदाबाद कर दिया था। औरंगज़ेब ने कई जगहों के नाम बदले थे, जिसमें से एक रतनपुर भी था। नाम को लेकर उठे सवाल एक तरफ दक्षिणपंथी संगठन नाम बदलने और कब्र को हटाने की मांग कर रहे हैं तो वहीं दूसरी तरफ कुछ लोग खुलदाबाद के नाम बदलने को लेकर विरोध भी कर रहे हैं। टाइम्स ऑफ़ इंडिया की एक रिपोर्ट के मुताबिक हिशाम उस्मानी नामक के शख्स ने नाम बदले जाने पर नाराजगी जताई है। उस्मानी ने औरंगाबाद के नाम बदलने को लेकर भी कोर्ट में लड़ाई लड़ी थी। उस्मानी का कहना है कि शिरसाट जैसे नेता अंग्रेज़ों की फूट डालो राज करो नीति को बढ़ावा दे रहे हैं। शहर में पानी की समस्या से जूझ रहा है लेकिन शिरसाट इन मुद्दों पर चुप रहते हैं। ALSO READ : Damoh Fake Doctor : फर्ज़ी विदेशी डॉक्टर ने ली 7 लोगों की जान WATCH : https://youtu.be/6FtkA0J3txo?si=TIAMmtDxWteoj6Zc