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मध्य प्रदेश के ककनमठ मंदिर के पत्थर आज भी हवा में लटके हुए दिखाई देते हैं

रहस्यों से भरा एक मंदिर का  इतिहास जो  सबको हैरान करता है ,एक ऐसा मंदिर जो इंसानों  ने नहीं भूतों ने बनाया है? क्या सच में इस मंदिर के निर्माण का आदेश भगवान शिव ने भूतों  को दिया था, एक अद्भुत मंदिर ककनमठ मंदिर जो आज भी अधूरा है लेकिन  फिर भी कोई आंधी तूफान इसका बाल भी बाका नहीं कर सका…. आखिर क्यों कोई भी रात के समय इस स्थान पर नहीं रुकता? कुछ ऐसे अनसुलझे रहस्य जो आज भी दबे हुए है इन पत्थरों के बीच।  ककनमठ मंदिर की प्राचीन कहानी ककनमठ मंदिर के नाम से जाने जाना वाला ये अद्भुत मंदिर ग्वालियर चंबल संभाग में स्थित है.दोस्तों भगवान शिव को सभी प्रिय है इसलिए उनके विवाह में मनुष्य से लेकर भूत-प्रेत सभी शामिल हुए थे। इसी कारण इस  मंदिर के बारे में यह भी कहा जाता है कि भूतों ने इस शिव मंदिर का निर्माण भगवान शिव के आदेश से किया था. इस मंदिर से जुड़ी अलग-अलग कहानियां है। कोई कहता है कि ककनमठ मंदिर गुर्जर-प्रतिहार वास्तुकला शैली की उत्कृष्ट कृति है, जो 9वीं और 10वीं शताब्दी में प्रचलित थी। जिसे कछवाहा वंश के राजा कीर्ति ने अपनी पत्नी के लिए बनवाया था। माना जाता है कि रानी ककनावती भगवान शिव की बहुत बड़ी भक्त थी। भूतों द्वारा शापित है ये मंदिर आसपास भगवान शिव का मंदिर न होने से रानी को भगवान शिव की उपासना करने में मुश्किल होती थी इसलिए राजा ने इस शिव मंदिर का निर्माण करवाया था। इसलिए ककनमठ मंदिर का नाम रानी ककनावती के नाम से पड़ा।  वहीं कुछ लोग इस मंदिर को भूतों द्वारा शापित मानते है। हज़ार साल पुराने मंदिर के बारे में माना जाता है कि इस रहस्यमयी मंदिर का निर्माण भूतों ने केवल एक ही रात में किया था,। इसके बाद सुबह होते ही भूत इस मंदिर का निर्माण आधा अधूरा छोड़कर भाग गए। इसलिए यह मंदिर बिना चूने, गारे से बना हुआ है, जिसके पत्थर आज भी हवा में लटके हुए दिखाई देते हैं। साथ ही इस मंदिर को देखते ही ऐसा लगता है जैसे कि यह अभी गिर जाएगा। लेकिन हैरानी की बात ये है कि बड़े से बड़े आंधी तूफ़ान भी इस मंदिर को हिला नहीं पाए।   ऐसा करने पर मंदिर हिलने लगता है साथ ही मंदिर के आस पास गिरे पत्थरों को जब कोई पर्यटक या कोई भी व्यक्ति अपने साथ ले जाने का प्रयास करता है तो ये मंदिर हिलने लगता है, यह देख पत्थर उठाने वाला व्यक्ति भय से पत्थर को वहीं पर छोड़ देता है। चौंका देने वाली बात ये है कि इस तरह के पत्थर आस पास के क्षेत्रों में कहीं नहीं मिलते।   मंदिर देख वैज्ञानिक भी हो गए हैरान जब वैज्ञानिकों ने इस मंदिर का निरीक्षण किया तो वे भी हैरान थे कि आखिर बिना गारे और चूने से इस पत्थर का निर्माण कैसे किया गया होगा  साथ ही ये मंदिर हज़ारों साल से जस का तस अपने स्थान पर खड़ा है। हालांकि इस मंदिर को दुनिया के सात अजूबों में शामिल नहीं किया गया लेकिन इस मंदिर का निर्माण अपने आप में ही एक रहस्य बना हुआ है। यहाँ आने वाले पर्यटक भी  इस मंदिर को देखते ही दंग रह जाते हैं। ये भी पढ़ें- क्या है आदि शंकराचार्य की मूर्ति को ओंकारेश्वर में बनाने की बड़ी वजह

क्या है आदि शंकराचार्य की मूर्ति को ओंकारेश्वर में बनाने की बड़ी वजह

तीर्थस्थल ओंकारेश्वर के ओंकार पर्वत पर 28 एकड़ में अद्वैत वेदांत पीठ और आदि शंकराचार्य की 108 फीट ऊंची भव्य प्रतिमा का निर्माण कार्य अंतिम चरण में है। आदि शंकराचार्य की प्रतिमा को ” “स्टेच्यू ऑफ़ वननेस ” कहा जाता है।देश का चतुर्थ ज्योतिर्लिंग ओम्कारेश्वर शंकराचार्य की दीक्षा स्थली है। जहां वे अपने गुरु गोविंद भगवत्पाद से मिले और यहीं 4 वर्ष रहकर उन्होंने विद्या अध्ययन किया। 12 वर्ष के आचार्य शंकर की यह प्रतिमा श्रद्धांजलि के रूप में स्थापित की जा रही है। यह पूरी दुनिया में शंकराचार्य की सबसे ऊंची प्रतिमा होगी। 18 सितंबर को होगा लोकार्पण आदि शंकराचार्य की प्रतिमा का लोकार्पण मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान 18 सितम्बर को करेंगे। इस दौरान देश के कोने-कोने से आए साधू संत भी मौज़ूद रहेंगे। 18 तारीख को दो प्रोग्राम होंगे,फर्स्ट हाफ में मान्धाता पर्वत पर और सेकंड हॉफ में सिद्धवरकूट में प्रोग्राम होगा। मान्धाता पर्वत पर एक पूजा चल रही है और आज से भी एक पूजा आरम्भ होगी, जो लगातार तीन दिन जारी रहेगी। सिद्धवरकूट में भी 2-3 हजार साधु संत धार्मिक अनुष्ठान करेंगे। वैश्विक केंद्र होगी शंकराचार्य की प्रतिमा मध्यप्रदेश की करीब दो हजार करोड़ रुपयों की धार्मिक एवं आध्यात्मिक योजना के तहत आकार ले रही आदि शंकराचार्य की प्रतिमा प्रथम चरण में बनकर तैयार हो चुकी है, जबकि शेष कार्यो का भूमिपूजन होना है. सनातन धर्म के पुनरुद्धारक, सांस्कृतिक एकता के देवदूत व अद्वैत वेदांत दर्शन के प्रखर प्रवक्ता ‘आचार्य शंकर’ के जीवन और दर्शन के लोकव्यापीकरण के उद्देश्य के साथ मध्य प्रदेश शासन ने ओंकारेश्वर को अद्वैत वेदांत के वैश्विक केंद्र के रूप में स्थापित किया जा रहा है। 8 वर्ष की उम्र में ओम्कारेश्वर पहुंचे शंकराचार्य आदि शंकराचार्य मात्र 8 वर्ष की उम्र में अपने गुरु को खोजते हुए केरल से ओमकारेश्वर आये थे, और यहां गुरु गोविंद भगवत्पाद से दीक्षा ली। यही से उन्होंने पूरे भारतवर्ष का भ्रमण कर सनातन की चेतना जगाई। इसलिए ओम्कारेश्वर के मान्धाता पर्वत पर यह 108 फीट ऊंची बहुधातु की प्रतिमा है, जिसमें आदि शंकराचार्य बाल स्वरूप में है। ये भी पढ़ें- राजनीति के बाद अब बॉलीवुड और क्रिकेट में भी इंडिया vs भारत की चर्चा