Radioactive waste water जापान समुद्र मे क्यों गिराना चाहता है?

जापान: 2011 में जापान मे सुनामी आई थी जिससे फुकुशीमा स्थित न्यूक्लियर प्लांट मे भारी तबाही मच गई थी। इससे रिएक्टर कोर अत्यधिक गर्म होने की वजह से इसके अंदर का पानी दूषित हो गया था। तब से, रिएक्टरों में ईंधन के मलबे को ठंडा करने के लिए नया पानी डाला गया। साथ ही, ज़मीन और बारिश का पानी लीक होते गया, जिससे अधिक रेडियोधर्मी अपशिष्ट जल बन गया। इसी पानी को स्टोर और साफ करने के लिए जापानी कंपनी, टोक्यो इलेक्ट्रिक पावर कंपनी (TEPCO) ने 1000 से अधिक विशाल टैंक बनाए थे जो 500 से ज्यादा ओलंपिक पूल भरने के लिए पर्याप्त है। लेकिन जगह तेज़ी से कम होती जा रही है। कंपनी का कहना है कि अधिक टैंक बनाना कोई विकल्प नहीं है, और उसे संयंत्र को सुरक्षित रूप से बंद करने के लिए जगह खाली करने की आवश्यकता है – एक प्रक्रिया जिसमें कीटाणुशोधन सुविधाएं, संरचनाओं को नष्ट करना और चीजों को पूरी तरह से बंद करना शामिल है। Radioactive waste water को IAEA की मिली हरी झंडी इसी वजह से इसे 2019 से ही समुद्र मे डालने की बात यू. एन. का परमाणु निगरानीकर्ता International Atomic Energy Agency(IAEA) के साथ चल रही है। ये Radioactive waste water को साफ करके ही समुद्र मे डाला जाएगा पर इसमे ट्रीटीअम को नहीं निकाला जा सकता है जिससे इंसानों और पर्यावरण दोनों को हानी हो सकती है। लेकिन जापान की सरकार और IAEA का कहना है कि दूषित पानी अत्यधिक पतला हो जाएगा और दशकों में धीरे-धीरे छोड़ा जाएगा। इसका मतलब है कि जारी किए जाने वाले ट्रिटियम की सांद्रता अन्य देशों की अनुमति के बराबर या उससे कम होगी, और अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा और पर्यावरण नियमों को पूरा करेगी। इसलिए IAEA की टीम ने जायजा लेने के बाद इसे सुरक्षित घोषित कर दिया है। क्या है अन्य देशों की प्रतिक्रिया? इस योजना को मिश्रित प्रतिक्रिया मिली है, कुछ कोनों से समर्थन और दूसरों से संदेह। अमेरिका ने जापान का समर्थन किया है, विदेश विभाग ने 2021 के एक बयान में कहा कि जापान “अपने निर्णय के बारे में पारदर्शी” रहा है और ऐसा लगता है कि वह “विश्व स्तर पर स्वीकृत परमाणु सुरक्षा मानकों” का पालन कर रहा है। कुछ लोगों ने IAEA के निष्कर्षों पर संदेह जताया है। चीन ने हाल ही में तर्क दिया है कि समूह का आकलन फुकुशिमा के अपशिष्ट जल छोड़ने की “वैधता का प्रमाण नहीं है”। वहाँ के रहने वाले लोगों का कहना है की इससे मत्स्यपालन उददयोगिकों को बहुत नुकसान होगा जो की 2011 के बाद इसका असर पहले से झेल रहे है। और समुद्री पर्यावरण और मानव स्वास्थ्य को अप्रत्याशित नुकसान का भी सामना करना पड़ सकता है। ये भी पढ़ें: https://aayudh.org/why-are-africans-cheetah-dying-in-kuno/
चुनाव के पहले ही कुर्सी को लेकर हुआ कांग्रेस के नेताओं में झगड़ा

मध्य प्रदेश के विधान सभा चुनाव नज़दीक हैं. ऐसे में कांग्रेस पार्टी चाहे कितना ही एकता और समन्वय दिखाने की कोशिश कर ले पर पार्टी के नेताओं की आपसी रंजिश सामने आ ही जाती है. जोबट और ग्वालियर के बाद अब मध्य प्रदेश की राजधानी से भी कांग्रेस में गुट्बाज़ी की खबरे सामने आई. जहाँ प्रेसकांफ्रेंस के दौरान कुर्सी को लेकर कांग्रेस के नेताओं में झगड़ा हुआ. कुर्सी को लेकर कांग्रेस के नेताओं में झगड़ा मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में पूर्व केंद्रीय मंत्री और कांग्रेस नेता अरुण यादव की मौजूदगी में नेता आपस में लड़ गए. कांग्रेस पार्टी के प्रदेश प्रवक्ता शहरयार खान और कोंग्रेस के नेता शावर का झगड़ा हुआ .कारन था अरुण यादव के नज़दीक वाली कुर्सी पर बैठना . कांफ्रेंस ख़तम होते ही दोनों नेता एक दूसरे को धमकी देते हुए नज़र आये. दोनों ने एक दूसरे को तेरेको देख लूँगा और तेरे को बताता हूँ जैसे शब्द बोले. हालांकी कार्यवाहक जिला अध्यक्ष राहुल राठौर ने बीच बचाव कर मामला शांत कराया. अब मामले की खबर कमलनाथ तक पहुँच गयी है. जिससे अंदाज़ा लगाया जा रहा है कि कमलनाथ शावर के खिलाफ एक्शन लेंगे. कांग्रेस के सभी नेताओं ने मिलकर पीसीसी से शावर की शिकायत भी की है. दरअसल पटवारी परीक्षा में घोटाला होने की बात कांग्रेस पार्टी के नेता लगातार उठा रहे हैं. इसी मुद्दे को लेकर पूर्व केंद्रीय मंत्री और कांग्रेस नेता अरुण यादव ने कांफ्रेंस की . साथ ही कांग्रेस के और कई नेता कांफ्रेंस में शामिल हुए.इसी दौरान अरुण यादव की पास वाली कुर्सी पर बैठने को लेकर कांग्रेस के नेताओं में झगड़ा शुरू हुआ था. पहले भी दिखी कांग्रेस की गुटबाजी ये पहला मामला नहीं है जब कांग्रेस के नेता आपस में भिड़ते नज़र आये .इसके पहले जोबट में और ग्वालियर में भी कांग्रेस की गुट बजी नज़र आई. कांग्रेस पार्टी के नेताओं का ये झगड़ालू अंदाज़ प्रदेश विधानसभा चुनाव में भी भरी पढ़ सकता है.
अफ्रीकी चीते कुनो में क्यों मरते जा रहे है?

अफ्रीकी चीते मरते जा रहे है, जिनमे से 4 साल का चीता तेजस अभी तक का आखिरी मरने वाला था। भारत: शुरुआती जांच के अनुसार आपसी झगड़े मे तेजस के गर्दन पर चोट आई थी जिससे उसकी मौत हो गई। भारत के चीता पुनर्वास कार्यक्रम के तहत लाये गए 7 अफ्रीकी चीते अभी तक मर चुके है। साउथ अफ्रीका और नामीबिया से 20 चीते लाए गए थे जिनमें से अब जाकर बस 16 बच गए है। उनमें से एक के 4 मे से 3 बच्चों ने भी कुपोषण और कमजोरी से अपनी जान गवा दी। और रिपोर्ट्स के अनुसार बाकियों की मौत किसी चोट या इंफेक्शन से हुई है। क्यों लाए गए थे अफ्रीकी चीते? ₹500 मिलियन का ट्रांस कॉन्टिनेंटल चीता पुनरुत्पादन का यह कार्यक्रम शायद दुनिया में अपनी तरह का सबसे महत्वाकांक्षी कार्यक्रम है। प्रयास यह है कि, अगले दशक में, लगभग 35 की आत्मनिर्भर आबादी स्थापित होने तक, हर साल पांच से 10 जानवरों को लाया जाए। दक्षिण अफ्रीका और नामीबिया में चीतों के विपरीत, जो बाड़ वाले अभयारण्यों में रहते हैं, भारत की योजना उन्हें प्राकृतिक, बिना बाड़ वाले, जंगली परिस्थितियों में विकसित करने की है। कूनो में, 17 वयस्कों में से केवल छह ही जंगल में हैं और बाकी जानवरों को भारतीय परिस्थितियों के अनुकूल बनाने में मदद करने के लिए बड़े, विशेष रूप से डिजाइन किए गए बाड़ों में रखे गए हैं। साल के अंत तक सभी जानवरों को खुले में छोड़ने की योजना है। जानवरों को रेडियो कॉलर लगाया जाता है और 24/7 ट्रैक किया जाता है। क्या है जगल अधिकारियों का कहना? भारत के अधिकारियों की माने तो उनकी उम्मीद भी यही थी क्योंकि जब किसी जानवर को विदेश से लाया जाता है तो जीवित शेष-दर बस 50% होती है। जिसकी वजह मुख्यत: नए देश के वातावरण मे ठीक से अभ्यस्त नहीं हो पाना है। पर विशेषज्ञों का ये मानना है की ये सही तरीके से ध्यान नहीं रखने की वजह से हुआ है। चीतों को रहने के लिए बड़ी जगह चाहिए होती है। यह चीतों के बीच क्षेत्रीय संघर्ष को रोकता है। और कुनो नेशनल पार्क में उन्हे जगह कम मिल रही है। इसी वजह से चीते नियंत्रित वातावरण में थे। कुछ का मानना है की राजस्थान के मुकुंद्रा बाघ अभयारण्य इन चीतों के लिए कुनो से ज्यादा अच्छी जगह हो सकती है। ये भी पढ़ें: https://aayudh.org/deep-sea-mining-in-talks/
 
															