सीखो कमाओ योजना का हुआ शुभारंभ, जानिए कैसे करें आवेदन

आज मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने युवाओं के उज्जवल भविष्य के लिए सीखो कमाओ योजना का शुभारंभ किया .प्रदेश की राजधानी भोपाल के रविंद्र भवन में योजना के पोर्टल पर युवाओं के रजिस्ट्रेशन करने की प्रक्रिया भी शुरू हुई. कार्यक्रम में मुख्यमंत्री ने खुद भी एक युवक का रजिस्ट्रेशन किया . क्या है सीखो कमाओ योजना दरअसल इस योजना के माध्यम से मध्य प्रदेश के बेरोज़गार युवाओं को काम सिखाया जायेगा. योजना के अंतर्गत 12वी पास , आईटीआई, डिप्लोमा, ग्रेजुएशन और पोस्ट ग्रेजुएशन के युवाओं को काम सीखने का मौका दिया जायेगा. योजना में 700 कार्यों की स्वीकृति दी गयी है . इतना ही नहीं युवाओं को काम सीखना का पैसा भी दिया जायेगा. जिसके कारण इस योजना का नाम सीखो कमाओ रखा गया है. आवेदन की पूरी प्रक्रिया -https://mmsky.mp.gov.in पर जाकर अभ्यर्थी पंजीयन पर क्लिक करें. -उसके बाद आपको आवश्यक निर्देशों और पात्रता से सबंधित दस्तावेजों को ध्यान से पढ़ना होगा. -अगर आप सभी पात्रता को पूरा कर रहे हैं, तो अपना समग्र आईडी दर्ज करें. -आपके मोबाइल नंबर पर भेजे गए ओटीपी से मोबाइल नंबर सत्यापित करें, आपकी जानकारी खुद ही प्रदर्शित की जाएगी. -आप जब एप्लीकेशन सबमिट करेंगे, तो आपको एसएमएस से यूजरनेम और पासवर्ड मिलेगा, आपको खुद ही लॉग इन करवाया जाएगा. -अपनी शैक्षणिक योग्यता दर्ज कर सम्बंधित दस्तावेजों को संलग्न करें,
हिंद महासागर में करोड़ों साल पहले से मौजूद था पाताल का रास्ता

ये है रहस्यमयी ग्रेविटी होल मतलब वैसी जगह जहाँ बाकी हिस्सों के मुकाबले ग्रेविटी कमजोर हो जाती है।इसे इंडियन ओशियन जियोइड लो (IOGL) के नाम से जाना जाता है। ये लगभग 30 लाख वर्ग किमी में फैला हुआ है।इसके बारे में अब तक वैज्ञानिक एक मत पर नहीं थे की ये आखिरकार कैसे बना। पर भारत के वैज्ञानिकों ने इस अनोखी ग्रेविटी होल का कारण खोज निकाला है। Indian Institute of Science (IISc) के रिसर्चर देबांजन पाल और आत्रेयी घोष इस स्टडी के प्रमुख लेखक है। क्या है ग्रेविटी होल की वजह दरसल ये प्राचीन टेथिस महासागर के अवशेष हैं जो पृथ्वी की क्रस्ट के नीचे 950 वर्ग किमी तक फैला है। टेथिस महासागर एक प्राचीन महासागर था जो मेसोजोइक युग के दौरान गोंडवाना और लॉरेशिया महाद्वीपों के बीच मौजूद था। शोधकर्ताओं का मानना है की इसका जवाब पृथ्वी के क्रस्ट के एक हजार किमी नीचे छिपा है। यहां प्राचीन महासागर के ठंडे घने अवशेष अफ्रीका के नीचे तीन करोड़ साल पहले दब गए थे और फिर गर्म पिघली चट्टानें ऊपर आती गयी। इसी वजह से ये ग्रेविटी होल बना है।ये करोड़ सालों से है और आगे कई करोड़ साल तक रहने वाला है।
सावान के महीने में ज्योतिर्लिंग के दर्शन क्यों हैं ख़ास , जानिए मध्य प्रदेश के ज्योतिर्लिंग की पौराणिक कथा

भगवान भोलेनाथ को समर्पित सावन का महीना शुरू हो चुका है, ऐसे में यदि कोई भक्त शिव शम्भू की ज्योतिर्लिंग का दर्शन करे तो उसे अधिक फल प्राप्त होता है. भोलेनाथ के कुल 12 ज्योतिर्लिंग हैं इनमें से दो ज्योतिर्लिंग अकेले मध्य प्रदेश में ही स्थित है.प्रदेश के उज्जैन में महाकालेश्वर और खंडवा में ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग हैं. आज इस लेख के माध्यम से जानेंगे कि क्या है महाकालेश्वर और ओंकारेश्वर से जुड़ी पौराणिक कथा. महाकालेश्वर उज्जैन के महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग की पौराणिक कथा का वर्णन शिव पुराण में मिलता है . उसमे बताया गया है कि एक बार उज्जैन में चंद्रसेन नामक राजा राज्य करता था वो भगवान शिव का भक्त था .चंद्रसेन की मित्रता शिव के एक गण से हो गई थी जिसका नाम था मणिभद्र . मणिभद्र ने राजा को एक चिंतामणि दी जिसके मिलते ही राजा की कीर्ति और यश चारो दिशाओं में फैलने लगे .राजा चंद्रसेन का वैभव देख अन्य राज्यों के राजा चिंतामणि के लालच में आगये और राजा चन्द्रसेन पर आक्रमण कर दिया . चंद्रसेन राज्य से भागकर महाकाल की शरण में आ गया और भगवान शिव की तपस्या करने लगा ,तभी राजा को तपस्या करता देख एक विधवा स्त्री का बेटा भी भोलेनाथ की तपस्या करने लगा . तपस्या में लीन हो जाने के कारण माँ की आवाज़ भी सुनाई नहीं दी ,तब माँ ने गुस्से में पूजा की सामग्री फैकना और पुत्र को मारना शुरू कर दिया .उसी समय सबके देखते ही देखते उस स्थान पर एक मंदिर प्रकट हो गया और उसमे स्वयंभू शिवलिंग का भी प्राकट्य हुआ यह . यह सब सुनकर राजा चंद्रसेन भी शिवलिंग के दर्शन करने यहां आये.उस वक्त जितने भी राज्यों के राजाओं ने हमला किया था वो भी युद्ध का मार्ग छोड़कर बाबा महाकाल की शरण में आगये. ओंकारेश्वर ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग मध्य प्रदेश में इंदौर के पास स्थित है . ओंकारेश्वर से जुड़ी पौराणिक कथा ये है कि एक बार शिवपुरी नामक पर्वत पर मांधाता राजा ने तपस्या की ,राजा की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें दर्शन दिया .राजा के कहने पर भगवान् शिव वहीँ शिवलिंग के रूप में रहने लगे. तभी से इस पर्वत को मान्धाता पर्वत कहने लगे . बताया जाता है कि आज भी भगवान शिव और माता पार्वती यहाँ हर रात शयन के लिए आते हैं .मंदिर में हर रात चौसर की बिसात रखी जाती है जो सुबह मंदिर खुलने पर बिखरी हुई मिलती है और आज तक कोई भी इसका रहस्य नहीं जान पाया है . यहाँ मंदिर को दो भागों में बांटा गया है एक है ओंकारेश्वर और दूसरा है ममलेश्वर महादेव .यह मंदिर ओम की आकार वाली पहाड़ पर स्थित है जिसके कारण इसका नाम ओंकारेश्वर रखा गया .यह पर्वत चारो ओर से पार्वती और कावेरी नदी से घिरा हुआ है .