ग्वालियर हाईकोर्ट ने सरकार से अनुरोध किया है कि आपसी सहमति से शारीरिक संबंध बनाने की उम्र को 18 वर्ष से घटाकर 16 वर्ष कर दी जाए। कोर्ट का मानना यह है कि सोशल मीडिया के जमाने में बच्चे कम उम्र मे ही एक दूसरे के तरफ आकर्षित होकर शारीरिक संबंध बना रहे है । वर्तमान में 18 साल की उम्र ने समाज के ताने-बाने को बिगाड़ दिया है, क्योंकि किशोरवय लड़कों के साथ अन्याय हो रहा है। दरअसल अदालत का अनुरोध 27 जून को एक आदेश के माध्यम से सामने आया जिसमें एक व्यक्ति के खिलाफ fir को रद्द कर दिया गया है जिस पर 2020 में एक नाबालिग लड़की से कई बार बलात्कार करने और उसे गर्भवती करने का आरोप था। कम उम्र में ही आकर्षित होकर बनाते है शारीरिक संबंध , पुरुषों के साथ हो रहा गलत अदालत ने कहा कि लड़कियों के लिए सहमति से संबंध बनाने की उम्र 18 वर्ष करने से समाज का ताना-बाना बिगड़ गया है।उस आयु वर्ग के एक किशोर के शारीरिक और मानसिक विकास को देखते हुए, इसे तर्कसंगत मानेगी कि ऐसा व्यक्ति अपनी भलाई के संबंध में सचेत निर्णय लेने में सक्षम है,”आम तौर पर किशोरावस्था के लड़के-लड़कियां दोस्ती करते हैं और उसके बाद आकर्षण के चलते शारीरिक संबंध बनाते हैं। इन मामलों में पुरुष बिल्कुल भी अपराधी नहीं हैं।आज अधिकांश आपराधिक मामले, जिनमें अभियोजन पक्ष की उम्र 18 वर्ष से कम है, उपरोक्त विसंगति के कारण किशोर लड़कों के साथ अन्याय हो रहा है। अत: मेरा भारत सरकार से अनुरोध है कि वह अभियोक्ता की आयु संशोधन से पहले की तरह 18 वर्ष से घटाकर 16 वर्ष करने के विषय पर विचार करें ताकि अन्याय का निवारण हो सके। कोचिंग संचालक के खिलाफ छात्रा ने दुष्कर्म का मामला दर्ज कराया था 17 जुलाई 2020 को थाटीपुर थाने में कोचिंग संचालक के खिलाफ छात्रा ने दुष्कर्म का मामला दर्ज कराया था। आरोपी 6 महीने से जेल में है। जबकि पीड़िता ने खुद ही शिक्षक के साथ अपनी सहमति से संबंध बनाए थे। इस मामले को लेकर कोर्ट ने शिक्षक के खिलाफ की गई एफआईआर को निरस्त करते हुए जमानत याचिका को स्वीकार किया है।
जानिए मध्य प्रदेश के गौरवशाली इतिहास की कहानी …
मैं हूँ भारत का ह्रदय कहे जाने वाला मध्य प्रदेश . मैंने अपने 66 सालों में बहुत कुछ देखा ,सहा है .मैं लगातार तरक्की की राह पर भी अग्रसर हूँ . और आज आपको इस लेख के माध्यम से मेरे इतिहास और वर्तमान की कहानी बताने जा रहा हूँ .इसे धैर्य और समवेत से सुनिए . ऐसे हुआ मेरा जन्म मुझे याद है 1 नवंबर 1956 का वो दिन। जिस दिन मध्य प्रदेश के रूप में मेरा जन्म हुआ था । दरअसल हुआ यूँ कि इस दिन के करीब 9 वर्ष पहले 15 अगस्त 1947 को भारत स्वतंत्र हुआ था। तभी से भारत लगा हुआ था कि कैसे अपने बिखरे-बिखरे राष्ट्र को राज्यों की सीमा में बांधे और अपने विकास को दिशा दे। बाद में तय हुआ कि राज्यों का गठन भाषा के आधार पर हो। इसी दिन भाषायी आधार पर कर्नाटक, हरियाणा, पंजाब और केरल का भी जन्म हुआ। और चूंकि देश के मध्य में हिंदी ही प्रमुख भाषा थी, इसलिए मुझे अर्थात मध्य प्रदेश को हिंदी भाषी राज्य के रूप में गठित किया गया। छत्तीसगढ़ को किया अलग मेरा जो पहला नक्शा बना, उसे देखकर देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू बोले – ‘यह तो ऊंट जैसा लगता है। दरअसल, उस समय छत्तीसगढ़ भी मेरा अंग था, जो ऊंट की टांग जैसा लगता था और ग्वालियर-चंबल वाला हिस्सा ऊंट की ऊंची पीठ जैसा…इसीलिए तो नेहरू ने मुस्कुराते हुए मुझे यह संज्ञा दी थी। बहरहाल, 20वीं सदी पूरी होते ही वर्ष 2000 में छत्तीसगढ़ मुझसे विलग हो गया। मुझे लगा जैसे मेरा अंग-भंग हो गया, कलेजे का टुकड़ा कटकर दूर हो गया। किंतु समय की गति और जनता की जरूरतों के अनुसार छत्तीसगढ़ का अलग होना ज़रूरी था। जबलपुर, इंदौर और भोपाल में अंतत: भोपाल को मेरी राजधानी चुना गया। शुक्ल बने पहले मुख्यमंत्री उस समय अन्य राजनीतिक दल शैशव अवस्था में थे। जो भाजपा आज प्रचंड होकर सत्ता में है, तब उसका जन्म नहीं हुआ था। यद्यपि इस पार्टी की विचारधारा तब भारत के हृदय में जड़ें जमा रही थी। मुझे याद है कि 1 नवंबर 1956 को पंडित रविशंकर शुक्ल मेरे प्रथम मुख्यमंत्री बने और सत्ता की कमान कांग्रेस के हाथ में आई . मेरा जन्म होते ही मेरा विकास-क्रम आरंभ हुआ। शुरुआती पांच वर्ष में ही एक राज्य के रूप में मैंने अपनी व्यवस्था को सुचारू बना लिया। राजकाज ठीक से चलने लगा और जनता के काम होने लगे। पर लगातार मुख्यमंत्री बदलते रहे . रविशंकर शुक्ल के बाद, भगवंतराव मंडलोई, कैलाशनाथ काटजू, फिर से मंडलोई, उनके बाद द्वारका प्रसाद मिश्र… मुख्यमंत्री हुए .इस बीच 1977 में मुझे पहली बार राष्ट्रपति शासन के हवाले कर दिया गया। इसी कालखंड में मैंने 25 जून 1975 से 21 मार्च 1977 के दौर में मेरी स्वतंत्रता का अपहरण हुआ था, मेरे देशप्रेमी बच्चों को जबरन जेल में ठूंस दिया गया था। कानून के डंडे के आगे मेरा लोकतंत्र विवश हो गया और इस तरह मैंने आपातकाल की त्रासदी और क्रूरता भी झेली। जनता पार्टी का आया दौर आपातकाल के बाद जब सत्ता बदली तो मध्य प्रदेश में पहली बार भारतीय जनता पार्टी आई . उस वक्त 1977 में कैलाश चन्द्र मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री बने उनके आते ही काम काज का तरीका बदलने लगा .फिर वीरेंद्र कुमार सकलेचा और सुंदरलाल पटवा भी जनता पार्टी की ओर से मुख्यमंत्री बने। मैं यह सब देख मुस्कुरा ही रहा था कि तभी 18 फरवरी 1980 से 8 जून 1980 तक फिर राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया गया। जिसकी वजह से फिर मुख्यमंत्री बदला और अब कांग्रेस पार्टी के अर्जुन सिंह को प्रदेश का मुखिया बनाया . उस वक्त प्रदेश की अर्थव्यवस्था ठीक नहीं थी और ना ही जनता की अच्छी आई थी पर जब 1992 में अर्थव्यवस्था को मुक्त किया गया , तो सब ठीक होने लगा । किंतु इसी बीच अयोध्या के विवाद के चलते 16 दिसंबर 1992 को एक बार फिर मुझे राष्ट्रपति शासन के हवाले कर दिया गया। इस वक्त की राजनीति को मैंने विस्फुरित नज़रों से बदलते हुए देखा था . मामा रहे लम्बे समय तक मुख्यमंत्री अब मध्य प्रदेश का अन्धकार युग आया , दरअसल इस समय मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह बने उनके कार्य काल में राजनीतिक विकास तो हुआ पर प्रदेश पानी ,बिजली और सड़क जैसे विकास में पीछे रह गया . फिर 8 दिसम्बर 2003 को उमा भारती ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली पर कुछ समय बाद ही उन्हें पद से इस्तीफा देना पड़ा . उमा ने बाबूलाल गौर को पद की शपथ दिलाई . गौर मुख्यमंत्री बन प्रदेश की समस्याओं पर नजर डाल ही रहे थे की तभी दोबारा सत्ता बदल गयी . अब मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री के पद पर पांव -पांव वाले भैया यानी शिवराज सिंह चौहान को बैठाया . चौहान के उदार ,संवेदनशील व्यक्तित्व को देख कर राजनितिक पंडितो को आशंका हुई की चौहान पद संभाल पाएंगे या नहीं. पर शिवराज ने ये कर दिखाया और अब तक के सबसे लंबे कार्यकाल के मंत्री भी बने .बीच में 17 दिसंबर 2018 से 20 मार्च 2020 तक कांग्रेस के कमल नाथ सत्ता में रहे, पर ज्योतिरादित्य सिंधिया ने अपनी कुछ और मंत्रियों के साथ मिलकर कांग्रेस का दामन छोड़ दिया और बीजेपी को अपनाया .जिससे कमलनाथ की बनी बनाई सरकार गिर गयी और दोबारा शिवराज का राज आ गया . गौरवशाली यात्रा से हूँ प्रसन्न 66 वर्षों में मैंने कई दौर देखे जिनमे कुछ अच्छे तो कुछ बुरे भी रहे । पर मैं कभी रुका नहीं बस आगे बढ़ता गया .मैंने लगातार कृषि कर्मण अवार्ड जीते। मेरा लाडला बेटा इंदौर देश का सबसे स्वच्छ शहर है। मेरी प्राचीन नगरी,या कहें महाकाल की नगरी उज्जैन का वैभव श्री महाकाल महालोक के कारण विश्व में और बढ़ गया है। मेरे जंगलों में बाघ की दहाड़ और हाथी की चिंघाड़ के साथ अब चीतों की पदचाप भी सुनाई देती है। मैं अपनी अब तक की यात्रा से प्रसन्न् हूं। उम्मीद है मेरी गौरव यात्रा यूं ही चलती रहेगी।
बागेश्वर धाम से अनसुने रहस्मयी तथ्य आपको पता है क्या ?
इन दिनों देश में बागेश्वर धाम चर्चा का विषय बना हुआ है . बागेश्वर धाम से जुड़ी ऐसी कई आश्चर्यजनक बातें है जिनको समझना किसी साधारण मनुष्य के बस से बहार है . बागेश्वर धाम में पवन पुत्र हनुमान जी महाराज का मंदिर जिन्हें सभी बागेश्वर बालाजी के नाम से जानते हैं. यहाँ हर प्रकार से परेशान भक्त आते हैं जिनकी अर्जी लगायी जाती है और उनके कष्टों का निवारण किया जाता है . आज हम आपको बागेश्वर धाम से जुड़ी तमाम जानकारी इस लेख के माध्यम से देंगे . क्या है बागेश्वर धाम बागेश्वर धाम मध्य प्रदेश के छतरपुर जिले में गंज नाम के कस्बे से 35 किलो दूरी पर स्थित है . बागेश्वर धाम में बालाजी का मंदिर है जिन्हें बागेश्वर बालाजी कहा जाता है. यह मंदिर एक चमत्कारिक स्थान है . इसकी स्थापना 1986 में हुई थी . 1987 में यहाँ संत सेतु लालजी महाराज का आगमन हुआ . साल 2012 से यहां भक्तों के कष्टों का निवारण करने के लिये दरबार लगाना शुरू हुआ . वर्तमान में बागेश्वर धाम के पीठाधीश्वर पंडित धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री हैं .धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री दरबार में सभी भक्तों की परेशानियों का निवारण करते हैं . कौन है पंडित धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री पंडित धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री बागेश्वर धाम के पीठाधीश्वर हैं यह देश और विदेश में अलग अलग जगह जाकर कथाएँ करते हैं. फिलहाल देश में शास्त्री जी के अधिक संख्या में भक्त है . शास्त्री अक्सर धर्म और हिन्दू राष्ट्र की बातें करते है जिसके कारण ये अक्सर चर्चा में रहते हैं. इनके अलग अलग शहरों में दरबार लगते है जहाँ समस्याओं से परेशान लोग अर्जी लगाते और बालाजी के चरणों का ध्यान करते हैं .शास्त्री भक्तों के मन की बात,उनके बिना बताये ही पर्चे पर लिख देते हैं, जो एक दम सही होती है . साथ ही जिस किसी व्यक्ति को प्रेत बाधा होती है वो दरबार में आते ही झूमने लगते है ,चीखने चिल्लाने लगते है . इन सभी परेशानियों का निवारण बागेश्वर बालाजी की कृपा से पंडित धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री द्वारा होता है .बागेश्वर धाम के पीठाधीश्वर पंडित धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री अपने साथ हमेशा एक मुद्दल लिए होते है जिनसे उन्हें बागेश्वर बालाजी की आज्ञा प्राप्त होती है . कैसे पहुंचे बागेश्वर धाम अगर आप बागेश्वर धाम जाना चाहते हैं तो आप रोड ,ट्रेन और हवाई मार्ग से जा सकते हैं .भोपाल से बागेश्वर धाम की दूरी 365 किलो है. अगर आप ट्रेन से जाना चाहते है तो आपको पहले खजुराहो रेलवे स्टेशन या छतरपुर रेलवे स्टेशन पहुंचना होगा .स्टेशन से आपको बस या टैक्सी मिल जाएगी .अगर आप रोड के माध्यम से जाना चाहेंगे तो भी आपको पहले खजुराहो आना पड़ेगा और फिर पन्ना रोड पर मौजूद एक छोटे से कस्बे गोंज पहुंचना होगा .कस्बे से 35 किलो दूर है बागेश्वर धाम .जहाँ आप आसानी से किसी भी साधन से पहुंच सकते हैं.